करतारपुर का युद्ध समाप्त होने के तुरंत पश्चात ‘श्री गुरु हर गोविंद साहिब जी’ ने उस समय की परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेकर करतारपुर से किरतपुर परिवार के साथ स्थालांतरित हो गए थे। किरतपुर में स्थानांतरित होकर निवास करने के पूर्व गुरु पुत्र ‘बाबा गुरदित्ता जी’ को इस स्थान पर भेजकर ‘मोहड़ी गड्ड’ कर के (एक विशेष बनावट के लक्कड़ के खुंटे को जमीन में गाड़ कर नींव पत्थर की रस्म अदायगी कर उस स्थान को नगर के केंद्र के रूप में निरूपित किया जाता था) ।
शिवालिक पर्वत मालाओं के पास गुरु जी के द्वारा किरतपुर नगर बसाया गया था। इस स्थान पर वर्तमान समय में गुरुद्वारा ‘शीश महल’ साहिब स्थित है।
जब ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ परिवार के साथ किरतपुर शहर में निवास के लिए आए थे तो उस समय भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की आयु 14 वर्ष की थी। उस समय में ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए इसी स्थान से ‘देशाटन’ भी करते थे। गुरु पुत्र ‘बाबा गुरदित्ता जी’ के पुत्र भावी गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ थे। भावी गुरु ‘श्री गुरु हरि राय साहिब जी’ के रिश्ते में भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ चाचा (काका) लगते थे। ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ आयु में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से 10 वर्ष छोटे थे। ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ के बड़े भाई धीरमल जी थे। इतिहास में धीरमल जी की उपमा पृथ्वी चंद से की जाती है। पृथ्वी चंद जी सिख धर्म के पांचवें गुरु ‘शहीदों के सरताज’ ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के बड़े भ्राता थे। (पृथ्वी चंद जी ने हमेशा ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ और उनके सुपुत्र ‘श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी’ से बैर रखकर दुश्मनी निभाई थी) अर्थात ‘बाबा गुरदित्ता जी’ के दो पुत्र ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ और श्री धीरमल जी थे।
सिख धर्म के भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ और ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ रिश्ते में चाचा-भतीजा थे। उन्होंने मिलकर किरतपुर में आने वाली सभी संगत की बड़ी से बड़ी सेवाओं को बखूबी निभाया था। इन सेवाओं को करते हुए जीवन चक्र अपने समय से गुजर रहा था। एक दिन भावी ‘श्री गुरु हरि राय साहिब जी’ बाग में टहल रहे थे। इस बाग की सुंदर फुलवारी में विचरण करते हुए आपके द्वारा धारण किए हुए लंबे चोले में अटक कर एक फूल टूट गया था। इस कारण कोमल हृदय के भावी गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ उदास हो गए थे।
जब ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने आप भी से पूछा कि आपने सुंदर फूल को क्यों तोडा? भावी गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक कहा पिता जी यह फूल मेरे लंबे चोले से अटक कर गलती से टूट गया। ‘श्री गुरु हर गोविंद साहिब जी’ ने स्नेह से प्यार भरे वचनों से उत्तर देते हुए कहा कि जब चोला लंबा और बड़ा हो तो इसका यह अर्थ नहीं है कि आप इस चोले से फूल तोड़ते रहो। लंबा और बड़ा चौला यदि पहनने को मिलता है तो कदमों को सावधानीपूर्वक आगे रखना चाहिए। ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने इशारों ही इशारों में इन वचनों को कहकर एक बड़े राज को इंगित किया था।
किरतपुर नगर में गुरु परिवार को रहते हुए 10 वर्ष बीत चुके थे। उस समय भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ आयु के 24 वर्ष में प्रवेश कर चुके थे उस वक्त भावी गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ की आयु 14 वर्ष की थी। सन् 1634 ई. से लेकर सन् 1644 ई. तक किरतपुर में निवास करते हुए गुरु परिवार को लगभग 10 वर्ष हो चुके थे।
उस समय एक दिन ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने भरे दीवान में घोषणा करते हुए कहा कि मेरे पश्चात गुरु गद्दी के उत्तराधिकारी ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ होंगे।