‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम ननहेड़ी से चलकर ग्राम बीबीपुर खुर्द नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम में गुरु जी की स्मृति में ग्राम के बाहर की और भव्य गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस गुरुद्वारा साहिब जी की हदूद (परिसर) में एक कुआं भी स्थित है। गुरु जी की इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के अंतर्गत जो इतिहास हमें प्राप्त होता है उस समस्त इतिहास को संगत (पाठकों) के सम्मुख रखा जाता है। यदि सारी संगत (पाठक) इस इतिहास का वीडियो क्लिप देखें और लिखित रूप से पढ़कर अवलोकन करे, तो निश्चित ही गुरु जी की जीवन यात्रा का रोड मैप (नक्शा) हमारे जहन में होगा। इस से हमें ज्ञात होगा कि गुरु जी का यह धर्म प्रचार-प्रसार का ‘देशाटन’ कितना विशाल था।
इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा में गुरु जी के साथ 300 से भी अधिक संगत यात्रा करती थी। इस जत्थे का जहां भी निवास स्थान होता था, वहां पर गुरु जी के डेरे स्थापित किए जाते थे। विशेष रूप से इस स्थान के निकट कोई नदी, स्वच्छ पानी का झरना, कुएं की उपलब्धता निश्चित ही होती थी। जिससे कि सभी संगत के पानी की आवश्यकता को पूर्ण किया जा सके। साथ ही उस स्थान पर रहकर धर्म का प्रचार-प्रसार सुलभता से किया जा सके। गुरु जी का जो भी स्थान है, उन सभी स्थानों पर स्वच्छ पानी का स्त्रोत निश्चित रूप से उपलब्ध है। इस इतिहास के साथ-साथ हमें उन सभी ऐतिहासिक स्थलों के चित्रों के रूप में भी हमें दर्शन हो रहे हैं।
इस ग्राम बीबीपुर खुर्द से प्रस्थान कर गुरु जी ग्राम बुधमुर नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का निवास स्थान हुआ करता था। इस परिसर को जब हम अवलोकित करते हैं तो इस स्थान पर भी एक कुआं स्थित है। इसके पश्चात महाराजा कर्ण सिंह जी ने इस स्थान पर अपनी देखरेख के अंतर्गत एक भव्य गुरुद्वारे का निर्माण भी करवाया है। इस विलोभनिय परिसर में यह गुरुद्वारा साहिब सुंदरता से सुशोभित है।
इस ग्राम के आगे बांगर नामक इलाके में ग्राम कराह नामक स्थान स्थित है। इस ग्राम में गुरु जी अपनी भविष्य की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के अंतर्गत इस स्थान पर पहुंचे थे। यदि इतिहास को दृष्टिक्षेप करें तो गुरु जी का पटियाला नामक शहर में भी आगमन होगा और साथ ही साथ गुरु जी ने इस इलाके के आसपास के कई ग्रामों का दौरा भी किया था। इन ग्रामों में पहुंचने के मार्ग अलग-अलग थे। इसलिए इन मार्गों को समझने के लिए जब कई सिख इतिहासकार विद्वानों से मशवरा किया तो यह तथ्य निकलकर आता है कि इस स्थान पर गुरु जी अपने धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा का केंद्र के रूप में बहादुर गढ़ को निरूपित किया था। इस केंद्र बिंदु बहादुर गढ़ से ही गुरु जी अलग-अलग ग्रामों में धर्म प्रचार-प्रसार हेतु जाकर पुनः बहादुर गढ़ पर आ जाते थे।
यदि हम ग्राम कराह के इतिहास को दृष्टिक्षेप करें तो ऐसा अवलोकित होता है कि गुरु जी धमतान नामक स्थान से यहां पर पधारे थे। यह भी हो सकता है कि पटियाला शहर से इस स्थान पर पधारे हो, इस तथ्य का स्पष्टीकरण श्रृंखला के भविष्य के प्रसंगों में तय हो जाएगा। ग्राम कराह में गुरु जी की स्मृति में भव्य गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। इतिहास से ज्ञात होता है कि इस ग्राम कराह में भी एक मसंद रहता था, जो कि गुरु जी के इस स्थान पर पहुंचने के पश्चात कहीं छुप गया था और गुरु जी के सम्मुख उपस्थित नहीं हुआ था।
इस श्रृंखला के भविष्य के प्रसंगों में जब हम गुरु जी के शहीदी मार्ग का जिक्र करेंगे तो कहीं ना कहीं इस स्थान का जिक्र होगा। इसके पश्चात जब दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ इस ग्राम में पधारे थे तो उन्हें ज्ञात हुआ कि पातशाही नौवीं ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ जब इस ग्राम में पधारे थे तो उन्होंने इस ग्राम में एक चरवाहे की हुक्का पीने की आदत को छुड़वाया था और उसे रूपये 500 प्रदान कर के वचन किए थे कि ग्राम के लोक-कल्याण हेतु इस ग्राम में कुआं खुदवाये एवं एक सुंदर बगीचे का निर्माण भी करें। उस चरवाहे ने बाग और कुएं के साथ ही स्वयं के घर का भी निर्माण किया था। उस चरवाहे ने यह सभी संपत्ति अपने नाम करवा ली थी। जब दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ को ग्राम निवासियों ने इसकी शिकायत की तो उस समय जब गुरु जी कुरुक्षेत्र प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होंने इस कार्य की निंदा भी की थी। जिस स्थान पर गुरु जी ने इस कार्य की निंदा की थी उस स्थान पर एक विशाल इमली का वृक्ष था। वर्तमान समय में वह वृक्ष मौजूद नहीं है परंतु उस वृक्ष के तने को ग्राम की संगत और गुरुद्वारे के प्रबंधकों ने सुरक्षित कर, संभाल कर गुरु जी की स्मृति को संजो कर रखा हुआ है।