मेरा एक गुरु, उसका एक ग्रंथ

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मेरा एक गुरु, उसका एक ग्रंथ

मेरा एक गुरु, उसका एक ग्रंथ, वही मेरा साहिब, वही मेरा हज़ूर।

वही मेरा साथ, वही मेरा नूर। वही मेरा यार, जो हर क्षण संग।

वही ज्ञान से भरपूर, वही हर सवाल का जवाब।

वही मेरी मंज़िल, वही मेरा रास्ता।

वही मेरी पूजा, वही मेरा आसरा।

मेरा एक गुरु, वही मेरा संत, वही मेरा सतगुरु।

उसकी वाणी मेरे जीवन का सार, उसके शब्द मेरे दिल की पुकार।

वही तख़्त नशीन, वही राजाओं का राजा।

वही मेरा निशान, वही मेरे जीवन का प्रतीक।

वही मेरा रंग, जो हर पल मुझे रंगता है।

वही मेरे सांसों की तरंग, वही मेरे जीवन की उमंग।

वही मेरी कृपा, वही मेरी आन।

वही मेरा बाबा, वही मेरा मान।

उसके बिना जीवन अधूरा, उसके बिना सब कुछ सूना।

वही मेरा कीर्तन, वही मेरा कीर्तनिया।

उसकी धुनें ही मेरी आत्मा का संगीत।

वही मेरा राग, वही मेरा रागी।

मेरा एक गुरु, उसका एक ग्रंथ।

उसके शब्दों में संसार का सारा ज्ञान।

वही मेरी दृष्टि, वही मेरी समझ।

औरों के हों भले ही कई गुरु, कई ग्रंथ।

मेरा केवल एक, मेरा केवल तू।

वहीं मेरे हर दिन का प्रकाश, वहीं मेरी हर रात का सहारा।

वहीं ही मेरा आरंभ, वहीं मेरा अंत।

तेरे बिना जीवन एक अंधकारमय यात्रा।

मेरा एक गुरु, उसका एक ग्रंथ।

वही मेरा साहिब, वही मेरा हज़ूर।

धन्य-धन्य “श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी”।

 


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