सिख जीवन शैली
(अद्वितीय सिख विरासत/गुरुबाणी और सिख इतिहास)
विश्व में सिख धर्म को सबसे आधुनिक धर्म माना गया है। सिख धर्म को एक मार्शल धर्म भी माना जाता है। ऐसी क्या विशेषता है इस धर्म की? निश्चित ही जो सिख धर्म के अनुयायी हैं, उनकी एक विशेष प्रकार की ‘जीवन शैली’ होती है। इनके जीवन में विनम्रता और व्यक्तिगत स्वाभिमान का विशेष महत्व है। सिख विद्वानों के अनुसार सिख शब्द संस्कृत के शिष्य शब्द का अपभ्रंश है| अपभ्रंश अर्थात बिगड़ा हुआ! विचार करने वाली बात यह है कि, सिख शब्द बिगड़ा हुआ कैसे हो सकता है? मेरा मानना है कि सिख अर्थात “श्री गुरु नानक देव साहिब जी के दर्शाए हुए सच के पथ पर, शीश तली पर धरकर चलने वाला शख्स”! प्रत्येक सिख गुरु ‘श्री नानक देव साहिब जी’ के द्वारा ‘किरत करो, नाम जपो और वंड़ छकों’ के सिद्धांत के अनुसार जीवन व्यतीत करता है अर्थात कष्ट करो, प्रभु-परमेश्वर का स्मरण करो और जो भी प्राप्त हो उसे बांट कर खाओ। सिख धर्म की बुनियाद अंधविश्वास को ना मानने में है। अज्ञानता को दूर करने के लिए मानवीय जीवन में गुरु वाणी की शिक्षाओं से दिव्य ज्ञान को प्राप्त कर गुरबाणी की शिक्षाओं के अनुसार सिख ‘जीवन शैली’ चलती है। अंधविश्वास का सिख विद्वानों ने भी अपनी वाणी में कड़ा विरोध किया गया है।
इन विद्वानों कि बाणी में अंकित है–
जो कढ़िये अंदरो अंध विशवास।
मिटे अंधकार हनेरा होए प्रकाश।।
अर्थात्… वो बातें या प्रसंग जिन पर बिना जानकारी के, बिना किसी ज्ञान के, किसी और के बोलने पर विश्वास करना अंधविश्वास कहलाता है। यदि इसे विस्तार से विश्लेषित किया जाए तो हम कह सकते हैं कि अंधविश्वास अर्थात उन बातों पर विश्वास करना जिनकी कोई प्रमाणिकता नहीं है। अंधविश्वास एक ऐसी गहरी धुंध है जो मनुष्य के सोचने-समझने की दृष्टि को प्रभावित करती है। इसका सबसे गहरा प्रभाव इंसान की मानसिकता पर पड़ता है। इससे इंसान अपनी ‘विवेक-बुद्धि’ खो देता है। इसके कई उदाहरण हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में देखने को मिलते हैं। जैसे पुराने समय में रात को घर में झाड़ू लगाने से मना किया जाता था। इसके पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण था कि पुराने समय में रात में रोशनी की सुविधा पर्याप्त नहीं होती थी और यदि गलती से घर का कीमती सामान घर में गिरा होगा तो वो कचरे के साथ बाहर फेंका जा सकता है। इसलिए रात में झाड़ू लगाने के लिए मना किया जाता था। इस तरह की अनेक धारणाएं हैं जो उस समय के अनुसार बनी हुई थी परंतु वो ही धारणाएं आज हमारे आधुनिक समाज में ‘रीति-रिवाज’ बनकर प्रचलित है। पहले से चली आ रही है, अंधविश्वास की लकीरों को समझ कर उसकी सच्चाई की तह तक कोई जाना नहीं चाहता है। पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे इन रीति-रिवाजों को इंसान मानसिक रूप से स्वयं के फायदे के लिए ‘डर’ के द्वारा दबा देता है। यदि देखा जाए तो आंख बंद कर किसी भी रीति-रिवाज को मानने का प्रमुख कारण ‘डर’ है।
पुरातन समय से लेकर वर्तमान समय तक जब भी इंसान किन्हीं बातों या प्रसंगों से भयभीत हुआ या किसी शक्ति या ताकतों के आगे इंसान ने अपने आप को कमजोर पाया तो ‘डर’ के कारण उन्हें पूजना शुरु कर दिया। यदि गहराई से सोचें तो धर्म के क्षेत्र में अंधविश्वास को बढ़ावा ‘डर’ ही देता है| ‘डर’ का अभिशाप ही इंसान को मानसिक रूप से अपाहिज करता है।अंधविश्वास, बुद्धिमान, विवेकी और समझदार व्यक्ति की बुद्धि क्षमता को ही नष्ट कर जीवन के सच्चे मार्ग से भटका देता है।
गुरबाणी में अंकित है–
दुबिधा न पड़उ हरि बिनु होरु न पूजउ मडै़ मसाणि न जाई।।
(अंग क्रमांक 634)
अर्थात इंसान को दुविधा में नहीं जीना चाहिए और ना ही अपने आप को किसी भ्रम, संदेह में डालना चाहिए क्योंकि कहीं ना कहीं दुविधा, भ्रम और संदेह ही अंधविश्वास का कारण बनते हैं। अंत में इस अंधविश्वास का परिणाम ‘धोखे’ के रूप में प्राप्त होता है। इस अंधविश्वास की गफलत भरी दुश्वारियां से बचने के लिए, आत्मा की ऊंची उड़ान के लिए, जीवन को अंधविश्वास के अंधेरों से बाहर निकालना चाहिए। ज्ञान के प्रकाश के मार्ग पर चलने के लिए आवश्यक है कि हम उस ज्ञान को प्राप्त करें। इंसान के विवेक और बौद्धिक स्तर को मजबूत करें। इंसान को सच्चे ज्ञान का बोध हो और सच्चे ज्ञान के लिए आवश्यक है, इंसान का उस परमपिता-परमेश्वर पर अटूट विश्वास का होना। इससे इंसान को समझदारी का बोध होता है और जब यह समझदारी का बोध इंसान को हो गया तो वह कभी भी किसी गफलत की हवा से जीवन में अपने विश्वास को टूटने नहीं देता है और जब अंधविश्वास का अंधेरा जीवन को बिखेरने की कोशिश करें तो हमें अपने प्रभु-परमेश्वर को याद कर विवेकी होकर जाग्रत बुद्धि से होश-हवास में कदम उठा कर अपने जीवन को स्थिरता प्रदान कर जीवन को सुखी बनाना चाहिए। यही ‘सिख जीवन शैली’ है।