प्रसंग क्रमांक 56: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम धंगेडा़ एवं ग्राम अगोल का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम सिम्बडों से चलकर ग्राम धंगेड़ा नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्थान पर गोकुल नामक बालक ने गुरु जी की समर्पित भाव से सेवा की थी। वर्तमान समय में गुरु जी की स्मृति में बहुत सुंदर और विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं इस स्थान पर सुशोभित है।

पुरातन समय में इस स्थान पर 12×12 का छोटा सा कमरा स्थित था। इसके पश्चात सन् 1973 ई. में इस गुरुद्वारे साहिब की उसारी (निर्माण) का कार्य किया गया था। इस गुरुद्वारा साहिब को गुरुद्वारा गुरुसर नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस इलाके में स्थानीय संगत ने इस गुरुद्वारा साहिब में दर्शन-दीदार कर गुरु जी के साथ नाम-वाणी से जुड़कर अपना जीवन सफल किया था।

इस ग्राम धंगेडा़ के निकट ही ग्राम अगोल स्थित है। उस पुरातन समय में ग्राम अगोल आबाद था। गुरु जी ने इस स्थान पर एक ऊंची जगह पर अपना डेरा स्थापित किया था। उस समय इस स्थान पर कुछ वृक्ष भी मौजूद थे। उस समय इस स्थान पर राम तलाई नाम की स्वच्छ पानी की बावड़ी भी थी। जिस पीपल के पेड़ के नीचे गुरु जी उस समय विराजमान हुए थे वह पीपल का पेड़ वर्तमान समय में मौजूद नहीं है। ठीक उसी स्थान पर गुरु जी की स्मृति में वर्तमान समय में गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। साथ ही जिस स्थान पर राम तलाई नामक स्वच्छ पानी की बावड़ी मौजूद थी ठीक उसी स्थान पर सरोवर सुशोभित है। उस समय इस स्थान पर वृक्षों का झुंड हुआ करता था। वर्तमान समय में भव्य, आलीशान भवन निर्मित है। इस भवन का निर्माण सन् 1919 ई. में यानी कि लगभग 100 वर्ष पूर्व इसका निर्माण हो चुका था।

इसी ग्राम के निवासी सरदार नत्था सिंह जी ने स्वयं की 10 बीघा जमीन को गुरु जी के नाम पर अर्पित कर दी थी। इस जमीन पर ही ग्राम अगोल में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है।

प्रसंग क्रमांक 57: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम रोहटा का इतिहास।

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