सेवानिवृत्ति पर विशेष:
(उज्जैन निवासी मित्र उमेश कुलकर्णी को समर्पित)
मित्रता वह अनुपम बंधन है, जिसे शब्दों में बाँध पाना असंभव है। इसमें न आदान–प्रदान का कोई गणित होता है, न कोई संज्ञा, न कोई उपमा; बस आदर, स्नेह, विश्वास और श्रद्धा की एक अखंड धारा प्रवाहित होती रहती है। जिसके जीवन में सच्चे मित्र हैं, वह संसार का सर्वाधिक धनी और सौभाग्यशाली व्यक्ति है। मित्रता संभालने की कला भी एक दुर्लभ साधना है। जिस जीवन में मित्रों का अभाव है, वह जीवन तपते रेगिस्तान में भटकते प्यासे मुसाफिर की भाँति शुष्क और विषण्ण हो जाता है। अतः मित्रहीन जीवन तो शत्रु को भी न मिले। जीवन में ऐसे मित्रों का संग प्राप्त हो, जो अपने व्यक्तित्व से श्रेष्ठ विवेक, विनम्रता और सौजन्य के आदर्श हों, तो जीवन निश्चित ही सुरक्षित, समृद्ध और सुखद हो जाता है। मित्रता का अधिकार यदि प्रमाणित करना पड़े तो वह दुर्भाग्यपूर्ण क्षण होता है। मित्रता में आयु के बंधनों को नकारकर सहजता और निश्छलता को संजोए रखना चाहिए, जिससे मन सदैव सृजनशील रहे और चेतना में नवीनता का संचार हो। जो लोग मित्रता में आयु का गणित करते हैं, वे शीघ्रता से वृद्ध हो जाते हैं। मित्रों के संग ठिठोली, शरारतें और निर्दोष हँसी के ठहाके जीवन में ‘हैप्पी हार्मोन्स’ का संचार करते हैं, जो तन–मन को निरंतर तरोताजा बनाए रखते हैं। सच्चे मित्र वही होते हैं, जो प्रसंगों की गंभीरता को हँसी–मजाक में ढालकर उसे हल्का कर दें, और बचपन की शरारतों को अबाधित रखते हुए जीवन का उत्सव मनाते रहें। इन्हीं भावनाओं के संग मैं अपने बालसखा श्री उमेश कुलकर्णी जी को यह विनम्र आलेख समर्पित कर रहा हूँ, जो अपनी दीर्घकालीन सेवाकाल के उपरांत आज सेवानिवृत्ति हो कर जीवन के नये अध्याय की शुरुआत कर रहें हैं।
भाई उमेश: एक संक्षिप्त जीवन यात्रा
जीवन में माता–पिता तथा परिवारजनों का साथ ईश्वर का दिया हुआ वरदान है, जिसे बदला नहीं जा सकता; परंतु मित्र चुनने का विशेषाधिकार विधाता ने हमें प्रदान किया है। भाई उमेश और मेरा स्नेहसंबंध माध्यमिक शिक्षा के काल से अक्षुण्ण है। हमारी शिक्षा उज्जैन के महाराजवाड़ा क्रमांक एक विद्यालय में साथ–साथ संपन्न हुई।
भाई उमेश कुलकर्णी जी का जन्म 11 अप्रैल सन 1963 ई. को एक साधारण, किन्तु आदर्शवादी परिवार में हुआ। आपके पूज्य माता–पिता, स्व. श्री पुरुषोत्तम कुलकर्णी और स्व. श्रीमती कुसुम कुलकर्णी, ने बाल्यकाल से ही धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों की अमिट छाप आपके व्यक्तित्व पर अंकित की। सनातन धर्म के दृढ़ अनुयायी, मृदुभाषी और अनुशासनप्रिय उमेश भाई अपने परिवार के सबसे छोटे पुत्र होने के कारण विशेष स्नेह–सुधा के अधिकारी रहे। हमेशा टी–शर्ट और स्पोर्ट्स शूज़ में सज्जित, सच्चे ‘संत–सिपाही’ जैसे आचरण करने वाले भाई उमेश ने छात्र जीवन से ही अपनी प्रखर मेधा का प्रमाण दिया। आपका प्राथमिक शिक्षण देवास गेट की शाला में, माध्यमिक शिक्षण क्षीरसागर विद्यालय में तथा उच्च माध्यमिक शिक्षा महाराजवाड़ा विद्यालय क्रमांक 1 में पूर्ण हुआ। इसके पश्चात उज्जैन पॉलिटेक्निक कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग डिप्लोमा और फिर उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज से बी.ई. (सिविल) की डिग्री प्राप्त कर आपने अपनी शैक्षणिक यात्रा को गौरवपूर्ण पूर्णता दी।
सिंचाई विभाग में सेवा का स्वर्णिम अध्याय
1 मई सन 1983 ई. से आप मध्य प्रदेश सिंचाई विभाग में उप अभियंता (अस्थाई) के रूप में नियुक्त हुए। अपनी उत्कृष्ट सेवाओं के कारण 1 जनवरी सन 1988 ई. को आपको जल संसाधन विभाग में उप अभियंता के पद पर नियुक्ति मिली।
उज्जैन की शिप्रा नदी के घाटों के भव्य निर्माण कार्य से लेकर, सिंहस्थ कुंभ मेले (सन 1992, सन 2004 और सन 2016) की व्यवस्थाओं तक, भाई उमेश की सेवाएँ अविस्मरणीय रही हैं। सन 1992 के सिंहस्थ में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए विशेष रूप से सम्मानित किया गया था। शिप्रा नदी के घाटों का सुदृढ़ीकरण, बैरिकेडिंग निर्माण, संधारण कार्य, आपकी दक्षता और समर्पण का प्रमाण हैं। जब वर्ष 2007 में अतिवृष्टि के कारण उज्जैन में आपदा की स्थिति उत्पन्न हुई थी उस समय उंडासा तालाब को विशेष संरक्षण कार्य कर, भाई उमेश ने अपनी अप्रतिम सेवा–भाव से संकटमोचन बनकर जो कार्य किया, वह सिंचाई विभाग के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।
जब मैंने भाई उमेश से पूछा कि उन्हें कार्य का सबसे बड़ा संतोष किस क्षण मिलता है, तो वे मुस्कुराकर बोले — “जब मेरी देखरेख में बनवाए हुए बांधों के जल से किसानों के खेत लहलहाते हैं और उनके चेहरों पर संतोष की मुस्कान दिखती है, वही मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है।”
व्यक्तित्व का एक और उज्ज्वल पक्ष
भाई उमेश न केवल एक कुशल अभियंता हैं, अपितु उत्कृष्ट भवन निर्माण कला के भी साधक हैं।
उज्जैन में बने अनेक भव्य बंगलों की रूपरेखा और वास्तु योजना उनके निर्देशन में संपन्न हुई है।
हमारे मित्र–परिवार ने उनके इस निशुल्क सहयोग का सदैव लाभ उठाया है, जिसके लिए हम भाई उमेश के चिर ऋणी रहेंगे।
परिवार: एक अदृश्य संबल
हर सफल पुरुष की सफलता के पीछे एक स्तम्भ बनकर खड़ी रहती है उसकी पत्नी ! भाई उमेश के जीवन में यह भूमिका कविता भाभी ने निभाई है, जिनकी सादगी, सहिष्णुता और सहयोगमयी प्रवृत्ति ने भाई उमेश को सामाजिक उत्कर्ष की ऊँचाइयाँ छूने में समर्थ बनाया। वर्तमान समय में उनकी संतानें, गर्वित और भाविका, आज स्वावलंबी जीवन जी रहे हैं, जो संपूर्ण कुल का गौरव हैं।
हमारा सच्चा मित्र: भाई उमेश
हमारे मित्र परिवार में भाई उमेश का स्थान विशेष है। जब भी कोई सुख–दुख का प्रसंग आता है, तो सबसे पहले सहायता के लिए आगे बढ़ने वाले भाई उमेश ही होते हैं। हम मित्र अक्सर चर्चा करते हैं कि निश्चय ही पिछले जन्म में हमसे उत्तम पुण्य–कर्म हुए होंगे, जो इस जन्म में उमेश कुलकर्णी जैसा सच्चा मित्र मिला है। सच्ची मित्रता वही है, जहाँ हृदय के भाव बिना संकोच प्रकट हो सकें, जहाँ हार–जीत का कोई प्रश्न न हो, केवल निश्छल अपनत्व की सत्ता हो। मित्रता जीवन में वही स्थान रखती है, जो जीवन के लिए ऑक्सीजन का होता है।
सेवानिवृत्ति: एक नवीन आरंभ
आज, 1 मई सन 2025 ई. को, भाई उमेश सेवानिवृत्ति हो चुके हैं। किन्तु हम जानते हैं कि उनका जीवन अब एक ‘संत–सिपाही’ की भाँति समाज की सेवा के नए अध्याय में प्रविष्ट होगा। हम समस्त मित्रगण हर्ष और गर्व के साथ उन्हें भावभीनी शुभकामनाएँ अर्पित करते हैं। इस भावभूमि पर हिंदी के यशस्वी कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त की कालजयी पंक्तियाँ आपके लिए समर्पित हैं —
तप्त हृदय को, सरस स्नेह से, जो सहला दे, मित्र वही है।
रूखे मन को, सराबोर कर, जो नहला दे, मित्र वही है।
प्रिय वियोग संतप्त चित्त को, जो बहला दे, मित्र वही है।
अश्रु बूँद की एक झलक से, जो दहला दे, मित्र वही है।
भाई उमेश द्वारा किए गए सेवा–कार्य को हम सभी मित्र परिवार की ओर से कोटिशः प्रणाम और सादर नमन करते हैं।

