भाई कृपा सिंह जी दत्त की महान शहादत
इतिहास में पंडित कृपाराम जी दत्त का ज़िक्र ज़्यादा करके श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के इतिहास के साथ सारगर्भित किया जाता है। यदि इस इतिहास को संदर्भित किया जाये तो 25 मई सन् 1675 ई. को 16 कश्मीरी पंडितों का एक शिष्टमंडल पंडित कृपाराम जी के नेतृत्व में चक्क नानकी (श्री आनंदपुर साहिब) में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब से एक औपचारिक भेंट करने आया था। कारण उस समय देश का बादशाह औरंगज़ेब तलवार की नोक पर धर्म परिवर्तन करवा कर तेजी से इस्लामीकरण कर रहा था। औरंगज़ेब के इन जुल्मों से बचने के लिये उपरोक्त शिष्टमंडल ने गुरु पातशाह जी से मदद माँगी थी एवं यह शिष्टमंडल उनके मार्गदर्शन का अभिलाषी था। इस संबंध में भट्ट वहियों में अंकित है–
“भाई किरपा राम बेटा अडू राम का पोता, नरैण दास का पड़पोता ब्रह्मदास का, बंस नानक दास की, दत्त गोतर मुंझाल ब्राह्मण, वासी मटन, देश कशमीर, संबत्त सतरा सौ बत्तीस, जेठ मासे सुदी इकादशी के दिहुँ, खोड़म ब्राह्मणों को गौल लै, चक नानकी, परगणा कहिलूर, गुरु तेग बहादर जी महल नावां के दरबार आइ फरियादी हुआ। गुरु जी ने इन्हें धीरज दई, बचन होआ, तुसां की रखिआ बाबा नानक करेगा”। (भट्ट मुलतानी सिंधी)|
ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि पंडित कृपाराम जी दत्त और उनके परिवार का सिखी के साथ संबंध गहरा एवं अत्यंत पुरातन था। पंडित कृपा राम जी के परदादा का ज़िक्र इतिहास में श्री गुरु नानक देव जी की सातवीं ज्योत श्री गुरु हर राय साहिब के समय में मिलता है। दरअसल, यह संपूर्ण परिवार श्री गुरु नानक देव जी के समय से ही ‘गुरु पंथ खालसा’ से जुड़ा हुआ था।
पंडित कृपा राम जी, पंडित ठाकुर दास मुंजाल ब्राह्मण परिवार के वंशज थे, पंडित ठाकुरदास कश्मीर के मटन शहर के निवासी थे। श्री गुरु नानक देव जी जब अपनी धर्म प्रचार-प्रसार की यात्रा के लिए अमरनाथ से श्रीनगर की ओर प्रस्थान कर रहे थे तो आप जी मटन नामक शहर से होकर गये थे। इस स्थान पर पंडित कृपाराम जी के वंशज पंडित ब्रह्म दास जी (निवासी बीज-बिहाड़ा मटन शहर के समीप) से आप जी कि अध्यात्म के विषय पर चर्चा (गोष्ठी) हुई थी। पंडित ब्रह्म दास अत्यंत बुद्धिमान और ज्ञानी थे एवं उनके पास पुरातन ग्रंथों का प्रचुर भंडार था। इसलिए उनके ह्रदय में अहंकार का वास था। इस अहंकार को श्री गुरु नानक देव जी ने अपने ज्ञान से तोड़ा था। पंडित ब्रह्म दास जी ने गुरु पातशाह जी से सिखी धारण कर ली थी, पंडित ब्रह्म दास जी को गुरु पातशाह जी ने सूबा कश्मीर का मुख्य प्रचारक नियुक्त कर, एक मंजी (आसन) की बख़्शीश दी थी। पंडित ब्रह्म दास जी के भाई पंडित हरि चरण दास जी ने भी सिखी को धारण किया था। पंडित ब्रह्म दास जी के सुपुत्र पंडित नारायण दास जी थे, पंडित नारायण दास जी के दो सुपुत्र पंडित अलू राम और पंडित अडू राम जी थे। पंडित अडू राम जी के चार सुपुत्र पंडित मनसुख दास जी, पंडित कृपाराम जी, पंडित शिव दास जी और पंडित चेला राम जी थे। पंडित कृपाराम जी की वंशावली में उनके दो सुपुत्र थे, पंडित धर्म चंद जी और पंडित ईश्वर दास जी, इन दोनों सुपुत्रों ने खंडे-बाटे की पाहुल (अमृत पान की विधि) को छक कर, आप जी सरदार धर्म सिंह और सरदार ईश्वर सिंह के रूप में सज गये थे। पंडित कृपाराम जी की माता जी का नाम सुरमती था, माता सुरमती जी भाई गौतम जी छिब्बर (निवासी करियाला ज़िला झेलम पाकिस्तान) की सुपुत्री थी। (विशेष: षष्टम गुरु श्री गुरु हरगोविंद जी की सेना के जरनैल (सेनापति) भाई पैरा जी और शहीद भाई पराग जी माता सुरमती के सगे भ्राता थे) पंडित कृपा राम जी की सौभाग्यवती का नाम बीबी सुमित्रा देवी था।
सन् 1620 ई. में जब श्री गुरु हरगोविंद साहिब कश्मीर में पधारे थे तो आप जी की मुलाकात पंडित नारायण दास जी (पंडित कृपाराम जी के दादा जी) से हुई थी। फिर अप्रैल, सन् 1660 ई. में श्री गुरु हरि राय साहिब मक्खन शाह वणजारे के जत्थे समेत कश्मीर में पधारे थे। आप जी 20 अप्रैल सन् 1660 ई. को श्रीनगर में ही थे। श्रीनगर से आप जी मक्खन शाह वणज़ारा के पिता भाई दासा जी और पंडित कृपाराम जी के पिता पंडित अडू राम जी और अपने सिख सेवादारों सहित भाई मक्खन शाह वणज़ारे के पैतृक ग्राम टांडा लुबणिआं में गये थे। उसके पश्चात् आप जी मटन शहर में गये और मटन शहर में आप जी का निवास पंडित अडू राम जी के निवास पर ही था।
सन् 1675 ई. में जब श्री गुरु हरि राय साहिब ने अपने बेटे राम राय को औरंगज़ेब से मिलने दिल्ली भेजा था तो उनके साथ जो सेवादार दिल्ली गए थे उनमें से एक पंडित अडू राम जी भी थे। इन ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि इन पंडितों के दत्त परिवार का गुरु घर से अत्यंत घनिष्ट व निकट का संबंध था। पंडित अडू राम जी अक्सर कीरतपुर साहिब की यात्रा करते थे एवं कई-कई दिनों तक उनका निवास कीरतपुर साहिब में हुआ करता था। जब श्री गुरु हरि राय साहिब ज्योति-ज्योत समाए थे तो उस समय में पंडित अडू राम जी गुरु पातशाह जी के सानिध्य में ही थे। उन्होंने स्वयं गुरु पातशाह के ज्योति- ज्योत समाने की खबर राम राय और दिल्ली स्थित सिखों को भिजवाई थी। जब पंडित अडू राम जी अकाल चलाना (ब्रह्मलीन) हो गए तो उसके बाद पंडित कृपा राम जी अपनी सेवाएँ निरंतर गुरु घर में अर्पित करते रहे थे। पंडित कृपा राम जी 25 मई सन् 1675 ई. में कश्मीर के 16 सदस्य पंडितों के शिष्टमंडल को लेकर अचानक ही नहींं श्री आनंदपुर साहिब में आये थे, वह तो अक्सर गुरु दरबार में अपनी हाज़िरी लगाते थे। आप जी पटना शहर में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के साथ थे एवं आप जी बकाला और चक्क नानकी (श्री आनंदपुर साहिब) में हमेशा ही गुरु दरबार में हाज़िरी भरते थे। आप जी ने ही श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब की शिक्षा-दीक्षा में अपना संपूर्ण योगदान दिया था। ऐतिहासिक स्रोतों से ऐसा प्रतीत होता है कि सन् 1670 ई. में आप जी भी बाल गोविंद जी के साथ पटना से पंजाब आये थे।
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब की शहादत (11 नवंबर सन् 1675 ई.) के पश्चात पंडित कृपाराम जी श्री गुरु गोविंद सिंह जी के सानिध्य में ही रहे थे। जब गुरु पातशाह जी ने इन्हें खंडे-बाटे की पाहुल (अमृत पान की विधि) छकाने की परंपरा को आरंभ किया तो सर्वप्रथम पाँच प्यारों ने अमृत पान किया और सिंह सजे थे और पाँच मुक्तों ने अमृत पान किया था। इसके पश्चात् भाई मणी सिंह जी एवं 10 अत्यंत निकटवर्ती सिखोंं ने अमृत पान किया था। इन सभी के बाद जिस जत्थे ने अमृत का पान किया उसमें कवि बचन जी, कवि अनी राय जी, दयाराम जी पुरोहित, भाई गुरबख़्श जी और पंडित कृपाराम जी दत्त के साथ उनके भ्राता मनसुख दास दत्त ने भी अमृत पान किया था। इस अमृत पान की विधि के पश्चात पंडित कृपा राम जी और उनके भ्राता पंडित मनसुख जी भाई कृपा राम सिंह जी दत्त एवं भाई मनसुख सिंह जी दत्त के रूप में सिंह सज गए थे। बाद में भाई कृपा सिंह जी दत्त एवं भाई मनसुख जी दत्त निरंतर गुरु पातशाह जी के सान्निध्य में ही रहे और जब सन् 1705 ई. को पहाड़ी राजा और मुग़ल सैनिकों की संयुक्त सेना ने श्री आनंदपुर साहिब के क़िले पर हमला किया तो उस समय में दोनों दत्त बंधु गुरु पातशाह जी के साथ ही थे, 24 दिसंबर सन् 1705 ई. को जब चमकौर का युद्ध हुआ तो उस समय साहिबज़ादा जुझार सिंह के साथ अपने कंधे से कंधा लगाकर इन दोनों बंधुओं ने बड़ी ही शूरवीरता से युद्ध के मैदान में अपना पराक्रम दिखाया और दुश्मनों की सेना में हाहाकार मचा दिया एवं देश की मिट्टी और ईमान के लिये महान शहादत को स्वीकार कर हँसते-हँसते शहादत के जाम को पिया था। अत: भाई कृपा सिंह जी दत्त और भाई मनसुख जी दत्त की महान शहादत को शतश: नमन!
(नोट– इस संपूर्ण इतिहास को भट्ट मुल्तानी सिंधी में भी विशेष रूप से अंकित किया गया है)।