हकु पराइआ नानका. . . .
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
चलते–चलते. . . .
(टीम खोज–विचार की पहेल)
हकु पराइआ नानका. . . .
हकु पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाइ॥
गुरु पीरु हामा ता भरे जा मुरदारु न खाइ॥
गली भिसती ना जाईऐ छुटै सचु कमाइ॥
मारण पाहि हराम महि होई हलालु न जाइ॥
नानक गली कूड़ीई कूडो पलै पाइ॥
(अंग क्रमांक 141)
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी का फरमान है कि जो पराया हक खाते हैं, किसी की मजबूरी का फायदा उठा कर, लूट कर खाते हैं। वह लोग ऐसे हैं, जैसे हिंदू गौ मांस का सेवन करता है और मुसलमान सूअर का! जीवन में वह कमाई हराम है जो दूसरों को दुख और संताप देकर की गई हो। किसी को झूठ बोलकर, उसे धोखा देकर, उसका हक मारना मुर्दे के मांस का सेवन करने के समान है। ऐसे लोगों के पास भौतिक सुख–सुविधा तो होती है परंतु भीतर से एक़दम खाली, उदास और दुखी होते हैं। ऐसे लोग कभी भी सुखी नहीं हो सकते हैं। जो लोग पराया हक को खाते हैं उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, ऐसे लोग हमेशा नकारात्मक ऊर्जा पैदा करते हैं। ऐसे लोग कभी भी जोड़ने का कार्य नहीं कर सकते हैं। ईश्वर भी तुम्हारा साथ तो देता है, जब तुम कीरत कर कमाई खाते हो, दूसरों को धोखा देकर, वेदना देकर खाई हुई कमाई वाम मार्गों पर ही खर्च होती है। गुरुवाणी कहती कि हक मारकर की गई नाजायज़ कमाई को कानूनी जामा पहनाने से वह जायज नहीं हो जाती है। पराया हक मारकर, झूठी शान दिख़ाने वाले को जीवन में झूठ ही प्राप्त होता है।
जहां सच होगा, वहां संतोष होगा। जहां धर्म होगा, वहां दया होगी। जहां लालच होगा, वहां पाप होगा, जहां पाप होगा वहां झूठ होगा, झूठ पाप की प्राप्ति का मार्ग है। जब लालच, पाप और झूठ की भेल बनती है तो वहां कामवासना अपनी पूरी जवानी पर होगी और हमें इस भेल को स्वादिष्ट चटकदार बनाने के लिए दूसरों का हक मारना ही पड़ता है। लालची व्यक्ति निश्चित ही ठग होता है, ऐसे लोग दया, धर्म और इंसानियत को बाजार में परिवर्तित कर देते हैं। बाजार और ठगी का चोली–दामन का साथ होता है, ऐसे लालची लोगों की वृत्ति केवल लेने की होती है, लालची लोगों की वृत्ति कुत्ते की तरह होती है, हर समय मुंह मारना और हर जगह मुंह मारना एवं दूसरे के हक को अधिकार पूर्वक हजम कर जाना, लालची इंसान की वृत्ति होती है।
देखने में आता है कि लोग रिश्वत, बेईमानी और चोरी से कमाए पैसों की ‘दसवंद’ अदा कर स्वयं को स्वयं ही पाक–साफ होने का प्रमाण पत्र दे देते हैं। ऐसे लालची लोग समाज के लिए अत्यंत घातक होते हैं, ऐसे लोगों के लिये गुरुवाणी में इस तरह अंकित किया गया है कि–
चोर की हामा भरे ना कोई॥
चोरु कीआ चंगा किउ होइ॥ (अंग क्रमांक 662)
अर्थात् दूसरों की संपत्ति की चोरी कर, दूसरों का हक मारकर, गुरु घर में ‘दसवंद’ भेंटकर, स्वयं को पाक–साफ और इमानदार समझना अच्छी बात नहीं है। पाप तो पाप ही होता है, लालची पापी और मक्कार लोगों के लिए गुरुवाणी का फरमान है—
पापु बुरा पापी कउ पिआरा॥
(अंग क्रमांक 935)
अर्थात् जो लालची और पापी इंसान होता है उसे पापी ही प्यारा लगता है।
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी स्पष्टता से अपने फरमान में निर्देश देती है कि–
लोभी का वेसाहु न कीजै जे का पारि वसाइ॥
(अंग क्रमांक 1427)
अर्थात् जो लोभी (लालची) लोग हैं उन पर कभी भी भरोसा मत करो, इनके संबंध में आप कुछ कह नहीं सकते हो। ऐसे लोग तो अपने गुरु के साथ भी धोखा कर जाते हैं, यह वह लोग हैं जो लालच में आकर ईश्वर को भी बेच कर खा जाते हैं और ऐसे कई लोग आपके इर्दगिर्द ही आपको नजर आ जाएंगे। गुरुसिखों का कर्तव्य है कि ऐसे लालची, कपटी और मक्कार लोगों का डटकर मुकाबला करें। गुरुवाणी में गुरु सिखों को स्पष्ट अपने फरमान में निर्देश दिया है कि–
भै काहू कउ को देत नहि नहि भै मानत आन॥
(अंग क्रमांक 1429)
अर्थात् ना डरो और ना डराओ! यदि हम सच्चाई के मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल कर रहे हैं तो किसी से भी डरने की आवश्यकता नहीं है। आपको किसी को भी कोई सफाई नहीं देनी है क्योंकि सच अटल होता है तुम्हें अपने कर्मों का लेखा–जोखा उस अकाल पुरख की ‘दरगाह’ में देना है।
जो धोखेबाज होता है उन्हें अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है, यदि हम अलग नजरिए से देखें तो जो गुरु घर की सेवा करता है, सिमरन करता है और इंसानियत की भलाई पर पहरा देता है उसे निश्चित ही उत्तम फल की प्राप्ति होती है। गुरुवाणी का फरमान है कि–
इकु तिलु नही भंनै घाले॥
(अंग क्रमांक 784)
अर्थात् तुम्हारे द्वारा एक तिल के बराबर भी गुरु घर की की गई सेवा, कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है। इन सेवाओं का निश्चित ही परमार्थ प्राप्त होता है। इन की हुई सेवाओं के फल स्वरूप निश्चित ही आप गुरु की रहमतें प्राप्त कर अपना जीवन सफल कर सकते हो।
इस दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो ग़लतियां ना करता हो, ग़लतियां तो सभी से होती है परंतु समझदार व्यक्ति गुरु के इशारे को तुरंत समझ सकता है और ऐसे समझदार व्यक्तियों के लिए गुरुवाणी का फरमान है कि–
भुलण अंदरि सभु को अभुलु गुरू करतारु॥
(अंग क्रमांक 61)
अर्थात् ग़लतियां तो सभी करते हैं केवल गुरु और सृष्टि की रचना करने वाला ही अचूक है।
नोट 1.’श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कह कर संबोधित किया जाता है।
साभार– लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के सबद की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज–विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।
वाहिगुरु जी का ख़ालसा,
वाहिगुरु जी की फतेह!
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