प्रसंग क्रमांक 40: श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी का धर्म प्रचार-प्रसार हेतु देशाटन की तैयारी का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के द्वारा ‘चक नानकी’ नामक नवीन नगर को आबाद किया गया था। इस नगर को वर्तमान समय में श्री आनंदपुर साहिब जी नगर नाम से भी संबोधित किया जाता है। गुरु जी ने इस स्थान पर कुछ प्रमुख सिखों को इस नगर निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी थी और आप जी ने धर्म प्रचार-प्रसार के लिए ‘देशाटन’ की तैयारी कर ली थी।

इस धर्म यात्रा के प्रचार-प्रसार का विशेष महत्व इसलिए भी था कि ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के द्वारा सिख संगत को बंगाल, आसाम, तक आबाद किया गया था। उन सभी संगत को पुनः आप जी सर्जीत कर जागृत कर एक सूत्र में बांधना चाहते थे। ऐसे बहुत से स्थान और तीर्थ स्थान थे, जहां पर गुरु जी ने भूले-भटके लोगों को नाम-वाणी के साथ जोड़ा था। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ भी पुनः उन स्थानों और तीर्थ स्थानों की यात्रा करना चाहते थे। आप जी ऐसा क्यों करना चाहते थे? कारण गुरबाणी का फरमान है–

तीरथ उदमु सतिगुरु कीआ सभ लोक उधरण अरथा॥

(अंग क्रमांक 1116)

हकीकत में गुरु जी इन तीर्थ स्थानों पर इसलिए जाना चाहते थे कि भटके हुए लोगों को सच के मार्ग से जोड़कर लोक-कल्याण किया जाए।

गुरु जी ने यात्रा आरंभ करने से पूर्व सभी प्रमुख सिखों को उनकी जवाबदारीयों से अवगत करवा दिया था। भाई सती दास जी को इस पूरे यात्रा के मार्ग के प्रबंध की जवाबदारी दी गई थी। भाई दयाला जी को गुरु परिवार और यात्रा में शामिल सभी महिला यात्रियों के उत्तम प्रबंध की जवाबदारी सौंपी गई थी ताकि यात्रा के मार्ग में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई का सामना ना करना पड़े। विद्वान सिख भाई सती दास जी को अत्यंत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वह जिम्मेदारी इस प्रकार थी कि जहां पर भी गुरु जी के मुखारविंद से–

धुर की बाणी आई॥

तिनि सगली चिंत मिटाई॥

(अंग क्रमांक 628)

के महावाक्य अनुसार गुरु जी जब भी अपने मुख से गुरबाणी के सबद् (पद्यों) को उच्चारित करेंगे तो आप जी ने उन सबद् (पद्यों) को तुरंत लिखित रूप में अंकित कर तुरंत ही उसका फारसी भाषा में अनुवाद (उलथा) करना है। इस अति महत्वपूर्ण कार्य को भाई सती दास जी को सौंपा गया था। जिससे कि गुरु जी द्वारा उच्चारित सभी वाणीयों की ठीक से संभाल हो सके। भारत के उत्तर पूर्व में यात्रा करते समय, भाई सती दास जी ने गुरु पातशाह के मुखारविंद से जो गुरबाणी उच्चारित होती थी उसे सरल शब्दों में अनुवादित कर संगत को प्रस्तुत की वहीं से हिंदी भाषा का सर्जन का प्रारंभ माना जाता है। अर्थात् हिंदी भाषा की रचना और प्रचार-प्रसार में ‘गुरु पंथ खालसा’ का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। 

ऐतिहासिक ग्रंथ केसर सिंह बंशावली में अंकित है–

बाणी जो साहिब करन उचार सतीदास नित करे फारसी अखरां में उतार॥

इस यात्रा में शामिल माता गुजरी के भ्राता कृपाल चंद जी जो कि दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी के मामा जी थे। जिन्हें सिख जगत में सम्मान पूर्वक मामा कृपाल चंद जी कहकर संबोधित किया जाता था। आप जी को जिम्मेदारी दी गई थी कि जो भी ‘दसवंद’ (किरत कमाई का दसवां हिस्सा) और दान पेटी से प्राप्त होने वाली धन राशि को लोक-कल्याण के लिए नियोजित कर उत्तम तरीके से व्यय की जाए। इस तरह से सभी प्रकार की आर्थिक जवाबदारीयों को मामा कृपाल चंद जी पर सौंप दिया गया था।

इतिहासकार डॉ° त्रिलोचन सिंह जी और इतिहासकार प्रिंसिपल सेवा सिंह जी रचित इतिहास के अनुसार इस यात्रा का मार्ग जो कि कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद से बनारस होते हुए पटना साहिब तक का निश्चित हो चुका था और इस सारे यात्रा मार्ग का व्यय स्थानीय संगत को सौंपा गया था।

कुछ प्रमुख सिखों को जवाबदारी दी गई थी कि वह इस मार्ग में निवास के उत्तम प्रबंध और अन्य व्यवस्थाओं के समुचित प्रबंधन के लिए यात्रा मार्ग में पहले से ही प्रस्थान कर जाए और जब गुरु जी का जत्था इस यात्रा मार्ग से गुजरे तो सभी व्यवस्थाओं का संचालन उत्तम ढंग से हो, विशेषकर के गुरु जी का जत्था जिस स्थान पर निवास करें, उस स्थान पर स्वच्छ पानी का उत्तम प्रबंध होना चाहिए, इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था।

इस यात्रा में गुरु घर के कीर्तनकारों को भी शामिल किया गया था ताकि यात्रा के दौरान जत्था जिस भी स्थान पर पड़ाव डाले तो उस स्थान से दूर-दराज के इलाकों में पहुंचकर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार उत्तम तरीके से किया जा सके।

इस तरह से गुरु पातशाह जी ने बहुत ही उत्तम तरीके से इस यात्रा का आयोजन किया था। इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के लिए जिस मार्ग पर आप जी का दौरा होना था। उन सभी स्थानों पर उत्तम-समुचित प्रबंध कर दिये गए थे। ताकि इस यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े।

ऐसी यात्राओं के दौरान सबसे बड़ी समस्या होती है चौमासा का समय कहां व्यतीत करना है? चौमासा अर्थात् वर्षा ऋतु के आगमन पर वर्षा ऋतु के चार महीनों के समय को किस स्थान पर और कैसे व्यतीत करना है? उस समय में संगत और गुरु जी कौन से इलाके में होंगे? यात्रा के दरमियान इन सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखते हुए गुरु जी ने स्वयं इस यात्रा मार्ग के नक्शे को तैयार किया था।

प्रसंग क्रमांक 41: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की  धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के प्रथम पड़ाव का इतिहास।

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