‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ सन् 1644 ई. में ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के आदेशानुसार अपनी माता नानकी जी और पत्नी माता गुजरी जी के साथ ‘बाबा-बकाला’ नामक ग्राम में निवास हेतु चले गए थे। सन् 1665 ई. में गुरु जी का सहपरिवार कीरतपुर साहिब में पुनरागमन हुआ था अर्थात् सन् 1644 ई. में आप कीरतपुर से विदा हुए थे और सन् 1665 ई. में आप जी पुनः अर्थात 21 वर्षों पश्चात कीरतपुर साहिब में आपका पुनरागमन हुआ था।
गुरु जी के ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर चले जाने के पश्चात ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने कीरतपुर में 52 सुंदर बागों का निर्माण किया था। पशु-पक्षी और जानवरों के लिए चिड़ियाघर का भी निर्माण किया था। लोक-कल्याण हेतु गुरु जी ने एक बड़ा दवाखाना भी बनवाया था। इस दवाखाने में आम लोगों की मुफ्त में चिकित्सा की जाती थी।
‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने अपने पश्चात गुरता गद्दी ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ को इसी स्थान पर प्रदान की थी। ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी ने केवल 5 वर्ष 3 महीने की आयु में गुरता गद्दी का दायित्व संभाल कर आप जी ने गुरु के रूप में अनेक लोक-कल्याण के महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया था।
उस समय के राजा जयचंद के निवेदन का सम्मान करते हुए ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ सहपरिवार और अपने 2200 घुड़सवारों की सेना समेत ‘पंजोखरा साहिब’ नामक स्थान से चलकर दिल्ली पहुंचे थे। दिल्ली में चेचक के रोगियों का इलाज करते हुए 30 मार्च सन् 1664 ई. को आप जी अंतिम वचन ‘बाबा-बकाला’ कहकर ज्योति-ज्योत समा गए थे।
दिल्ली से भाई दरगाह मल जी साथी सिखों को लेकर 11 अगस्त सन् 1664 ई. को ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर पहुंचकर गुरआई की रस्मों को ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के समक्ष रखकर ‘बाबा बुड्ढा जी’ के सुपुत्र भाई गुतदित्ता जी के कर-कमलों से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के कपाल पर गुरता गद्दी का तिलक लगाकर आप जी को गुरता गद्दी का दायित्व प्रदान किया था।
गुरु के रूप में मनोनीत होने के पश्चात ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने 22 नवंबर सन् 1664 ई. को अपनी प्रथम धर्म प्रचार-प्रसार की यात्रा ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान से प्रारंभ की थी। इस स्थान से आप जी देशाटन करते हुए संगत को नाम-वाणी से जोड़कर और लोक-कल्याण के कार्यों को समर्पित कर सन् 1664 ई. को गुरु जी का पुनः कीरतपुर साहिब में पुनरागमन हुआ था।
कीरतपुर साहिब पहुंचने के पश्चात ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ की माता कृष्ण कौर जी, ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ की सुपत्नी एवं बाबा सूरजमल जी ने आप जी का सम्मान पूर्वक हार्दिक स्वागत किया गया था।
इस संपूर्ण इलाके की संगत ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की ज्योत ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ और ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ के पश्चात ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के दर्शन-दीदार करने हेतु अत्यंत उत्सुक (बेचैन) हो रही थी। जैसे ही संगत को ज्ञात हुआ कि गुरु जी का सहपरिवार कीरतपुर साहिब में आगमन हुआ है तो स्थानीय संगत बहुसंख्या में उपस्थित होकर गुरु जी के दर्शन-दीदार करने हेतु उपस्थित हुई थी।
कीरतपुर साहिब में अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में दीवान सजाया गया था। ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ की माता कृष्ण कौर जी ने गुरता गद्दी की महत्वपूर्ण वस्तुएँ जो आप जी को ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ और ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ से प्राप्त हुई थी, उन सभी वस्तुओं को एकत्र कर आप जी ने ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के समक्ष बहुत ही सम्मान और सत्कार के साथ प्रस्तुत कर दी थी। माता कृष्ण कौर जी ने उनके पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलकर वह तख़्त जिस पर विराजमान होकर ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ संगत को उपदेशित करते थे, साथ ही शस्त्र, कलगी, जिगा (पगड़ी पर कलगी के साथ सुशोभित होने वाला जेवर जिसे ‘कलंगी’ शब्द से संबोधित किया जाता है) और लंगर के बर्तन, तंबू, सतरंजी, गलीचे, छायावान आदि सभी मूल्यवान वस्तुएं जो आठवें गुरु जी उपयोग करते थे, आप जी ने तेग बहादुर साहिब जी’ को सुपुर्द कर दी गई थी। उस समय के जो गुरु साहिबान अपना दायित्व निभा कर गुरता गद्दी, जिस भविष्य के गुरु साहिबान को बक्शीश करते थे तो यह सभी मूल्यवान वस्तुएं उन्हें सेवा के साथ विरासत में दी जाती थी। ताकि वह इन सभी वस्तुओं का उपयोग लोक-कल्याण के लिए कर सकें।
इतिहास में यह भी संदर्भित है कि जो 2200 घुड़सवार ‘श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी’ की सेवा में समर्पित थे उन सभी घुड़सवारों को पुनः एकत्रित कर गुरु जी की सेवा में समर्पित कर दिया गया था।
उस समय बाबा सूरजमल जी की सेवा में उपस्थित मसंदों में ईर्ष्या की भावना प्रारंभ हो चुकी थी। गुरु जी स्वयं चाहते थे कि हमारे कारण किसी का दिल और मन नहीं दुखना चाहिए। गुरु जी ने माता नानकी जी से सलाह-मशवरा कर निर्णय लिया कि इस स्थान के आसपास ही अपना स्वयं का कोई स्थान निर्माण किया जाए, जिससे कि आपस में ईर्ष्या का भाव जागृत ना हो।
गुरु जी के द्वारा माता नानकी जी के वचनों अनुसार आसपास के कई स्थानों का निरीक्षण किया जा रहा था और नगर निर्माण की प्रक्रिया का विचार-विमर्श चल ही रहा था कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को एक पत्र पहाड़ी राजाओं की और से प्राप्त हुआ था। पहाड़ी राजाओं ने आपको इस पत्र के माध्यम से आमंत्रित किया था। पहाड़ी राजा क्यों गुरु जी से मिलना चाहते थे? ऐसा क्या कारण हुआ था कि गुरु जी को अचानक पहाड़ी राजाओं से मिलने जाना पड़ा था? इस संपूर्ण इतिहास को इस श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 37 के द्वारा पाठकों को अवगत करवाया जायेगा।
नोट– उस स्थान पर जहां ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ज्योति-ज्योत समाये थे। उस स्थान पर ‘गुरुद्वारा पातालपुरी’ साहिब सुशोभित है। उस स्थान पर जहां गुरु जी का निवास स्थान था, उस स्थान पर गुरुद्वारा ‘शीश महल’ साहिब सुशोभित है।