बेबे का धैर्य, आस्था और चढ़दी कला
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
पंजाब का एक गाँव बाढ़ की मार से कराह रहा था। चारों ओर कीचड़, टूटी-फूटी झोपड़ियाँ, बह गई फसलें और उजड़ चुके आँगन! सब कुछ विनाश की तस्वीर बन चुके थे। परंतु इस उजाड़ में भी, एक ऊँचे टीले पर बैठी बेबे का चेहरा किसी दीपक की तरह जगमगा रहा था।
इसी दृश्य के बीच टीवी चैनल की एक नवयुवती कैमरे के साथ वहाँ पहुँची। उसके मन में प्रश्नों का सैलाब था। वह धीरे से आगे बढ़ी और बेबे को बोली-
“बेबे जी, सत श्री अकाल! हम टीवी चैनल से आए हैं, आपका हाल-चाल पूछने।”
बीबी ने उसे देखते ही स्नेह से भरपूर आशीर्वाद दिया-
“जुग-जुग जीओ बेटी, परमात्मा तुम्हें हर बला से बचाए। जवानी के सुख भोगो। पहले आओ, कुछ चाय-पानी पी लो।”
लड़की ने विनम्रता से हाथ जोड़ दिए-
“नहीं बेबे, हम चाय-पानी पी कर आए हैं। हम तो बस आपसे आपका हालचाल जानना चाहते हैं।”
बेबे ने अपनी ओढ़ी हुई चादर सँभाली और मुस्कराकर बोलीं-
“हाँ बेटा, पूछो, क्या पूछना है?”
युवती ने थोड़ी हिचकिचाहट के बाद कहा-
“बेबे जी, हमें खबर मिली है कि आपका सब कुछ उजड़ गया है। घर भी बह गया, मवेशी भी बह गए, फसलें भी और खेतों की हरियाली भी…” अब?
बेबे की आँखों में हल्की नमी तैर गई, पर आवाज दृढ़ निश्चयी रही-
“नहीं बेटी, सब कुछ नहीं उजड़ा। हमारा धैर्य अभी भी जीवित है। हमारा धर्म, हमारी आस्था, हमारी पंजाबी कौम अब भी हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। उस अकाल पुरख वाहिगुरु जी ने हमें बहुत कुछ दिया है। हम उजड़े नहीं हैं, अपितु और मजबूत हो गए हैं।”
लड़की ने फिर सहज प्रश्न किया-
“बेबे जी, आप सरकार से क्या माँगना चाहेंगी?”
बेबे ने आसमान की ओर देखा, मानो किसी अदृश्य शक्ति से संवाद कर रही हों। उनके होंठों से शब्द निकले-
“बेटी, हम सरकार से क्या माँगें? माँगना तो उसी से शोभा देता है, जो सच्चा साथ देने वाला है। सरकार दे भी दे तो वह कुछ दिनों का सहारा होगा। परन्तु मेरा वाहिगुरु- वह तो हर बार नई ज़िंदगी देता है। वो ही बेटियाँ देता है, वो ही बेटे देता है, वो ही अनाज और धूप-छाँव देता है। हमारा तो सीधा रिश्ता उस वाहिगुरु से है। सरकार को कह दो— अगर उसे कुछ करना होगा तो वह खुद आ जाएगी। हमें तो उस वाहिगुरु के ही दर से सब कुछ मिलता है। वो ही हमारा सहारा है। शुक्र है, शुक्र है, शुक्र है… उसकी असीम कृपा है बेटी!”
बेबे के शब्द सुनकर युवती स्तब्ध रह गई! उसे लगा मानो यह वृद्धा बाढ़ में डूबे गाँव की नहीं, अपितु आस्था, धैर्य और चढ़दी कला की अडिग प्रतिमा हो। कैमरे के पीछे खड़े लोग भी निशब्द हो गए।
उस पल सभी ने महसूस किया-
सच्चा घर मिट्टी का नहीं होता, फसल और पशुधन का नहीं होता। सच्चा घर तो विश्वास है, सच्चा धन तो धर्म है, और सच्ची संपत्ति वह आस्था और चढ़दी कला है जो विपत्ति के बीच भी चट्टान के भाँति अडिग खड़ी रहती है। टीवी चैनल के लोगों ने विदाई ले ली और बेबे अत्यंत आस्था एवं चढ़दी कला के साथ मधुर आवाज में गुरुवाणी की निम्नलिखित पँक्तिया गुनगुने लगी-
पूता माता की आसीस॥
निमख न बिसरउ तुम् कउ हरि हरि सदा भजहु जगदीस||1|| रहाउ||
(अंग क्रमांक 496)
अर्थात् हे पुत्र! तुम्हें यह माता की आशीष है कि एक क्षण भर के लिए भी तुझे भगवान विस्मृत न हो और तुम सदैव ही जगदीश का भजन करते रहो।॥ 1 ॥ रहाउ ॥
(अद्वितीय सिख विरासत/गुरबाणी और सिख इतिहास,https://arsh.blog/) (टीम खोज–विचार की पहल)।
वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतेह!
