प्रसंग क्रमांक 15 तक के इतिहास से स्पष्ट है कि शाहजहां जिसका गुरु घर से वैर था और हमेशा अपनी सैन्य शक्ति से गुरु घर पर लगातार आक्रमण किया करता था परंतु जब शाहजहां का पुत्र दारा शिकोह दुर्गम रोगों से पीड़ित था और पूरे भारत में उसका कहीं इलाज संभव नहीं था तो उसने किरतपुर के दवाखाने में अपने इलाज के लिए स्वयं उपस्थित होकर रोग मुक्ति के लिए मदद मांगी थी। उस समय ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की सातवीं ज्योत ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ द्वारा संचालित इस दवाखाने में लाइलाज बीमारियों का उत्तम तरीके से इलाज होता था। दारा शिकोह ने जब इस दवाखाने में इलाज किया तो वो रोग मुक्त हो गया था। इस कारण दारा शिकोह गुरु घर का श्रद्धालु बन गया था और शाहजहां की भी गुरु घर पर असीम श्रद्धा हो गई थी।
उस समय कुटिल नीतियों के महारथी औरंगजेब ने स्वयं के पिता शाहजहां को कैद किया था और अपने भाई दारा शिकोह पर भी आक्रमण कर उसे जान से मारने की कोशिश की थी। दारा शिकोह जब परिवार सहित दिल्ली से लाहौर की और पलायन कर रहा था तो रास्ते में गोइंदवाल नामक स्थान पर पहुंचकर ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ की शरण में आकर मदद की गुहार लगाई थी।
गुरु जी हमेशा 2200 घुड़सवारों की सेना से सुसज्जित रहते थे। इस घटना को इतिहास में इस तरह अंकित किया गया है–
जो शरण आये तिस कंठ लावै॥
अर्थात जो गुरु की शरण में आ गया उसे गुरु जी ने अपने कंठ (गले) से लगाना ही है।
गुरु जी ने अपनी सैन्य शक्ति से दारा शिकोह की मदद की थी। इस मदद के कारण चुगलखोर धीरमल ने औरंगजेब के कान भरे थे और कहा कि यदि ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ मदद नहीं करते तो तुम अपने भ्राता दारा शिकोह को जान से मारने में कामयाब हो जाते थे। इस चुगलखोरी में धीरमल की विशेष भूमिका थी।
औरंगजेब ने ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ को पत्र लिखकर के दिल्ली आने का निमंत्रण दिया था। ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ स्वयं औरंगजेब के मुंह नहीं लगना चाहते थे। गुरु जी ने अपने बड़े पुत्र राम राय जी को औरंगजेब के निमंत्रण पर दिल्ली भेजने का निश्चय किया और राम राय जी से कहा पुत्तर जी हमारे स्थान पर आप दिल्ली जाओगे। आपकी जिव्हा पर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ का वास होगा। आप जो शब्द कहोगे वह सच होंगे परंतु ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ द्वारा निर्मित ‘गुरु मर्यादाओं’ की सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना है।
‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने गुरु पुत्र राम राय के साथ अपने कुछ मसंद भी दिल्ली भेजे थे। दिल्ली पहुंचकर राम राय जी ने गुरु घर की मर्यादाओं के विपरीत करामातों का प्रदर्शन प्रारंभ कर दिया था। राम राय जी बिना कहारों की सहायता से पालकी में बैठकर हवा में उड़ते हुए औरंगजेब के समक्ष हाजिर होते थे। औरंगजेब को खुश करने के लिए राम राय जी औरंगजेब के कहने पर विभिन्न प्रकार की 72 करामातों का प्रदर्शन भरे दरबार में कर चुके थे। गुरु पुत्र राम राय जी की जिव्हा पर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ का वास था। औरंगजेब के द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नों का राम राय जी सही-सटीक और निष्पक्ष जवाब देते थे। इससे औरंगजेब पर राम राय जी का उत्तम प्रभाव पड़ा था।
औरंगजेब के द्वारा गुरु पुत्र राम राय की उत्तम सेवाएं की गई थी। दरबार में उपस्थित लोगों ने भी आपकी बहुत जय-जयकार की थी। इसका कारण यह भी था कि गुरु पुत्र राम राय भविष्य में भावी गुरु हो सकते थे।
इन सभी घटनाओं से गुरु पुत्र राम राय को इसका बहुत अंहकार हो गया था। अंहकारी राम राय ने भविष्य में ‘गुरु गद्दी’ के स्वप्न देखना प्रारंभ कर दिए थे। उस समय की नजाकत को देखते हुए औरंगजेब ने भरे दरबार में गुरु पुत्र राम राय से प्रश्न पूछा कि ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की वाणी में आता है–
मिटी मुसलमान की पेडै़ पई कुमि्आर॥
(अंग 466)
इस वाक्य का भावार्थ क्या है?
गुरु पुत्र राम राय ने विचार किया कि यदि मैंने इसका सही भावार्थ किया तो ऐसा ना हो कि औरंगजेब मुझसे नाराज हो जाए उस समय गुरु पुत्र ने गुरुवाणी के इस वाक्य रचना को ही बदल दिया था। भरे दरबार में राम राय ने औरंगजेब को उत्तर दिया कि शायद आप भ्रमित हो गए! इस वाक्य की रचना में तो ‘मिट्टी बेईमान की’ शब्द को लिखा गया है परंतु लेखक की गलती से इस वाक्य में ‘मिट्टी मुसलमान की’ शब्द अंकित हो गया है।
गुरु पुत्र रामदास के साथ जो भरोसे के सिख साथी गए थे। उनको यह वाक्य रचना में किया गया बदलाव सहन नहीं हुआ था। जब वापस आकर सिख सेवादारों ने ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ को सूचित किया कि इस दिल्ली यात्रा में बाकी सब तो ‘गुरु मर्यादाओं’ के अनुसार हुआ परंतु राम राय जी ने जो करामात दिखाई और गुरुवाणी की वाक्य रचना को ही बदल दिया; जो कि गुरु मर्यादाओं के विपरीत था। ठीक उसी समय ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने वचन उद्धृत किए कि राम राय अब इस लायक नहीं है कि ‘श्री गुरु नानक देव जी’ के उसूलों (सिद्धांतों) की रक्षा कर सकें। राम राय को सूचित कर दो कि वो आज के बाद मेरा मुंह नहीं देखे, उसे जहां जाना है वो चला जाए।
अहंकारी राम राय ने गुरु जी के वचन सुनने के बाद कहा कि मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता है कारण मेरे साथ हिंदुस्तान का बादशाह औरंगजेब है। शातिर बादशाह औरंगजेब अपनी कुटिल कूटनीति में कामयाब हो चुका था। उसने गुरु पुत्र राम राय को गुरु जी से और सिखी की मुख्यधारा से अलग कर दिया था। रामराय पुनः भविष्य में गुरु जी के मुंह नहीं लगा था। बादशाह औरंगजेब ने राम राय को देहरादून नामक स्थान पर जागीर दी थी। वर्तमान समय में इस स्थान पर राम राय का देहुरा (चबूतरा) बना हुआ है।
‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ के राम राय और भावी गुरु ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ नामक दो पुत्र थे। आपने अपनी जीवन यात्रा के अंतिम समय में अपने छोटे पुत्र ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ को ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की ज्योत के रूप में ‘गुरता गद्दी’ का अगला उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।