(प्रबंधक कमेटी गुरुद्वारा नानक झीरा साहिब द्वारा अगस्त / सितंबर 2025 में की गई निष्काम सेवाओं का ब्यौरा)-
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
लोक-कल्याण और परोपकार की अनन्य भावना को श्री गुरु रामदास जी ने अपने जीवन में जिस अद्भुत सात्विकता के साथ आत्मसात किया, वही आज भी सिख श्रद्धालुओं की आस्था और सेवाभाव का आधार बनी हुई है। सिमरन, धर्मशालाओं का निर्माण, लंगर सेवा, अस्पतालों और विद्यालयों की स्थापना, तथा भव्य गुरुधामों का सृजन—ये सभी कार्य गुरु साहिब की पावन प्रेरणाओं का ही प्रत्यक्ष प्रतिफल हैं। उनके अमृतमय आशीष और असीम कृपा से ही यह निष्काम सेवा की परंपरा वर्तमान में सशक्त है और भावी पीढ़ियों को भी आलोकित करती रहेगी।
ऐसा निष्काम सेवाभाव प्रत्येक मानव में होना चाहिए, क्योंकि समाज के प्रति की गई निस्वार्थ सेवाएँ ही तन और मन की वास्तविक पवित्रता का उदय करती हैं। भक्ति और सेवा को मुक्ति का सच्चा साधन माना गया है, और निष्काम सेवाएँ आत्मिक उन्नति की प्रथम सीढ़ी होती हैं। यही सेवाएँ जीवन को समग्रता और प्रेममयता से परिपूर्ण करती हैं।
गुरमत दृष्टि में व्यक्तिगत जीवन की सर्वोच्च सेवा, लोक-सेवा मानी गई है। इसके विपरीत, लोभ और स्वार्थ से प्रेरित सेवा केवल चाकरी अथवा नौकरी के समान बनकर रह जाती है। इसलिए, मानव मात्र के प्रति की गई सेवा ही सच्ची निष्काम सेवा कहलाती है। गुरबाणी का अमर वचन है—
अकली पडि् कै बुझीऐ अकली किजै दानु।
(अंग क्रमांक 1245)
अर्थात्, उत्तम प्रकार से विद्या ग्रहण करने से ही सच्ची बुद्धि प्राप्त होती है और बुद्धिमानी से किया गया दान ही वास्तविक अर्थों में सार्थक बनता है। यही विवेकपूर्ण दान और निष्काम सेवा मानव जीवन को परम उद्देश्य की ओर अग्रसर करती है।
गुरबाणी के अमर संदेश—
सतिगुर की सेवा सफल है जे को करे चितु लाइ॥
(अंग क्रमांक 552)
अर्थात सद्गुरु की सेवा तभी सफल है, जब कोई व्यक्ति से मन लगाकर श्रद्धा से करता है| निश्चित ही गुरवाणी की उज्ज्वल छाया में प्रबंधक कमेटी गुरुद्वारा नानक झीरा साहिब जी ने संपूर्ण संगत के समक्ष निष्काम सेवा का एक अनुपम, आदर्श और प्रेरक उदाहरण स्थापित किया है। यह अद्वितीय सेवा-परंपरा निःसंदेह श्री गुरु रामदास साहिब जी से प्राप्त दिव्य प्रेरणाओं का ही प्रतिफल है।
डॉ. बलबीर सिंह जी के दूरदर्शी नेतृत्व में कमेटी ने गुरुद्वारा साहिब परिसर की लगभग 12 एकड़ 31 गुंठा भूमि पर मानव-कल्याण का एक महान उपराला आरंभ किया। इस पवित्र भूमि पर लगभग 240 से अधिक भूखंड, प्रत्येक लगभग 40×30 वर्गफुट आकार के, आवंटित किए गए। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया गुरु दरबार को साक्षी मानकर निष्पक्ष लॉटरी पद्धति से सम्पन्न हुई।
सबसे पहले उन सेवादारों की सूची बनाई गई, जो 10 वर्षों से भी अधिक गुरुद्वारा साहिब में तन–मन–धन से सेवा कर रहे है—जैसे स्वीपर, इलेक्ट्रिशियन, वॉचमैन, प्लंबर, सिक्योरिटी गार्ड इत्यादि। अनेक परिवार तो ऐसे थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गुरु-घर की सेवा में अर्पित कर दिया था। इन तपस्वी सेवाधारियों को प्राथमिकता देते हुए उनके नाम सूचीबद्ध किए गए। विशेष रूप से बीदर ज़िले और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के सिकलीगर परिवार, जिनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत नाजुक है, को भी इस योजना में सम्मान पूर्वक सम्मिलित किया गया। परिणामस्वरूप ऐसे 45 सिकलीगर परिवारों को भी यह पावन भूखंड प्रदान किए गए, ताकि वे गुरुद्वारा परिसर में बसकर स्थिर जीवन व्यतीत कर सकें।
यह गौरवशाली कार्य संत बाबा निरंजन सिंह जी और संत बाबा राम सिंह जी की प्रत्यक्ष देख-रेख में सम्पन्न हुआ, जिन्होंने हर चरण में निष्पक्षता और पारदर्शिता का ध्यान रखा। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार आज के बाज़ार मूल्य पर प्रत्येक भूखंड की कीमत लगभग 45 से 50 लाख रुपये आँकी जाती है, किंतु गुरु-घर ने इसे निःशुल्क सेवा-भाव से समर्पित किया।
इस अद्वितीय उपक्रम ने गुरु-पंथ खालसा के इन सेवा धारियों को आत्मबल, सेवा-प्रवृत्ति और पंथ-निष्ठा का अमूल्य संबल प्रदान किया है। वास्तव में, सतिगुरु की सेवा तभी सफल होती है, जब वह चित्त को अर्पित कर श्रद्धा पूर्वक की जाए—गुरबाणी की यह शिक्षा यहाँ प्रत्यक्ष साकार रूप में दिखाई देती है।
इस प्रकार, गुरुद्वारा नानक झीरा साहिब की प्रबंधक कमेटी ने निष्काम सेवा को नया आयाम प्रदान करते हुए सम्पूर्ण विश्व को यह संदेश दिया है कि सच्ची सेवा वही है, जो बिना किसी भेदभाव, लोभ या प्रतिफल की अपेक्षा के, ईश-चरणों में अर्पित की जाए।


शिक्षा का उपहार, जीवन का उद्धार
गुरबाणी का अमर संदेश है—
विदिआ विचारी ताँ परउपकरी|| (अंग क्रमांक 356)
अर्थात् जब विद्या का मंथन और मनन किया जाता है, तभी मनुष्य वास्तविक अर्थों में परोपकारी बन पाता है। इसी दिव्य वाणी को जीवन में उतारते हुए, प्रबंध कमेटी गुरुद्वारा नानक झीरा साहिब की सहयोगी संस्था गुरु नानक देव इंजीनियरिंग कॉलेज, बीदर ने शिक्षा–सेवा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।
देश की प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थाओं में अग्रगण्य यह संस्था प्रत्येक वर्ष उन गुरमुख और होनहार सिख विद्यार्थियों को चुनता है, जिनकी प्रतिभा तो उज्ज्वल है पर आर्थिक परिस्थितियाँ उच्च शिक्षा का सपना पूरा करने में बाधा बनती हैं। यहाँ चार वर्ष का सम्पूर्ण इंजीनियरिंग कोर्स पूर्णत: निशुल्क कराया जाता है। अध्ययन के साथ-साथ हॉस्टल, भोजन व्यवस्था और आवश्यक शिक्षण सामग्री का संपूर्ण व्यय भी संस्था ही वहन करती है। चयन की समूची प्रक्रिया महाराष्ट्र के पूर्व डी.जी.पी. डॉ. पी.एस. पसरिचा की देखरेख में मुंबई में सम्पन्न होती है। इस वर्ष भी देश के विभिन्न प्रांतों से उत्साहपूर्वक भाग लेने वाले अनेक विद्यार्थियों में से 22 गुरसिख युवाओं का चयन कर उन्हें यह अमूल्य छात्रवृत्ति प्रदान की गई।
संस्था की वाइस चेयरपर्सन डॉ. रेशम कौर के अनुसार, इस अवसर का लाभ उठाने वाले अनेक विद्यार्थी देश-विदेश की प्रतिष्ठित कंपनियों में उत्कृष्ट पदों पर कार्यरत हैं और कुछ तो दो करोड़ रुपए तक का वार्षिक पारिश्रमिक प्राप्त कर रहे हैं। यह केवल शिक्षा नहीं, अपितु पूरे परिवार और गुरु पंथ खालसा के नाम को आलोकित करने का अद्भुत माध्यम बन रहा है।
विशेष उल्लेखनीय यह है कि छात्रवृत्ति प्राप्त ये सभी विद्यार्थी हॉस्टल परिसर स्थित गुरुद्वारा साहिब की सेवा-संभाल को अपनी प्राथमिक साधना मानते हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश और सुखासन, नियमित नितनेम और कीर्तन, सब वे स्वयं करते हैं। इस प्रकार वे तकनीकी शिक्षा के साथ-साथ गुरमत और अध्यात्म का भी गहन संस्कार ग्रहण कर, आदर्श नागरिक और समाज के सेवक बनते हैं।
निस्संदेह, गुरु नानक देव इंजीनियरिंग कॉलेज की यह निष्काम सेवा केवल डिग्री देने तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन को प्रकाशमान करने वाली परोपकार की सतत धारा है—एक ऐसा जीवंत उदाहरण, जो गुरबाणी के संदेश को युगों तक प्रतिध्वनित करता रहेगा।

सेवा का अद्वितीय उदाहरण : ₹11 लाख की राहत राशि
निष्काम सेवाओं की इसी श्रृंखला में आज पंजाब की पीड़ा को अनदेखा करना असंभव है। पंजाब—जिसे भारत की आत्मा और शौर्य का प्रतीक माना जाता है, वर्तमान समय में भीषण आपदा से गुजर रहा है। इस सदी की सबसे विकराल बाढ़ ने वहाँ के जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। हजारों परिवार अपने घर-बार, आजीविका और जीवन-निर्वाह की कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। चारों ओर असहायता और संकट का दृश्य उपस्थित है, किंतु ऐसे समय में सेवा और सहयोग का हाथ बढ़ाना ही सच्ची मानवता का परिचायक है।
इसी करुण पुकार को आत्मसात करते हुए, प्रबंधक कमेटी गुरुद्वारा नानक झीरा साहिब (बीदर, कर्नाटक) ने अपनी सेवा-भावना का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। कमेटी ने ₹11 लाख की सहायता राशि का चेक श्रद्धापूर्वक संत बाबा बलविंदर सिंह जी और संत बाबा नरिंदर सिंह जी (प्रमुख, गुरुद्वारा लंगर साहिब, अबचल नगर, हजूर साहिब नांदेड़) और उनकी सेवा-निष्ठ टीम को भेंट किया। इस राशि की पावन सुपुर्दगी स्वयं कमेटी के प्रधान डॉ. बलबीर सिंह जी ने अपने कर-कमलों से की। इस अवसर पर गुरुद्वारा हजूर साहिब के प्रमुख संत राम सिंह जी और प्रबंधक कमेटी की उपस्थिति ने आयोजन को और अधिक गरिमामयी बना दिया। यह केवल एक औपचारिक सहयोग नहीं था, बल्कि पंजाब के बाढ़-पीड़ितों के प्रति प्रेम, करुणा और सहयोग का जीवंत प्रमाण था।
निश्चित ही, गुरुद्वारा नानक झीरा साहिब (बीदर, कर्नाटक) की यह आत्मीय पहल और निभाई जा रही निष्काम सेवाएँ आज पूरे देश में एक आदर्श और अद्वितीय उदाहरण के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी हैं। यह सेवा-संस्कृति केवल आर्थिक सहयोग तक सीमित नहीं, बल्कि मानवता के संवेदनशील हृदय की पुकार है।
आओ, हम सभी संगत मिलकर अरदास करें कि वाहिगुरु जी इस पवित्र सेवा में समर्पित कमेटी को सदा चढ़दी कला में रखें और उनकी सेवाओं का प्रकाश युग-युगांतर तक मानवता का पथ आलोकित करता रहे। गहन श्रद्धा और आदर सहित कहना होगा कि प्रबंधक कमेटी गुरुद्वारा नानक झीरा साहिब ने जो दृष्टांत प्रस्तुत किया है, वह केवल संस्थागत कार्य नहीं, अपितु एक जीवंत प्रेरणा है। समाज-सेवा का ऐसा दिव्य उदाहरण, जिसमें आस्था, करुणा और त्याग का संगम है, दुर्लभ ही देखने को मिलता है। यह कमेटी न केवल अपने क्षेत्र के लिए, अपितु पूरे देश और समाज के लिए गर्व का विषय है। वास्तव में, यह कमेटी सेवा और समर्पण की उस मशाल की तरह है, जिसकी ज्योति आने वाली पीढ़ियों को सदा प्रेरित करती रहेगी।

