प्रसंग क्रमांक 23 : धीरमल के द्वारा श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी पर हुए आक्रमण का इतिहास।

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भाई मक्खन शाह लुबाना दिल्ली से 8 अक्टूबर सन् 1664 ई. को ‘बाबा बकाले’ नामक स्थान पर पहुंचे थे। यहां पर पहुंचने पर ज्ञात हुआ था कि ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ के अंतिम वचन ‘बाबा बकाले’ के अनुसार इस स्थान पर कई झूठे गुरु गद्दी लगाकर आसीन हैं और स्वयं को आप ही 9वें गुरु के रूप में सुशोभित कर रहे है। भाई मक्खन शाह लुबाना पारखी थे क्योंकि आप जी स्वयं अपनी जीवन यात्रा में पांचवें ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के दर्शन किए थे और आप जी ने छठे गुरु साहिब जी के जीवन समय से होते हुए आप जी को सातवें गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ की प्रत्यक्ष चार महीने सेवा करने का शुभ अवसर भी प्राप्त होता था। भाई मक्खन शाह लुबाना बहुत अच्छी तरह से जानते थे कि गुरु भिखारी नहीं होता है:गुरु तो दाता होता है। आसीन गुरुओं ने जब भाई मक्खन शाह लुबाना का रुबाब और ठाट-बाट देखे तो सारे आसीन झूठे गुरुओं को लालच आ गया था कारण मक्खन शाह लुबाना एक धनी व्यापारी था। उस समय उसके 200 जहाजी बेड़े चलते थे। साथ ही हमेशा 500 सैनिकों का सैन्य बल मक्खन शाह लुबाना के साथ हमेशा चलता था। इस कारण से झूठे आसीन गुरुओं को लालच आया हुआ था। पारखी मक्खन शाह लुबाना ने आसीन सभी झूठे गुरुओं के समक्ष दो-दो मोहरे भेंट की थी परंतु आपको  इन आसीन गुरुओं पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ था।

 आप जी ने दूसरे दिवस यानी कि 9 अक्टूबर सन् 1664 ई. को जब ‘श्री गुरु  तेग बहादुर साहिब जी’ के दर्शन किए तो आपकी सच्चे गुरु की खोज पूरी हो चुकी थी। आप जी ने निवास स्थान की ऊँची छत पर चढ़कर घोषणा की थी। जिसे इस तरह से इतिहास में अंकित किया गया है–

चढ़ उचे मंदर ऐह सुनाइआ।

आओ गुरु सिख में सतिगुरु लाधा।

जाकी महिमा अगम अगाधा।

इतिहासकार खुशवंत राय ने इस घोषणा को इस तरह से अंकित किया है–

 गुरु लाधो रे! गुरु लाधो रे!

 भोली संगत गुमराह होकर भटको मत, सच्चा गुरु मिल चुका है।

सच्चे गुरु की खोज के पश्चात संगत गुरु जी के दर्शन-दीदार को आने लगी थी।  संगत के द्वारा गुरु जी की दरबार में भेंट वस्तुओं को अर्पण किया गया था। गुरु जी द्वारा भी दर्शनाभिलाषी संगत को नाम और वाणी से जोड़ा जा रहा था।

 भाई मक्खन शाह लुबाना उस समय अपनी स्थापित छावनी में लौट गए थे। झूठे आसीन गुरु धीरमल को भी ज्ञात हो चुका था कि मेरी पोल खुल चुकी है। मैं बाजी हार चुका हूं। धीरमल ने जब अपने मसंदों से वार्तालाप किया तो मसंदों के द्वारा उस समय धीरमल को भड़काया गया था कि अब ‘एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती है’ अब या तो आप रहोगे या तेग बहादुर!

अंत में धीरमल ने ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को जान से मारने का षड्यंत्र रचा था। धीरमल के द्वारा 25 बंदूकधारी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के ऊपर आक्रमण करने के लिए भेजे गए थे। इन आक्रमणकारियों ने घोषणा देकर जोरदार आक्रमण किया था। उपस्थित संगत घबराकर इधर-उधर भागने लगी थी। गुरु के दर पर आई हुई सभी मूल्यवान वस्तुओं को लूट लिया गया था। उस समय ‘सिंयै’ नामक मसंद ने निशाना लगाकर ‘श्री गुरु  तेग बहादुर साहिब जी’ के ऊपर गोली चलाई थी।

 अकाल पुरख की नियति से गुरु जी ने स्वयं का बचाव किया था परंतु फिर भी गोली गुरु जी के शीश को छूकर निकल गई थी (कुछ इतिहासकारों का मानना है कि गोली कंधे को छूकर निकली थी)। गुरु जी इस अचानक हुए आक्रमण से साफ बच गए थे। उस समय धीरमल अभद्र शब्दावली का उपयोग कर गुरु जी को भले-बुरे वचन कह रहा था।

 जब बंदूक की गोली से वार किया गया तो उस समय ‘माता नानकी जी’ निडर होकर धीरमल के समक्ष उपस्थित हुई और उन्होंने धीरमल से कहा यदि तुझ में हिम्मत है तो सामने आकर युद्ध कर, फिर देखना मेरे पुत्र की बहादुरी! मेरा पुत्र ‘तेग का धनी’ कहलाता है। जो यदि तुम्हारे हिमायतियों में दम है तो पीछे से हमला मत करो, सामने आकर आमने-सामने का युद्ध करो।

 ‘माता नानकी जी’ के अचानक बीच में आने से उपस्थित सिख अचानक हुए हमले से संभल चुके थे परंतु उस समय तक धीरमल के हिमायतियों ने गुरु घर में भेंट स्वरूप आई सभी वस्तुओं को लूट लिया था।

  संगत के द्वारा भेंट स्वरूप कई मूल्यवान वस्तुओं को लूट लिया गया था। जिसमें कीमती घोड़े, धन और शस्त्र प्रमुख रूप से थे। इन सभी मूल्यवान वस्तुओं को लूट कर धीरमल के डेरे पर ले जाया गया था।

 इस अचानक घटी घटना का जब भाई मक्खन शाह लुबाना को ज्ञान हुआ तो उन्होंने 500 शस्त्र धारी, सूरमा योद्धाओं के सैन्य बल के साथ धीरमल के डेरे पर पहुंचकर आक्रमण कर दिया था। इस मुंहतोड़ जवाब के कारण धीरमल बुरी तरह से पराजित हो गया था। धीरमल के द्वारा लूटी गई सभी मूल्यवान वस्तुओं पर पुनः इन शस्त्रधारी सैनिकों ने कब्जा कर लिया था। सैनिकों ने धीरमल की मुश्कों को बांध दिया था और उसे लेकर गुरु दरबार की और चल पड़े थे।

धीरमल ने भाई मक्खन शाह लुबाना को निवेदन किया कि मैं ‘गुरु पौत्र’ हूं और मेरी इस तरह से मुश्कें बांध कर मेरा तमाशा ना किया जाए। उस समय भाई मक्खन शाह लुबाना की और से नरम रुख अपनाया गया और सैनिकों के घेरे में धीरमल को  ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के समक्ष हाजिर किया गया था।

 मक्खन शाह लुबाना ने अपना फर्ज अदा किया था और गुरु जी के चरणों में निवेदन किया था इन दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए। ‘वैराग्य की मूरत’ शांत चित गुरु जी ने उस समय जो वचन किए थे उसे इस तरह से अंकित किया गया है–

भलो धीरमल धीर जी, भलो धीरमल धीर।

अर्थात भाई धीरमल तेरा भला हुए, औ धीरमल तेरा भला हुए।

   ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपनी वाणी में अंकित किया है–

मिठ बोलड़ा जी हरि सजणु सुआमी मोरा।

हउ संमलि थकी जी ओहु कदे ना बोलै कउरा।

कउड़ा बोलि न जानै पुरन भगवानै अउगन को न चितारे॥

(अंग क्रमांक 784)

जब धीरमल ने आपसे माफी मांगी तो आप जी ने गुरुवाणी के अनुसार —

जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै इहु बिरदु सुआमी संदा॥

                  (अंग क्रमांक 544)

दोषी धीरमल को गुरु जी ने बक्श दिया था और गुरु जी ने उस समय वचन किए थे जिसे इतिहास में इस तरह से अंकित किया गया है–

 कामु क्रोधु काइआ कउ गालै॥

 जिउ कंचन सोहागा ढ़ालै॥

         (अंग क्रमांक 932)

अर्थात् है! धीरमल यह काम, क्रोध’ लोभ’ मोह और अहंकार शरीर को समाप्त कर देता है। तेरा उस तरह से भला हो जैसे ‘सोने में सुहागा’!

धीरमल द्वारा लूटी गई मूल्यवान वस्तुओं को भाई मक्खन शाह लुबाना पुनः वापस ले आए थे। साथ ही धीरमल के अधीन आदि ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की बीड़ (ग्रंथ) को भी सम्मान पूर्वक वापस लाया गया था।

  ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने समस्त मूल्यवान वस्तुओं को धीरमल को वापस कर दी थी एवं आदि ग्रंथ साहिब जी की बीड़ (ग्रंथ) भी धीरमल को वापस कर दिया था। यह बीड़ (ग्रंथ) साहिब वर्तमान समय में करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में सुशोभित है।

 ‘बाबा बकाला’ के जिस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को गुरु गद्दी पर आसीन किया गया था वर्तमान समय में उस स्थान पर ‘दरबार साहिब’ सुशोभित है। जिस स्थान पर गुरु जी भजन, बंदगी करते थे उस स्थान पर टावर नुमा बिल्डिंग गुरुद्वारा ‘भौंरा साहिब’ सुशोभित है। जिस स्थान पर गुरु जी के ऊपर गोली चलाई गई थी उस स्थान पर गुरुद्वारा ‘मंजी साहिब’ सुशोभित है जिस स्थान पर ‘माता गंगा जी’ का अंतिम संस्कार किया गया था उस स्थान पर गुरुद्वारा ‘शीश महल साहिब’ सुशोभित है।

प्रसंग क्रमांक 24 : गुरता गद्दी के पश्चात श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का प्रथम अमृतसर प्रयाण का इतिहास।

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