22 नवंबर सन् 1664 ई. को ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अमृतसर पहुंचे थे। आप जी का दरबार साहिब में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था। आप जी ‘दरबार साहिब के बाहर बने हुए थडे़ पर विराजमान हुए थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘थडा साहिब’ स्थित है। इस स्थान से प्रस्थान कर गुरु जी लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर विश्राम के लिए रुके थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘दमदमा साहिब’ सुशोभित है। इस स्थान से आप जी चलकर माता हरो जी के खेतों में पहुंचे थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘गुरिआना साहिब’ सुशोभित है। इस स्थान से आप जी चलकर रात्रि विश्राम के लिए ग्राम वल्ले पहुंच गए थे।
इस ग्राम वल्ले में आप जी का रात्रि विश्राम का समुचित प्रबंध किया गया था। गुरु जी की सेवा में उपस्थित मक्खन शाह लुबाना के साथी-सेवादारों की और से आसपास तंबुओं को लगाकर पूरे काफिले का रहने का समुचित प्रबंध किया गया था। गुरु जी की इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा में इस काफिले के साथ तंबू, लंगर और यात्रा संबंधी सभी आवश्यक वस्तुओं का काफिले में बहुत अच्छा समुचित प्रबंध किया गया था।
22 नवंबर सन् 1664 ई. को गुरु जी ने ग्राम वल्ले में माता हरो जी के निवास पर विश्राम के लिए पधारे थे। शाम के समय आसपास की सभी संगत उपस्थित होकर गुरु जी के दर्शन-दीदार कर रही थी। रात सुख से व्यतीत हुई थी। 23 नवंबर सन् 1664 ई. को अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में पुनः दीवान सजा था। गुरु जी ने स्वयं इस दीवान में ‘आसा जी दी वार’ का कीर्तन कर संगत को निहाल किया था। आसपास की सभी संगत इस दीवान में उपस्थित थी।
दूसरी और अमृतसर में जब स्थानीय संगत को यह ज्ञात हो चुका था कि हरि जी ने गुरु जी ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ से अभद्र व्यवहार कर गुरु जी को ‘दरबार साहिब’ में प्रवेश नहीं करने दिया था। गुरु जी ‘दरबार साहिब’ के थडे़ पर विराजमान होकर अपनी भविष्य की यात्रा के लिए प्रस्थान कर गए थे।
संगत की और से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की जानकारी ली गई थी और संगत को ज्ञात हुआ कि गुरु जी उस वर्तमान समय में अमृतसर के समीप ग्राम वल्ले में अपने काफिले के साथ माता हरो जी के निवास स्थान पर संगत का दर्शन- दीदार कर रहे हैं। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘कोठा साहिब’ स्थित है।
ग्राम वल्ले नामक स्थान पर गुरु जी ने 17 दिवस निवास किया था। अमृतसर से संगत ग्राम वल्ले में उपस्थित हो रही थी। उपस्थित संगत ने गुरु जी से माफी मांगी थी और कहा था कि पातशाह जी आप यहां उपस्थित हैं; इसका हमें ज्ञान नहीं था। उस समय उपस्थित संगत ने दरबार साहिब पर कब्जा करके बैठे मसदों और हरि जी को लानत दी थी।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने शांत चित्त से संगत को उत्तर दिया था कि वह अपनी गलतियों का आप भुगतान करेंगे। आप सभी आपस में मिलजुल कर प्यार और एकता बनाए रखें। परमात्मा का नाम जपे, गुरबाणी को पढ़े। उस समय नित्य-प्रतिदिन माता हरो जी के निवास पर दीवान लगते थे और बहुसंख्या में संगत उपस्थित होती थी।
उस समय उपस्थित संगत ने गुरु जी से प्रश्न किया था कि पातशाह जी मौत के भय से कैसे बचा जा सकता है? कौन से उपाय किए जाने चाहिए? जिससे मौत का डर दूर हो! उस समय गुरु जी ने अपने मुखारविंद से एक सबद् (श्लोक) उद्गारित किया था।
सोरठ महला 9
प्रानी कउनु उपाउ करै॥
जा ते भगति राम की पावै जम को त्रासु हरै॥रहाउ॥
कउनु करम बिदिआ कहु कैसी धरमु कउनु फुनि करई॥
कउनु नामु गुर जा कै सिमरै भव सागर कउ तरई॥
कल मै एकु नामु किरपा निधि जाहि जपै गति पावैं॥
अउर धरम ता कै सम नाहनि इह बिधि वेदु बतावै॥
सुखु दुखु रहत सदा निरलेपी जा कउ कहत गुसाई॥
सो तुम ही महि बसै निरंतरि नानक दरपनि निआई॥
(अंग क्रमांक 632)
अर्थात् प्राणी (इंसान) ऐसा क्या उपाय करें? कि जिसके द्वारा उसे परमात्मा की प्रेममयी सेवा प्राप्त हो और उसका मौत का डर हमेशा के लिए दूर हो जाए। इंसान को क्या अमल करना होगा? कौन सी ऐसी विद्या है? कौन से ऐसे संस्कार है? वह कौन सा नाम है? जिस की आराधना करने से इंसान भयानक संसार रूपी समुद्र को आसानी से पार कर लेगा।
कलयुग में एक प्रभु-परमात्मा का ही नाम है जिसके उच्चारण से इंसान मुक्त हो जाता है कोई और धार्मिक संस्कार इस के तुल्य नहीं हो सकते हैं। ऐसा वेद के ज्ञान से भी ज्ञात होता है। वह आलम स्वामी की जो सुख-दुख रहित है, वह ही प्रभु-परमात्मा है। है नानक! वह स्वामी आईने के अक्स की तरह तुम्हारे स्वयं के अंदर मौजूद है।
इस सबद् (श्लोक) को उद्गारित कर गुरु जी ने संगत को उपदेशित किया था। इस ग्राम वल्ले में 17 दिवस रहकर गुरु जी धर्म प्रचार-प्रसार के लिए प्रस्थान कर गए थे। इस स्थान पर बीबीयों (महिलाओं) ने संगत की बहुत सेवा की थी। प्रसन्न होकर गुरु जी ने वचन किए थे–
‘वल्ला गुरु का गल्ला’
‘माइआं रब रजाईआं’ भगती लाइआं !
उपरोक्त वचन अमृतसर और स्थानीय ग्राम वल्ला की संगत के लिए गुरु जी ने किए थे।