बटाला शहर का पुरातन नाम ‘बकन’ था। फारसी भाषा के शब्द ‘बकन’ का भावार्थ होता है कि वो स्थान जहां पर हिरण घास चरते हो। इस स्थान पर एक हरा-भरा टीला था। इस टीले पर हिरण झुंडों में चरने आते थे। इस ‘बकन’ नामक स्थान को कालांतर में ‘बकनवाड़ा’ नामक स्थान से भी संबोधित किया गया था।
समयानुसार ‘बकनवाडा़’ नाम का नामकरण ‘बकाला’ के रूप में हो गया था। वर्तमान समय में इस स्थान को ‘बाबा-बकाला’ के नाम से भी जाना जाता है।
इस ‘बाबा-बकाला’ नामक शहर में ही सिख धर्म के छठे गुरु ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ का ससुराल परिवार निवास करता था। साथ ही भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ और ‘बाबा अटल जी’ का नौनिहाल परिवार भी इस ‘बाबा-बकाला नामक स्थान पर था अर्थात ‘बाबा अटल जी’ और भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर जी’ की ‘माता नानकी जी’ का इस स्थान पर पीहर था। इस स्थान पर आप जी के नाना ‘श्री हरी चंद जी’ एवं नानी हरदेई जी’ निवास करते थे। इस परिवार की इस स्थान पर प्रतिष्ठित परिवारों में गिनती होती थी।
‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ अपने परिवार के साथ अक्सर इस स्थान पर भेंट दिया करते थे। इस ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर ‘भाई मेहरा जी’ का गुर सिख परिवार भी निवास करता था। ‘भाई मेहरा जी’ गुरु जी के परम श्रद्धालु भक्तों में से एक थे। ‘भाई मेहरा जी’ ने बड़ी ही विनम्रता से गुरु जी से निवेदन किया था कि आप जी मेरे नवीन बने भवन में पधार कर अपने चरण चिन्हों से मेरे भवन को पवित्र करें।
‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने ‘भाई मेहरा’ के घर पर पधार कर उनका आतिथ्य ग्रहण किया था। ‘भाई मेहरा जी’ ने उत्तम सेवा प्रदान कर गुरु जी से निवेदन किया था कि आप जी कुछ समय और मेरे आतिथ्य को स्वीकार मुझे सेवा का मौका प्रदान करें। गुरु जी ने ‘भाई मेहरा जी’ की श्रद्धा और भावनाओं को देखते हुए वचन किये थे कि अभी वह समय नहीं आया है परंतु आपकी श्रद्धा, भावनाओं की निश्चित ही कद्र होगी और जब कालांतर में समय आएगा तो हम लंबे समय तक यहां निवास कर आप का आतिथ्य ग्रहण करेंगे। उस समय ‘भाई मेहरा जी’ ने गुरु जी के प्रश्न किया था कि वह समय कब आएगा?
इसी निवास स्थान पर सिख धर्म के पांचवें गुरु ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ की सौभाग्यवती ‘माता गंगा जी’ जो कि सिख धर्म के छठे ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ की माता थी और भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की आप रिश्ते में दादी लगती थी। ऐसी महान ‘माता गंगा जी’ का निवास इसी स्थान पर था। भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के दादी जी ने भी इसी स्थान अर्थात ‘भाई मेहरा जी’ के भवन को ही अपना निवास स्थान बनाया था। इस स्थान पर ही आप जी की सेवा-सुश्रुषा होती थी और ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ स्वयं इस निवास स्थान पर ही मिलने आते थे। इसी निवास स्थान पर ‘माता गंगा जी’ ने जीवन यात्रा की अंतिम सांसों को त्यागा था। वर्तमान समय में इस स्थान पर ‘माता गंगा जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा ‘शीश महल’ का निर्माण किया गया है।
‘भाई मेहरा जी’ ने अपने भवन का विस्तार किया था कारण ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने वचन किए थे कि हम इस निवास स्थान पर कालांतर में निवास करेंगे। ‘भाई मेहरा जी’ हमेशा गुरु जी का अपने भवन में इंतजार करते थे।
सन् 1644 ई. में ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने ‘गुरता-गद्दी’ का उत्तराधिकारी ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ को घोषित किया था। साथ ही गुरु जी ने ‘माता नानकी जी’, भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ और ‘माता गुजर कौर जी’ को वचन किए थे कि आप सभी ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर प्रस्थान करें और वहां पर ‘भाई मेहरा जी’ के निवास स्थान पर निवास करें।
तत्पश्चात ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ज्योति-ज्योत समा गए थे। गुरु जी के वचनों के अनुसार ‘माता नानकी जी’, भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ और ‘माता गुजर कौर जी’ ने ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर ‘भाई मेहरा जी’ के भवन में निवास किया था।