प्रसंग क्रमांक 39: चक नानकी नगर के निर्माण (उसारी) के समय श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी और पीर मूसा रोपड़ी के मध्य हुये वार्तालाप का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने माखोवाल की धरती पर अपनी माता जी के नाम पर मोहरी गड्ड (नींव का पत्थर रखकर) ‘चक नानकी’ नामक नगर को आबाद किया था। नगर का निर्माण कार्य बहुत तेजी से हो रहा था। इस नगर में सुंदर निवास, आलीशान महल, व्यापारिक प्रतिष्ठान, कारोबार हेतु दुकानों का निर्माण और आवागमन के सभी साधनों का उत्तम प्रबंध इस नगर निर्माण के अंतर्गत बहुत ही खूबसूरती के साथ किया जा रहा था।

इस स्थान पर पहुंचे पीर मूसा रोपड़ी ने स्थानीय निवासियों से प्रश्न किया था कि इस सुंदर नगर का निर्माण कौन करवा रहा है? उन्हें ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के संबंध में ज्ञात हुआ कि वैराग की मूरत ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की गद्दी पर आसीन उनकी नौवीं ज्योत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ स्वयं इस नगर का निर्माण अपने कर-कमलों से करवा रहे हैं। पीर मूसा रोपड़ी ने वचन किया कि मैं नहीं मान सकता हूं कि एक वैराग की मूरत इस नगर का निर्माण करवा रहे हों! कारण वैरागीयों को क्या आवश्यकता है? सांसारिक झमेलों में पढ़ने की। पीर मूसा रोपड़ी गुरु जी के समक्ष उपस्थित हुए और उन्होंने गुरु जी से प्रश्न कर वचन कहे कि–

इस प्रवृत्ति में रिदा तुम्हारा गन सेवक किंव पार उतारो॥

अर्थात् पातशाह जी इस प्रवृत्ति में इस नगर का निर्माण और इसे आबाद करते हुए किस तरह से अपने सेवकों का बेड़ा पार करोगे?

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने वचन करते हुए पीर मूसा रोपड़ी से कहा कि इस संसार में गृहस्थ आश्रम की सबसे ऊंचा आश्रम है। जो इंसान गृहस्थ मार्ग में यात्रा करते हुए अपने जीवन को ऊंचा और सुच्चा (पवित्र) रखता है तो उस इंसान का इसी जन्म में गृहस्थी में रहते हुए ही जीवन मुक्त हो जाता है।

पीर मूसा रोपड़ी ने वचन किया की सांसारिक जीवन का और पीर-फकीरों के जीवन का आपस में कोई सामंजस्य नहीं होता है। एक और गृहस्थाश्रम और दूसरी और भक्ति करने वाले पीर-फकीरों का आपस में कोई सामंजस्य हो ही नहीं सकता है।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने वचन करते हुए कहा कि पीर जी आप इस स्थान पर कुछ दिनों तक विश्राम करो। निश्चित ही आप जी का भ्रम दूर हो जाएगा। इस स्थान पर निवास करते हुए आपके सभी प्रश्नों के समुचित उत्तर आपको स्वयं ही मिल जाएंगे और पीर जी के निवास की व्यवस्था सेवादारों की और से की गई थी।

शाम होते ही समस्त नगर की संगत गुरु दरबार में पहुंचना आरंभ हो गई थी। सोदर का पाठ किया गया था। साथ ही प्रभु-परमेश्वर की आरती कर गुरुबाणी को पठन किया गया था। उपस्थित संगत ने प्रभु का स्मरण कर आनंद की अनुभूति को प्राप्त किया था। उसके पश्चात शहर की सभी संगत एक पंगत में आसीन होकर गुरु का लंगर छककर (भोजन प्रशादि) ग्रहण किया था। नगर बड़ा होने के कारण बहुत दूर-दूर तक लंगरों का इंतजाम किया गया था।इसके पश्चात रात विश्राम करते हुए नगर के निवासियों के घरों से सोहिला साहिब जी की वाणी की गूंज सुनाई दे रही थी।

रात व्यतीत होते ही अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में नगर में किरत करने वाले लोग आसन लगाकर पालकी की स्थिति में आसीन हो कर सिमरन कर रहे थे। स्नान कर गुरु के दरबार में लोग हाजिरी लगा रहे थे। इस दरबार में आसा जी दी वार का कीर्तन हुआ था। दीवान की समाप्ति के पश्चात् कड़ाह प्रशादि जी की देग संगत में बांटी गई थी। संगत के लिए लगातार लंगर की व्यवस्था की गई थी। मजदूर, किसान, कारीगर और साहूकार सभी एक पंक्ति में आसीन होकर लंगर (भोजन प्रशादि) ग्रहण कर रहे थे। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से इज्जत करते हुए आदर-सत्कार के साथ वार्तालाप कर रहा था। यह संपूर्ण नजारा देखकर पीर मूसा रोपड़ी ने गुरु जी के चरणों में उपस्थित होकर निवेदन करते हुए वचन किए पातशाह जी मुझे पीरी के लिबास की अब कोई आवश्यकता नहीं है। मुझ पर कृपा करके मुझे अपना सिख बना लो। मैं भी इस नगर में निवास करते हुए सिक्खी के मार्ग से जीवन यात्रा करते हुए अपना जीवन सफल करूँगा।

इस स्थान पर गुरु घर के कीर्तनकार भी अमृतवेले (ब्रह्म मुहूर्त) में और शाम को गुरु के दीवान में हाजिरी भरते थे। दूर-दराज के इलाकों में जाकर भाई गुलाब राय जी, भाई राजा जी, भाई बहल जी, भाई मनसुद जी और भाई हरवंश जी यह सभी सेवादार जहां गुरु घर में कीर्तन करते थे, वहीं साथ में किरत कर सिक्खी का प्रचार भी करते थे।

भाई मक्खन शाह लुबाना जी, गुरु जी के साथ ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान से ही सेवा में उपस्थित थे। भाई मक्खन शाह लुबाना जी ने भी ‘चक नानकी’ नगर आबाद करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। जब इस नगर की जगह की खरीद-फरोख्त हुई तो उस समय भी मक्खन शाह लुबाना गुरु जी के एक साये की तरह साथ ही थे। उस समय भाई मक्खन शाह लुबाना ने इस स्थान पर गुरु जी से आज्ञा लेकर पुनः अपने व्यापार-व्यवसाय करने के लिए रुखसत हो गए थे।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने देशाटन करते हुए धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपना मन बना लिया था। कुछ प्रमुख सिख जैसे भाई भागो जी, भाई रामा जी, भाई साधु मुल्तानी जी, देहले के मुखी भाई देशराज जी और कुछ अन्य सिखों को ‘चक नानकी’ नगर को आबाद करने की जिम्मेदारी दी थी। गुरु जी ने इन सभी सिखों को निर्देश दिए थे कि जो भी ‘दसवंद’ (किरत कमाई का दसवां हिस्सा) की माया उपलब्ध हो, उस माया से इस नगर के निर्माण कार्य को अंजाम देना है। इस तरह से इन सभी सिख-सेवादारों को जिम्मेदारी सौंपकर गुरु जी धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए रवाना हो गए थे।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ पंजाब के विभिन्न ग्रामों में भ्रमण करते हुए कानपुर, लखनऊ से होते हुए आप जी की ‘देशाटन’ की यह यात्रा पटना साहिब से लेकर असम तक पहुंची थी। गुरु जी की इस संपूर्ण जीवन यात्रा को प्रसंग क्रमांक 40 से आरंभ किया जाएगा।

प्रसंग क्रमांक 40: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का धर्म प्रचार-प्रसार हेतु देशाटन की तैयारी का इतिहास।

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