अद्वितीय सिख विरासत का लोकार्पण : हिंदी में सिख इतिहास का समग्र दस्तावेज़

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पटियाला। हिंदी साहित्य के प्रख्यात स्तंभकार डॉ. रणजीत सिंह ‘अर्श’ द्वारा रचित, संपादित एवं संकलित महत्त्वपूर्ण ग्रंथ ‘अद्वितीय सिख विरासत’ (ISBN: 978-81-955654-8-1) का लोकार्पण 27 सितंबर 2025 को चढ़दी कला टाइम टीवी के कार्यालय में गरिमामय ढंग से सम्पन्न हुआ। लोकार्पण समारोह में पुस्तक का विमोचन पद्मश्री डॉ. जगजीत सिंह ‘दर्दी’ ने अपने कर-कमलों से किया।

इस अवसर पर विख्यात इतिहासकार डॉ. भगवान सिंह ‘खोजी’, बीबी गुरमीत कौर खालसा, वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरि ओम शुक्ला (संपादक: भारत देश हमारा), सरदार हरप्रीत सिंह (संचालक: चढ़दी कला ग्रुप), टीम खोज-विचार के सदस्य एवं अनेक गणमान्य व्यक्तित्व उपस्थित थे। पूरे समारोह का वातावरण सिख इतिहास और साहित्य की समृद्ध परंपरा के प्रति श्रद्धा और उत्साह से ओतप्रोत रहा।

पुस्तक की विशेषताएँ

लोकार्पण अवसर पर पुस्तक के लेखक डॉ. अर्श ने विस्तार से बताया कि यह पुस्तक विशेष रूप से राजभाषा हिंदी के पाठकों और देश के विभिन्न भागों में बसे सिकलीगर, बंजारे और लबाना सिखों को गुरु पंथ खालसा की मौलिक एवं प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से रचा गया है। टीम खोज-विचार ने लगभग दो वर्षों की निरंतर शोध और कठोर परिश्रम के बाद इसे रूप दिया।

प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. भगवान सिंह ‘खोजी’ के मार्गदर्शन में तैयार इस पुस्तक को तीन अध्यायों में सुव्यवस्थित किया गया है—

पहले अध्याय में दस गुरुओं का संक्षिप्त जीवन-परिचय सरल और सरस शैली में प्रस्तुत है तथा श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के अद्भुत एवं अलौकिक स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है। दूसरे अध्याय में ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण संदर्भों का विश्लेषणात्मक संकलन किया गया है, जो विविध साहित्यिक स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है। तीसरे अध्याय ‘गुरु पंथ खालसा के अनकहे इतिहास के पन्ने’ में ग्यारह अभूतपूर्व और रोचक लेखों के माध्यम से इस अनदेखे ऐतिहासिक पहलुओं को विस्तार से उजागर किया गया है।

ऐतिहासिक साहित्य का समग्र संग्रह

कुल मिलाकर ‘अद्वितीय सिख विरासत’ अपनी संकलित, संपादित और शोधपरक रचनाओं के माध्यम से गुरु पंथ खालसा के इतिहास का ऐसा सजीव सारांश प्रस्तुत करती है, जो न केवल विद्वानों के लिए संदर्भ ग्रंथ सिद्ध होगी, बल्कि सामान्य पाठकों के लिए भी प्रेरक पथदर्शी बनेगी। डॉ. अर्श की सशक्त और संवेदनशील लेखनी ने इस पुस्तक को हिंदी साहित्य एवं सिख इतिहास दोनों के लिए एक अनमोल धरोहर बना दिया है।

समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए विख्यात इतिहासकार डॉ. भगवान सिंह ‘खोजी’ ने कहा-“संगत जी, श्री गुरु नानक देव जी से लेकर शूरवीर बंदा सिंह बहादुर, शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी, खालसा राज और निहंग सिखों तक, सन् 1669 ई. से लेकर 2025 ई. तक का संपूर्ण सिख इतिहास इस पुस्तक में संक्षिप्त और सजीव रूप से प्रस्तुत किया गया है। निःसंदेह यह पुस्तक इतिहास के विद्यार्थियों के लिए अनुपम उपहार सिद्ध होगी।

मैं विनम्र निवेदन करता हूँ कि जब हमारे गुरुद्वारों में अन्य धर्मों के श्रद्धालु अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं, तो उन्हें सम्मान-स्वरूप सिरोपाउ के स्थान पर ऐसी पुस्तक उपहार में दी जानी चाहिए। इससे उन्हें सिख धर्म की महान उपलब्धियों और गौरवशाली विरासत की प्रमाणिक जानकारी प्राप्त होगी।

इस ग्रंथ में सभी दस गुरु साहिबान के जीवन-चरित्र को अत्यंत सरल, रोचक और प्रेरक ढंग से रचा गया है, जिससे पाठक सहज ही जान सकेंगे कि हर गुरु साहिब ने अपने समय में लोक-कल्याण के कौन से अद्भुत कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न किए। साथ ही, सिख धर्म के वीर शहीदों के अप्रतिम शहादतों का भी विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है।

वास्तव में, इस पुस्तक में निहित वह इतिहास, जिसे पढ़कर शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, अपने आप में एक ‘गागर में सागर’ है। ‘अद्वितीय सिख विरासत’ हमारी आने वाली पीढ़ियों को न केवल प्रेरणा देगी, बल्कि उन्हें सिख धर्म की दिव्य शिक्षाओं और विश्व-कल्याणकारी संदेशों को गहराई से समझने का अवसर भी प्रदान करेगी।”

समारोह में अपने विचार व्यक्त करते हुए चढ़दी कला ग्रुप के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. जगजीत सिंह ‘दर्दी’ ने कहा-“डॉ. अर्श द्वारा रचित अद्वितीय सिख विरासत पढ़कर मैं सचमुच अचंभित हूँ। वर्तमान समय में भी हमारी सिख कौम में ऐसे हिंदी के विद्वान हैं, जिन्होंने कौम की ज़रूरत को भली भांति समझते हुए इतनी अद्भुत एवं शोध पूर्ण पुस्तक का सृजन किया है।

हमारी संगत के बहुत कम लोग जानते हैं कि करोड़ों की संख्या में सिकलीगर, बंजारे और लभाने सिख आज भी देश के ग्रामीण और पिछड़े अंचलों में बसते हैं। इनके मध्य सिख धर्म के प्रचार-प्रसार की अत्यंत आवश्यकता है। जब मुझे टीम ‘खोज-विचार’ से इस पुस्तक की विस्तृत जानकारी मिली तो मेरा हृदय प्रसन्नता और गर्व से भर उठा। ऐसी विलक्षण कृति के लिए मैं डॉ. अर्श को हार्दिक बधाई प्रेषित करता हूँ।

मैं टीम खोज-विचार को आश्वस्त करना चाहता हूँ कि इस पुस्तक को मैं विशेष सिफारिश सहित दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, सचखंड श्री हज़ूर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और पटना साहिब प्रबंधक कमेटी तक पहुँचाऊँगा, ताकि ये सभी संस्थाएं इसे लाखों की संख्या में प्रकाशित कर हिंदी भाषी पाठकों और देशभर में बसे सिख परिवारों तक पहुँचा सकें।

पंजाब से बाहर रह रहे सिख बच्चों में पंजाबी भाषा का ज्ञान कम होता जा रहा है, यह हम सबके लिए गहरी चिंता का विषय है। ऐसे में सिख इतिहास और सिख विरासत को हिंदी में उपलब्ध कराना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। यह हमारी कौमी जिम्मेदारी है कि इस पुस्तक को हिंदी भाषी प्रदेशों में बड़े पैमाने पर पहुँचाया जाए।

मैं आज ही इस पुस्तक की विशेष अनुशंसा कर चीफ़ खालसा दीवान को भी प्रेषित करूँगा और देश की सभी सिख संस्थाओं से निवेदन करूँगा कि वे इसे न केवल हिंदी में, बल्कि पंजाबी और अंग्रेज़ी अनुवाद सहित बड़े पैमाने पर प्रकाशित करें। क्योंकि इस पुस्तक में गुरबाणी, सिख इतिहास और गुरु साहिबान के संक्षिप्त जीवन से जुड़ी खोजपूर्ण रचनाएँ सचमुच प्रशंसा के योग्य हैं।

डॉ. अर्श के इस सेवाभावी उपक्रम की मैं हृदय से सराहना करता हूँ और संपूर्ण सिख कौम से अपील करता हूँ कि जहाँ कहीं भी आप निवास करते हों, अपनी दसवंद की माया से अधिक से अधिक प्रतियाँ प्रकाशित कर हिंदी पाठकों में वितरित करें। यह निश्चित ही हमारी कौम की बहुत बड़ी सेवा होगी।”

कार्यक्रम के समापन पर डॉ. अर्श ने चढ़दी कला ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. दर्दी और सभी उपस्थित गणमान्य अतिथियों के प्रति हार्दिक धन्यवाद प्रकट किया।


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