‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ धर्म प्रचार-प्रसार हेतु लगातार विभिन्न ग्रामों की यात्रा कर रहे थे। आम लोगों के कल्याण हेतु आप जी लोगों को नाम-वाणी से जोड़ते थे। उन ग्रामों के भ्रमण का नक्शा तैयार किया जाता था और ग्रामों में धर्म का प्रचार-प्रसार कर गुरु जी अपने धर्म प्रचार-प्रसार के केंद्र बिंदु बहादुर गढ़ (सैफाबाद) में पुनः पधार जाते थे।
विगत प्रसंगों से हम जान चुके हैं कि गुरु जी ने नवाब सैफुद्दीन के महल में निवास करते हुए चौमासा (वर्षा ऋतु के चार महीने) बिताए थे। साथ ही गुरु जी आसपास के ग्रामों में पहुंचकर, धर्म प्रचार-प्रसार के दौरे आयोजित करते थे एवं पुनः अपने केंद्र बिंदु स्थान पर आ जाते थे। यदि इस धर्म के प्रचार-प्रसार की यात्रा को दृष्टिक्षेप करें तो देखना होगा कि गुरु जी के इतिहास से संबंधित वर्तमान समय में क्या-क्या निशानियां मौजूद हैं?
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब’ जी को उनके एक सिख भाग राम झीवर ने निवेदन कर सैफाबाद से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम ‘लैहल’ नामक स्थान पर आमंत्रित किया। कारण इस ग्राम में एक भयानक बीमारी ‘सोका’ (ऐसी बिमारी जिसमें रक्त की कमी से बहुत ज्यादा कमजोरी आ जाती है एवम् शरीर में रक्त का निर्माण रुक जाता है) से ग्रामवासी अत्यंत परेशान और दुखी थे। इस ग्राम में इस बीमारी का प्रादुर्भाव समाप्त ही नहीं होता था। इससे ज्ञात होता है कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ उत्तम वैद्य और अनुभवी चिकित्सक थे। गुरु जी ने अपने जीवन काल में कई मानसिक रोगियों का भी इलाज कर उन्हें रोग मुक्त किया था।
भाग राम झीवर नामक सिख के निवेदन पर गुरु जी ग्राम ‘लैहल’ में पधारे थे और ग्राम में स्थित एक विशाल बरगद के वृक्ष के नीचे विराजमान हुए थे। वर्तमान समय में वह पुरातन बरगद का पेड़ मौजूद नहीं है। इस श्रृंखला के रचयिता ने अपने जीवन में लगभग 25 से 30 वर्षों तक इस बरगद के विशाल वटवृक्ष के दर्शन किए हैं। उपरोक्त शब्दावली का भावार्थ यह नहीं है कि हम ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी को त्याग कर इन निशानी रूपी वृक्षों से जुड़े, परंतु इन निशानों से हमें गुरु जी के एहसास की एक आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है। मन में भाव आते हैं कि गुरु जी इस विशाल बरगद के वृक्ष के नीचे विराजमान हुए थे। धन्य है! वह बरगद का वट वृक्ष जिसके नीचे गुरु जी विराजमान हुए थे, उस वातावरण की सकारात्मक ऊर्जा को केवल महसूस करके ही जाना जा सकता है। यदि एक बरगद के वट वृक्ष की सकारात्मक ऊर्जा हमारे जीवन को अभिभूत कर देती है तो ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में संकलित ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की वाणीयों का हमारे मानवीय जीवन में क्या प्रभाव होता होगा? इसे केवल महसूस किया जा सकता है, इस सुखद अहसास को किस शब्दावली में व्यक्त नहीं किया जा सकता है? लेखक के पास इसे लिखने के लिए सच जानना शब्द ही नहीं है।
गुरु जी भाग राम झीवर के निवेदन पर इस ग्राम में पधार कर विराजमान हुए थे। इस ग्राम की एक स्थानीय महिला सेवादार अपने ‘सोका’ बीमारी से पीड़ित पुत्र को लेकर गुरु जी के सम्मुख उपस्थित हुई थी। उस महिला ने गुरु जी से निवेदन किया कि गुरु जी मेरे इस पुत्र के अलावा दुनिया में कोई नहीं है, आप कृपा करके मेरे इस पुत्र का जीवन बचाये। गुरु जी ने उस महिला से वचन किये कि इस सोका नामक बीमारी से पीड़ित पुत्र को स्नान करवा कर पुनः मेरे सम्मुख उपस्थित करें। गुरु जी की कृपा से इस बालक की बीमारी पूर्ण रूप से ठीक हो गई थी और साथ ही इस ग्राम में जितने भी व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित थे, उन सभी का सफलतापूर्वक इलाज कर उन्हें भी गुरु जी ने ठीक किया था। गुरु जी ने इस बीमारी से बचने के लिए ग्राम में योग्य प्रबंध कर इस बीमारी को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया था।
इस ग्राम ‘लैहल’ के निवासियों ने गुरु जी से निवेदन किया कि हमारा बहुत ही छोटा नगर एकांत में स्थित है। इस स्थान पर कोई आवागमन नहीं है एवं किसी भी प्रकार की चहल-पहल नहीं है। आप जी कृपा करें गुरु जी ने वचन किए थे कि इस शहर में तो बहारें होंगी। चहल-पहल के साथ इस शहर का अपना एक ऐतिहासिक महत्व होगा।
भविष्य में इस स्थान पर बंदा सिंह बहादुर के समय बाबा आला सिंह जी का आगमन हुआ था। पश्चात ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ का राज स्थापित हुआ था। बाबा आला सिंह जी ने इस स्थान पर और आसपास के 84 ग्रामों को साथ मिलाकर एक किले का निर्माण भी किया था। इस किले को महाराजा आला सिंह जी के किले के नाम से जाना जाता था। जब इस स्थान पर लोकसंख्या आबाद हो गई तो इस स्थान को ‘बाबा आले की पट्टी’ के नाम से जाना गया था। कालानुसार बाबा शब्द विलुप्त हो गया और इस स्थान को पट्टी आला सिंह के नाम से पुकारा जाने लगा। पट्टी आला शब्द के नाम का अपभ्रंश होकर धीरे-धीरे इस शहर को ‘पटियाला’ के नाम से संबोधित किया गया।
इतिहास को दृष्टिक्षेप करें तो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के समय में इस ग्राम को ‘लैहल” कहकर पुकारा जाता था। ‘लैहल’ के पश्चात ‘बाबा आला की पट्टी’ और पश्चात इस विलोभनीय, खूबसूरत और शाही शहर को पटियाला के नाम से पुकारा जाता है।
इस पटियाला शहर में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में दो भव्य गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित हैं। मोती बाग और गुरद्वारा दुख निवारण साहिब जी। इन दोनों गुरुद्वारे के हम इस श्रृंखला के इस प्रसंग में चित्रों के माध्यम से दर्शन कर रहे हैं।
जिस ऐतिहासिक स्थान पर बरगद के वृक्ष के नीचे गुरु जी विराजमान हुए थे। उस स्थान पर भव्य गुरुद्वारे की उसारी (निर्माण) के समय उस वृक्ष को समाप्त कर उस स्थान पर गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब की विलोभनीय इमारत को सुशोभित किया गया है। गुरद्वारा दुख निवारण साहिब का परिसर अत्यंत सुंदर और भव्य है और इस स्थान पर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के हस्तलिखित हुक्मनामे भी सुशोभित है। इस गुरुद्वारे से ही पटियाला शहर का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। इस गुरुद्वारा साहिब जी में 24 घंटे लंगर का इंतजाम होता है। जीवन में एक बार प्रत्येक व्यक्ति को इस गुरद्वारा साहिब में मत्था टेकने जरूर जाना चाहिए।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार इस पटियाला शहर के आसपास के ग्रामों में गुरु जी भ्रमण कर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे।