सिख वीरांगना बीबी हरशरण कौर पाबला
महला 1॥
भंडि जंमीऐ भंडि निंमिऐ भंडि मंगणु वीआहु॥
भंडहु होवै दोसती भंडहु चलै राहु॥
भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि हौवे बंधानु॥
सो किउ मंदा आखिऐ जितु जंमहि राजान॥
भंडहु ही भंडु ऊपजै भंडै बाझु न कोइ॥
नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ॥
जितु मुखि सदा सालाहीऐ भागा रती चारि॥
नानक ते मुख ऊजले तितु सचै दरबारि॥
(अंग क्रमांक 473)
अर्थात्- जिस स्त्री ने बड़े-बड़े राजा और महापुरुषों को जन्म दिया, वो स्त्री मंदा (कमज़ोर, छोटी या बुरी) कैसे हो सकती है? स्त्री से ही स्त्री जन्म प्राप्त करती है। स्त्री के बिना जीवन अधूरा है। केवल अकाल पुरख परमात्मा ही अजूनी है अर्थात् जो स्त्री की कोख से जन्म प्राप्त नहीं करता है। गुरु पातशाह जी फरमाते हैं कि वो मुख धन्य और पवित्र है जो हमेशा उस अकाल पुरख की स्तुति करते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों की लोक–परलोक में जय-जयकार होती है।
प्रत्येक कौम का ज्वलंत इतिहास उसका सरमाया होता है। जो कौम अपने इतिहास को भूल जाती है, वह कौम निश्चित ही धरातल में समा जाती है। अर्थात ऐसी कौम अपना वजूद खो देती है। यदि सिखों के ज्वलंत इतिहास के परिप्रेक्ष्य को देखें तो ज्ञात होता है कि सिख इतिहास में दिसंबर (पौष) का महीना शहादतों से भरा पड़ा है। यह इतिहास श्री आनंदपुर साहिब से लेकर माछीवाड़ा के सफर तक, अपना निरालापन समेटे बैठा है।
उस समय के दौरान जब इतिहास ने करवट बदली तो श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब का आनंदपुर साहिब का किला छोड़ना और अपने सिखों एवं परिवार के बिछोड़े की दास्तान, गुरु पातशाह जी के बड़े साहिबज़ादों का चमकौर की गढ़ी में हुए घमासान युद्ध में शहीद होना और छोटे साहिबज़ादों का सरहिंद में दीवार में चुनकर शहीद होना, साथ ही जगत् माता गुजरी जी की शहादत के अतिरिक्त अनेक ही ऐसे मरजीवड़े-सूरमे और वीरांगनाओं का महत्वपूर्ण योगदान है, जिन्होंने देश-धर्म की रक्षा की ख़ातिर और इस मिट्टी की इज़्जत के लिए बढ़-चढ़कर कुर्बानियाँ दी हैं। ऐसी ही एक साहसी बीबी है हरशरण कौर पाबला, जिन्होंने चमकौर के युद्ध में शहीद हुए सिखों की देह को एवं बड़े साहिबज़ादों की देह की सेवा-सँभाल कर, जब उनका सामूहिक अंतिम संस्कार कर रही थी तो मुग़ल सिपाहियों की इस बीबी हरशरण कौर पाबला से झड़प हुई थी और घायल इस गुरु की शेरनी को मुग़ल सिपाहियों ने उस धधकती चिता में फेंक कर शहीद कर दिया था।
चमकौर साका (युद्ध) के दौरान जहाँ हम गुरु साहिब के बड़े साहिबज़ादों की शहादत पर नतमस्तक होते हैं, वहीं युद्ध में शहीद और सिखों के साथ शहादत का जाम पीने वाली इस जुझारू गुरु की शेरनी बीबी हरशरण कौर पाबला को भी याद करते हैं। ऐतिहासिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि बीबी हरशरण कौर पाबला का परिवार गुरु पातशाह जी के श्रद्धालु परिवारों में से एक था, इस परिवार के मुखिया भाई प्रीतम सिंह जी गुरु पातशाह जी के निकटवर्ती सिखों में से एक थे। यह परिवार हमेशा ही श्री आनंदपुर साहिब में पहुँचकर गुरु साहिब के दर्शन-दीदार कर अपनी सेवाएँ समर्पित करता था। उस समय में बीबी हरशरण कौर पाबला ने भी गुरु पातशाह जी से कोई विशेष सेवा सौंपने का निवेदन किया था तो उस समय गुरु पातशाह जी ने वचन किए थे कि समय आने पर आपको विशेष सेवा का सम्मान निश्चित ही प्राप्त होगा।
श्री आनंदपुर साहिब के घेरे के पश्चात जब गुरु जी अपने परिवार और सिखों सहित सरसा नदी को पार करके चमकौर साहिब में पहुँचे तो वहाँ घमासान युद्ध हुआ था। उस समय में अपेक्षित ज़रूरत अनुसार श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब, भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, और भाई मान सिंह के साथ अपनी युद्ध नीति के तहत माछीवाडे़ के ज़ंगलों में प्रयाण कर गए थे। जब गुरु पातशाह जी के संबंध में बीबी हरशरण कौर पाबला जी को जानकारी प्राप्त हुई कि गुरु पातशाह जी का आगमन चमकौर की गढ़ी में हुआ है तो आप भी अपने परिवार से आज्ञा प्राप्त कर अपने जत्थे के साथ गुरु पातशाह जी के दर्शन हेतु चल पड़ी थी। परंतु चमकौर के युद्ध के मैदान में पहुँचकर जब आप जी ने देखा कि सिंह-सूरमाओं के साथ बड़े साहिबज़ादे और पाँच प्यारों में से तीन प्यारे भाई हिम्मत सिंह, भाई मोहकम सिंह और भाई साहिब सिंह की देह क्षत-विक्षिप्त अवस्था में पड़ी है तो आप जी ने इन देहों को एकत्र कर गुरुमत मर्यादाओं के अनुसार संस्कार करने का निश्चय किया एवं इस महान कार्य में आप जी के साथ आए जत्थे ने संपूर्ण सहयोग देकर एक सामूहिक चिता तैयार कर इन सभी देहों को अग्नि भेंट कर दिया। उस अँधेरी रात में जब चिता की ज्वाला प्रचंड प्रज्वलित होकर धधकने लगी तो थोड़ी दूर शामियाने में आराम कर रही मुग़ल सेना की नज़र इस चिता पर पड़ी और उन्होंने उस स्थान पर आ कर, उस स्थान पर पहरा देती हुई बीबी हरशरण कौर पाबला से घटित घटना की जानकारी चाही तो बीबी जी ने अत्यंत निडरता से जवाब दिया कि युद्ध में शहीद सिख सैनिकों का मैं अंतिम संस्कार कर रही हूँ और यह सुनकर मुग़ल सैनिकों ने बीबी हरशरण कौर पाबला जी पर आक्रमण कर दिया, गुरु की शेरनी ने जब कड़ा मुकाबला किया और आप भी गंभीर रूप से घायल हो गई थीं तो उन मुग़ल सैनिकों ने ‘गुरु की इस शेरनी’ को उठाकर उस धधकती चिता में फेंक कर, शहीद कर दिया था।
इस महान ‘गुरु की शेरनी बीबी हरशरण कौर पाबला जी’ की स्मृति में ग्राम रायपुर (खुर्द) में भव्य गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है और प्रत्येक वर्ष 24 दिसंबर को इस स्थान पर शहीदी दिवस मनाया जाता है। वर्तमान समय में ग्राम रायपुर (खुर्द) नगर पंचायत के वार्ड क्रमांक 12 के अधीन आता है। स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी इस स्थान की सेवा-सँभाल कर रही है।
पुरातन सिख स्रोतों में बीबी हरशरण कौर पाबला के परिवार की कोई प्रमाणिक जानकारी प्राप्त नहींं होती है। इतिहासकारों ने थोड़ा फेर-बदलकर इस अनमोल स्वर्णिम इतिहास को रचा है। इतिहासकारों के इस विषय को संजीदगी से लेकर, इसे बड़े पैमाने पर प्रचारित-प्रसारित करने की आवश्यकता है।
बीबी हरशरण कौर पाबला जी की स्मृति को सादर नमन!