प्रसंग क्रमांक 43: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम नंदपुर कलोड़ का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम घड़ोंवां से चलकर ग्राम नंदपुर कलोड़ नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्थान पर गुरु साहिब जी की एक बीबी (महिला सेवादार) के निवास स्थान पर निवास की उत्तम व्यवस्था की गई थी। गुरु जी का आगमन होते ही दूर-दराज की संगत गुरु जी के दर्शन-दीदार के लिए उपस्थित होना आरंभ हो गई थी। इस स्थान पर प्रतिदिन अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में आसा जी दी वार का कीर्तन संपन्न होता था। कीर्तन के पश्चात गुरु जी उपस्थित संगत को नाम-बानी के उपदेश दृढ़ करवाया करते थे।

इस स्थान पर आसपास की समूह संगत उपस्थित होना प्रारंभ हो गई थी। इस ग्राम की सभी संगत ने हाथ जोड़कर गुरु पातशाह जी से निवेदन किया कि पातशाह जी जब वर्षा ऋतु में बारिश होती है तो इस ग्राम में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाता है। कारण यह ग्राम जमीनी सतह से नीचे की ओर आबाद हुआ है। हम सभी स्थानीय निवासी बाढ़ के प्रकोप से प्रत्येक वर्ष दुखी हो जाते हैं। इस बाढ़ के प्रकोप से हमारे घरों में पानी प्रवेश कर जाता है, हमारी फसलों की उपज तबाह हो जाती है और हमें अपने घर-बार छोड़कर इस स्थान से विस्थापित होना पड़ता है।

इस स्थान पर सभी आसपास के इलाके की संगत एकत्र हो चुकी थी। गुरु जी ने वचन किए कि परोपकार शब्द केवल उच्चारण करने तक ही सीमित नहीं है।

मिथिआ तन नही परउपकारा॥

(अंग क्रमांक 269)

अर्थात् यदि तुम किसी के परोपकार के लिए स्वयं से आगे नहीं आते हो तो तुम्हारा शारीरिक रूप झूठ है। यदि हम सभी आसपास के ग्रामों के निवासी एकत्र होकर मिट्टी और पत्थरों के द्वारा जिस स्थान से बाढ़ के प्रकोप का पानी प्रवेश करता है, उसी स्थान पर निर्माण कार्य कर मजबूत दीवारों का निर्माण कर देवें तो निश्चित ही इस बाढ़ के प्रकोप की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।

एकत्रित संगत को जब यह ज्ञात हुआ कि यह कार्य बहुत बड़ा परोपकार वाला कार्य हो सकता है और इस असंभव कार्य को संभव किया जा सकता है। इस महान कार्य को कोई एक-दो व्यक्ति मिलकर नहीं कर सकते हैं कारण यह कार्य बहुत बड़ा और विशाल है। इसलिए सभी आसपास के ग्रामीण एकत्र होकर एकजुटता से यदि इस कार्य को करें तो यह कार्य निश्चित ही संभव है।

गुरु जी ने सभी को एकत्रित कर नेतृत्व करते हुए स्थानीय लोगों के लिए बहुत बड़ा परोपकार का कार्य किया था। आसपास के सभी ग्रामवासी औजार-हथियार लेकर इस कार सेवा को करने हेतु उपस्थित हुए थे। सारी संगत ने एकजुटता से कार सेवा करते हुए ग्राम के चारों और एक मजबूत दीवार ‘बंध’ के रूप में स्थापित की गई थी। इस निर्माण कार्य के कारण से यह ग्राम पुनः बाढ़ के प्रकोप से कभी पीड़ित नहीं हुआ था। इस ग्राम की समतल भूमि पर मिट्टी और पत्थरों की भरती कर इस भूमि की सतह को दुसरे ग्राम की सतहों से ऊंचा किया गया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। जब इस स्थान नंदपुर कलोड़ पर गुरुद्वारा साहिब के दर्शनों को संगत उपस्थित होती है तो ज्ञात होता है कि यह गुरुद्वारा साहिब ग्राम की समतल भूमि से ऊंचाई पर सुशोभित है। इस स्थान पर नंदपुर कलोड़ एवं नंदपुर कलोड़-2 नामक दो ग्राम एकत्र स्थित है।

इस नंदपुर कलोड़ ग्राम के निवासी ‘ गुरु पंथ खालसा’ की जानी-मानी महान हस्ती कवि, लेखक, उच्च कोटि के विद्वान खालसा नामक अखबार के सर्वेसर्वा और सिंह सभा लहर का नेतृत्व करने वाले परम आदरणीय ‘ज्ञानी दित सिंह जी’ स्वयं इन ग्रामों में ही जीवन व्यतीत करते हुए बड़े हुए थे। परम आदरणीय ज्ञानी दित सिंह जी ‘गुरु पंथ खालसा’ कि वह महान हस्ती है जिन्होंने सिंघ सभा लहर को संपूर्ण रूप से प्रस्थापित किया था। परम आदरणीय ज्ञानी दित सिंह जी की महान-अनमोल सेवाओं के फलस्वरूप ही पूरे विश्व की सभी सिंघ सभाओं को एक सूत्र में बांधकर रखा गया है एवम् ‘गुरु पंथ खालसा’ के विचारों की एक समान, मजबूत आधारशिला को रखने का महत्वपूर्ण कार्य आप जी के द्वारा संपन्न किया गया है। परम आदरणीय ज्ञानी दित सिंह जी भी स्वयं इस ग्राम के स्थानीय निवासी है।

प्रसंग क्रमांक 44: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम रैलों का इतिहास।

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