‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब’ जी ‘हकीमपुर’ से चलकर लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर आप जी ने स्वयं का नवीन निवास स्थान निर्माण किया था। इस स्थान पर गुरु जी पहले भी पधार चुके थे। गुरु जी छप्पर वाले निवास स्थान को निवास के लिए प्राथमिकता देते थे। उस समय में वर्तमान समय के जैसे गंदगी से भरपूर छप्पर नहीं होते थे। वर्तमान समय से 400 वर्षों पूर्व प्राकृतिक वातावरण बहुत सुंदर था और पानी के स्रोत प्राकृतिक रूप से तल जमीन पर निर्मित होते थे। गुरु जी की इस पसंदीदा जगह पर स्वच्छ पीने के पानी का बहुत बड़ा स्रोत प्राकृतिक रूप से मौजूद था।
जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान पर पधारे थे तो कुछ चरवाहों के बच्चों ने इस स्थान पर निर्मित एक थड़े (प्राकृतिक रूप से बने तख़्त) के ऊपर गुरु जी को विराजमान किया था। इस स्थान पर पुरातन एक ‘पलाह’ का वृक्ष(पलाश का वृक्ष) हुआ करता था। पलाश के वृक्ष को ‘जंगल की आग’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है। वर्तमान समय में हम से गुरु जी की पुरानी निशानियां की सेवा-संभाल ठीक से नहीं हो पाई है। आने वाले 300/400 वर्षों में आज हम जो गुरु जी की निशानियां और स्थान वीडियोग्राफी के द्वारा दर्शन कर रहे हैं शायद वह भी नष्ट हो जाएंगी।
इस स्थान पर गुरु जी की रिहायशी का समुचित प्रबंध किया गया था। इस स्थान पर प्रत्येक दिन दीवान सजना आरंभ हो चुके थे। दूर-दराज से संगत इन दीवानों में हाजिरी भरने आ रही थी। जब गुरु जी ने संगत से जाना कि इस स्थान पर रोजमर्रा के उपयोग के लिए पानी की सुविधा पर्याप्त नहीं है। आसपास के ग्रामों में भी पानी की किल्लत से आम लोगों का जीवन ग्रस्त था। गुरु जी ने आम लोगों के विनम्र निवेदन और माता नानकी जी के वचनों अनुसार आसपास के ग्रामों में संगत की सुविधा अनुसार 84 कुओं का निर्माण किया था।
गुरु जी को जो ‘दसवंद’ (कीरत कमाई का दसवां हिस्सा) की माया भेंट स्वरूप मिलती थी, गुरु जी उस माया को लोक कल्याण के लिए अर्पित कर देते थे। उस समय में 84 कुओं का निर्माण करना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी। उस समय में किसी स्थान पर जब जमींदार समस्त ग्राम निवासियों की मदद से एक कुएं का निर्माण करता था तो बहुत बड़ा खर्च हुआ करता था कारण एक कुएं के पानी के स्त्रोत से पूरे इलाके को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध हो जाता था। उस पूरे इलाके में 84 कुओं का स्वयं के कर-कमलों से निर्माण कर गुरु जी ने बहुत बड़ा परोपकार का कार्य किया था।
इस स्थान पर ही गुरु जी ने माता गुजर कौर जी के नाम से एक कुएं का निर्माण किया था। वर्तमान समय में भी यह कुआं उत्तम स्थिति में मौजूद है। जब स्थानीय संगत को ज्ञात हुआ कि गुरु जी इस स्थान पर एक नया नगर आबाद करना चाहते हैं तो एक स्थानीय सिख ने गुरु जी के इस महान कार्य के लिए स्वयं के अधीन 775 एकड़ जगह गुरु जी को भेंट स्वरूप प्रदान कर दी थी। उस सिख ने गुरु जी को विनम्र निवेदन करते हुए कहा था कि पातशाह जी मेरे पास प्रभु का दिया हुआ सब कुछ है। आप जी लोक-कल्याण के कार्य के लिए मेरे द्वारा दी गई इस सेवा को स्वीकार करें।
इस स्थान पर गुरु जी ने एक नगर का निर्माण किया था और उस नगर को नाम दिया था ‘चक गुरु का’। गुरु जी ने उपस्थित संगत को वचन किए थे कि इस नगर को आबाद करना है। इस नगर को ‘चक गुरु का’ नाम गुरु जी ने स्वयं के मुखारविंद से दिया था।
जिस स्थान पर गुरु जी विराजमान हुए थे उसी स्थान पर वर्तमान समय में गुरुद्वारा ‘गुरु पलाह साहिब जी’ स्थित है। जिस स्थान पर गुरु जी के घोड़ों को खुटियों से बांधा जाता था, उस स्थान पर वर्तमान समय में उन पांच खुटियों के अवशेष मौजूद हैं। जिसे स्थानीय संगत ने कांच के बने हुए बक्से में संजोकर रखा है। वर्तमान समय में एक खुटीं खड़ी हुई है और चार खुटियां जो कि ध्वस्त हो गई थी। उन्हें कांच के बक्से में दर्शनों के लिए संजोकर रखा गया है।
गुरु जी भविष्य को दृष्टिक्षेप करते हुए इस पूरे इलाके में विचरण/भ्रमण करना चाहते थे। इस स्थान से गुरु जी चलकर ग्राम कट से गुजरते हुए (इस ग्राम कट में भी गुरु जी का स्थान मौजूद है) अपनी भविष्य की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु प्रस्थान कर गये थे।