प्रसंग क्रमांक 46: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम उगाणी साहिब का इतिहास।

Spread the love

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने ग्राम भंगराना में संगत को नाम-वाणी से जोड़कर सिक्खी का बूटा प्रफुल्लित कर आप जी ग्राम उगाणी नामक स्थान पर पहुंचे थे। ग्राम उगाणी राजपुरा नगर के समीप है। इसे ग्राम उगाणा साहिब जी भी कह कर संबोधित किया जाता है। इस ग्राम में गुरु जी की स्मृति में गुरद्वारा साहिब सुशोभित है। इस धरती को गुरु जी ने अपने चरण-चिन्हों से स्पर्श कर पवित्र किया था।

इस ग्राम के पुरातन इतिहास अनुसार दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ भी इस ग्राम में पधारे थे। इस स्थान से एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कड़ी ओर संदर्भित होती है। यह ऐतिहासिक कड़ी आंखों को नमन करती देती है। इस ऐतिहासिक कड़ी को बाबा जोरावर सिंह जी के इतिहास से संदर्भित किया गया है। यह बाबा जोरावर सिंह जी दशमेश पिता श्री गुरु गोविंद सिंह जी के दत्तक पुत्र थे। दशमेश पिता जी के चार पुत्र (जिन्हें सम्मान पूर्वक साहिबजादा कहकर संबोधित किया जाता है) थे। 1.बाबा अजीत सिंह जी 2.बाबा जुझार सिंह जी 3.बाबा जोरावर सिंह जी 4.बाबा फतेह सिंह जी परंतु यह जोरावर सिंह जी गुरु जी के दत्तक पुत्र थे। अर्थात् गोद लिए हुए पुत्र थे।

दत्तक पुत्र जोरावर सिंह गुरु जी के साथ ही निवास करते थे एवं ग्राम ‘बस्सी पठाना’  के निवासी एक परिवार के पुत्र थे। इस दत्तक पुत्र जोरावर सिंह जी ने श्री आनंदपुर साहिब जी में घोला घोलदे हुए (खेलकूद करते हुए) गुरु जी के गुरु पुत्र को जमीन पर पटक दिया था। कुछ सिखों ने विरोध दर्ज करते हुए दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी से प्रश्न किया कि यह आपने क्या किया? गुरु के पुत्र की बराबरी करने वाले आप कौन हो?

गुरु जी ने दत्तक पुत्र जोरावर सिंह को अपने समीप बुलाया और उसी समय दत्तक पुत्र जोरावर सिंह की मां ने उपस्थित होकर गुरु जी से कहा कि पातशाह जी आप इसे ऐसी सजा दीजिए कि यह पुनः गुरु पुत्रों की बराबरी ना कर सके।

‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी महाराज ने दत्तक पुत्र जोरावर सिंह जी को गोद में लेकर कहा कि जैसे मेरा पुत्र जोरावर सिंह है, संगत जी वैसे भी आज से मेरा यह भी पुत्र जोरावर सिंह है। अर्थात आज से मेरे दोनों पुत्र जोरावर सिंह है। उसी समय से दत्तक पुत्र जोरावर सिंह जी को गुरु जी के दत्तक पुत्र के रूप में सम्मान प्राप्त हो गया था।

सन् 1704 ई. में जब ‘श्री आनंदपुर साहिब जी’ के किले को छोड़ा गया था तो यह दत्तक पुत्र जोरावर सिंह दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी के साथ ही थे। सरसा नदी की बाढ़ को पार कर ग्राम ‘मलकपुर रंगणा’ नामक स्थान पर युद्ध करते हुए यह दत्तक पुत्र जोरावर सिंह गंभीर रूप से जख्मी हो गया था। इस युद्ध में बाबा अजीत सिंह जी, भाई बचित्तर सिंह जी और दत्तक पुत्र जोरावर सिंह जी साथ में थे।

दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी के शरीर पर 22 गंभीर स्वरूप के जख्म हुए थे। बाबा अजीत सिंह जी इस दत्तक पुत्र जोरावर सिंह जी को कोटला निहंग सिंह जी के निवास स्थान रोपड़ में ले गये थे। इसी स्थान पर ही तरखान (सुतार काम करने वाले) सिख भाई गुरसा सिंह और भाई बग्गा सिंह का परिवार निवास करता था। इन सिखों के घर में दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह को रखा गया था।

दूसरी ओर दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ चमकौर की गड़ी की और प्रस्थान कर गए थे। भाई बचित्तर सिंह और दत्तक पुत्र जोरावर सिंह कोटला निहंग जी के निवास पर ठहर गए थे। भाई बचित्तर सिंह जी गंभीर रूप से जख्मी होने के कारण कोटला निहंग जी के निवास स्थान पर ही अकाल चलाना (स्वर्गवास) कर ‘शहीद’ हो गए थे।

दूसरी और दत्तक पुत्र जोरावर सिंह की रक्षा करते हुए इस दत्तक पुत्र को ग्राम ‘डडेहेडी’ में इनकी बुआ जी के निवास स्थान पर सुरक्षित पहुंचा दिया गया था। वर्तमान समय में ग्राम ‘डडेहेड़ी’ में भी इनकी स्मृति में गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। दत्तक पुत्र जोरावर सिंह उपचारित होने के पश्चात ग्राम उगाणी  में पहुंचे थे। इस स्थान पर साधु भजन दास ने इस दत्तक पुत्र जोरावर सिंह जी की चिकित्सा की थी। इसके पश्चात दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह ग्राम ‘खजीराबाद’ नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम ‘खजीराबाद’ में भी दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है।

इस स्थान से चलकर दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ से मुलाकात करने हेतु दमदमा साहिब जी नामक स्थान पर पहुंचे थे। दमदमा साहिब पहुंचने पर ज्ञात हुआ कि ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ दिल्ली की ओर प्रस्थान कर गए हैं। दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी दिल्ली, आगरा से होते हुए ग्राम इदमादपुर में पहुंचे थे। दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी की ‘

श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ से ग्राम इदमादपुर में मुलाकात हुई थी।

दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी गुरु जी के साथ इदमादपुर से पुष्कर, भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ से होते हुए गंभीरी नदी के किनारे पर पहुंचे थे। इस स्थान पर गुरु जी ने विश्राम किया था। उस समय गुरु जी के साथ औरंगजेब का पुत्र बाहदर शाह भी साथ में था।

दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह अपने कुछ साथियों के साथ जब चित्तौड़गढ़ किले का अवलोकन करने गए थे तो वहां पर उनकी झड़प मुगल सैनिकों के साथ हो गई थी। दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी ने इन मुगलों से युद्ध करते हुए चित्तौड़गढ़ के किले के मुख्य द्वार पर ‘शहादत’ को प्राप्त किया था।

इसी स्थान पर गुरु जी का एक निकटवर्ती सिख मानसिंह जिसके शीश पर गुरु जी ने फर्रा सजाकर वचन किए थे कि आज के पश्चात निशान साहिब (ध्वज) कभी नीचे गिरेगा नहीं और हमेशा सिखों के शीश पर लहराएगा। ऐसे गुरु जी के बहुत ही करीबी सिख भाई मान सिंह जो चमकोर की गढी से ही गुरु जी के साथ थे और जब मान भाई मान सिंह गंभीरी नदी से चित्तौड़गढ़ के किले पर समझौता करवाने हेतु जा रहा थे तो उन्हें गोली मारकर ‘शहीद’ किया गया था। इस स्थान पर भाई मान सिंह, दत्तक पुत्र जोरावर सिंह और 20 सिखों ने शहादत को प्राप्त किया था।

‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने अपने हाथों से गंभीरी नदी के तट पर इनका अंतिम संस्कार किया था। इस ऐतिहासिक स्थान को इस श्रृंखला  के रचयिता के द्वारा स्वयं खोजा गया है।

चित्तौड़ गढ़ की संगत प्रत्येक वर्ष भाई मान सिंह और दत्तक पुत्र बाबा जोरावर सिंह जी के ‘शहीदी दिवस’ को इस स्थान पर मनाती हैं। वर्तमान समय में इस स्थान पर कोई स्मृति स्थान बना हुआ नहीं परंतु इस इतिहास को खोजा जा चुका है। भविष्य में निश्चित ही इस चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) में गुरु जी की कृपा से स्मृति स्थल बनेगा।

संगत (पाठकों) जी, श्रृंखला के प्रसंग के दरमियान हमें कुछ ऐतिहासिक कड़ियों को आपस में जोड़ना पड़ेगा। जब हम ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के इतिहास को अवलोकित करेंगे तो निश्चित ही हमें इन ऐतिहासिक कड़ियों को जोड़कर इनके महत्व का आकलन करना होगा।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ भगरांना से चलकर ग्राम उगाणी में पहुंचे थे। इस ग्राम उगाणी से यात्रा करते हुये गुरु जी बहादुर गढ़ नामक स्थान पर प्रस्थान कर गये थे। बहादुरगढ़ का नवाब सैफुद्दीन आपके दर्शनों को उत्सुक था। जब नवाब सैफुद्दीन को ज्ञात हुआ कि गुरु जी उनके इलाके में पधारे हैं तो वह श्रद्धा के सुमन लेकर गुरु जी के समक्ष स्वयं उपस्थित हुआ था।

प्रसंग क्रमांक 47: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय बहादुर गढ़  (सैफाबाद) का इतिहास।

KHOJ VICHAR YOUTUBE CHANNEL


Spread the love
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments