सर्व कला समर्थ: धन्य-धन्य श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी

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सर्व कला समर्थ: धन्य-धन्य श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी

सृष्टि में अवतार स्वरूप महापुरुष, ईश्वर के समान माने जाते हैं और 16 कलाओं से संपन्न होते हैं। ऐसे महापुरुषों को सर्व कला संपूर्ण के नाम से सम्मानित किया जाता है। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की नौवीं ज्योत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ निश्चित ही इन सभी कलाओं के साथ इस धरती पर अवतरित हुए।
सर्व कला संपूर्ण की संकल्पना को समझने के लिए हमें उन 16 अद्वितीय कलाओं पर दृष्टिपात करना होगा, जो अवतारी गुरुओं को ईश्वरीय स्वरूप प्रदान करती हैं। ये कलाएं गुरु के जीवन का आधार होती हैं और उन्हें ईश्वरत्व का प्रतिरूप बनाती हैं। इन कलाओं की विस्तारपूर्वक विवेचना इस आलेख में की गई है|

  1. श्री धन संपदा
    ऐसे गुरु के पास न केवल अपार धन और संपदा होती है, बल्कि वे आत्मिक और बौद्धिक रूप से भी समृद्ध होते हैं। उनके घर से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता।
  2. भू अचल संपत्ति
    गुरु ऐसे भूभाग के स्वामी होते हैं, जो उनके अनुयायियों के जीवन में प्रेरणा और सफलता का संचार करता है।
  3. कीर्ति यश प्रसिद्धि
    गुरु का मान, सम्मान और यश सभी दिशाओं में फैला होता है। उनके प्रति अनुयायियों की श्रद्धा और विश्वास अटूट रहता है।
  4. मधुर वाणी की समोहकता
    गुरु की वाणी इतनी मोहक और मधुर होती है कि क्रोध से भरा हुआ व्यक्ति भी शांत हो जाता है और भक्ति भाव से भर जाता है।
  5. लीला आनंद एवं उत्सव
    गुरु अपने जीवन की लीलाओं और उत्सवों को ऐसा स्वरूप प्रदान करते हैं कि उनकी कथा सुनने मात्र से ही मन में भक्ति का संचार होता है।
  6. कांति सौंदर्य और आभा
    गुरु के मुखमंडल की आभा इतनी आकर्षक होती है कि उसे देखकर मन प्रसन्नता और शांति का अनुभव करता है।
  7. विद्या मेधा बुद्धि
    गुरु सभी विद्याओं में पारंगत होते हैं, चाहे वह वेद-शास्त्र हो, युद्ध कला हो या संगीत। उनकी विद्वत्ता हर क्षेत्र में विलक्षण होती है।
  8. विमला पारदर्शिता
    गुरु के मन में किसी प्रकार का छल-कपट या भेदभाव नहीं होता। वे सभी को समान दृष्टि से देखते हैं।
  9. उत्कर्षिनी प्रेरणा और नियोजन
    गुरु अपने अनुयायियों को प्रेरित करने और जीवन के कठिनतम लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए योजनाबद्ध दृष्टिकोण अपनाने में सक्षम होते हैं।
  10. ज्ञान नीर क्षीर विवेक एवं संतोष
    गुरु सत्य-असत्य उनके भीतर संतोष का का भेद समझ कर समाज को विवेकपूर्ण दिशा प्रदान करते हैं। भाव हमेशा विद्यमान रहता है।
  11. क्रिया कर्मण्यता
    गुरु अपने कर्मों के द्वारा संसार को प्रेरित करते हैं। वे अपने अनुयायियों को सत्कर्म की प्रेरणा देते हैं।
  12. योग चित्तलय
    गुरु का मन आत्मा में लीन रहता है। उनकी योग साधना इतनी शक्तिशाली होती है कि वे असंभव को भी संभव बना सकते हैं।
  13. प्रहवि अत्यंतिक विनय
    गुरु, जगत के स्वामी होकर भी विनम्रता का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उनके भीतर कर्ता का अहंकार नहीं होता।
  14. सत्य यथार्थ
    गुरु सत्य का प्रतिपादन करते हैं, चाहे वह किसी के लिए कितना भी कटु क्यों न हो। धर्म की रक्षा के लिए वे सत्य का दृढ़ता से पालन करते हैं।
  15. ईशान आधिपत्य
    गुरु ईश्वर के समान सर्वशक्तिमान और सर्वलोकों के अधिपति होते हैं। वे अपने अनुयायियों को अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं।
  16. अनुग्रह उपकार
    गुरु निस्वार्थ भाव से लोक कल्याण करते हैं। उनकी दयालुता और करुणा सभी के जीवन को आलोकित करती है।
    इन सोलह कलाओं से युक्त गुरु ही सर्व कला संपूर्ण कहलाते हैं। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का जीवन इन सभी कलाओं से ओतप्रोत था। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का स्वर्णिम इतिहास इन कलाओं के माध्यम से स्पष्ट होता है।
    इस आलेख में हम इन कलाओं के आलोक में गुरु पातशाह जी के जीवन और शिक्षाओं का गहन विश्लेषण करेंगे, जिससे यह सिद्ध हो सके कि वे ईश्वर के साक्षात स्वरूप और सर्व कला समर्थ गुरु थे।
    सिख धर्म के चौथे गुरु ‘श्री राम दास साहिब जी’ ने अपनी उच्चारित वाणी में सिख गुरुओं के लिए अंकित किया है:-

सा धरती भई हरीआवली जिथै मेरा सतिगुरू बैठा आइ।
से जंत भए हरीआवले जिनी मेरा सतिगुरु देखिआ जाइ।
धनु धंनु पिता धनु धंनु कुलू धनु धनु सु जननी जिनि गुरु जणिआ माइ।।
(अंग क्रमांक 310)

अर्थात्‌ वो माता धन्य है, वो पिता धन्य है; जिसने गुरु को जन्म दिया और वो स्वर्णिम समय 5 बैसाख 1678 का दिवस था (1 अप्रैल सन् 1621 ई. दिन रविवार) अमृतवेला (ब्रह्म मुहूर्त) के इस सौभाग्य भरे समय में नौवीं पातशाही ‘गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का प्रकाश हुआ था।

इस ब्रह्म मुहूर्त के समय में ‘श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी’ दरबार साहिब में ‘आसा दी वार’ का कीर्तन संगत के साथ श्रवण कर रहे थे, उसी समय दरबार साहिब में एक मेवड़ा/अरदासिआ (सेवादार) स्वयं दरबार में हाजिर हुआ और गुरु जी को इस खुशखबरी से अवगत करवाया था।

इस खुशखबरी से उपस्थित संगत में खुशी की लहर दौड़ गई। जब कीर्तन की समाप्ति हुई तो संगत की और से गुरु ‘श्री हरगोबिंद साहिब जी’ को बधाइयां प्रेषित की गई थी। अमृतसर ही नहीं अपितु जहां-जहां भी गुरु की संगत को यह खुशखबरी मिलती है तो हर्षोल्लास के माहौल में संगत के द्वारा एक दूसरे को बधाइयां प्रेषित की गई थी। गुरु जी अपने सेवादार और परिवार के साथ ‘गुरु के महल’ पधारे थे। उस समय बाबा बुड्ढा जी, भाई गुरदास जी, भाई बिधि चंद जी गुरु जी के साथ थे (अपने समय में यह सभी सिख इतिहास की महान शख्सियत थी)। गुरु जी ने नवजात बालक के आगे अपने शीश को झुका कर आदरपूर्वक नमन किया था।

यह एक आश्चर्यजनक, अचरज भरी घटना थी; जिसे ‘पंथ प्रकाश’ नामक ग्रंथ में इस तरह से अंकित किया गया है:-
तब गुरु सिस को बंदन किनी अति हित लाइ।
बिधीआ कहि कस बंधन की कहो मोह समझाइ।।

अर्थात भाई बिधि चंद जी ने अपने मुखारविंद से उच्चारित किया कि गुरु पातशाह जी आपको पहले से ही 4 पुत्र रत्नों की प्राप्ति है। आपने अपने पुत्रों को बहुत आशीष दी है एवं अत्यंत प्यार भी किया परंतु इनके जन्मों पर आपने अपने शीश को नमन नहीं किया था। क्या कारण है कि इस नवजात बालक को अपने हाथों में उठा कर बहुत ही गौर से निहारा और अपने शीश को उनके समक्ष झुका दिया? गुरु जी ने बहुत ही विनम्रता और प्यार से उत्तर दिया बिधि चंद जी आप भ्रम में मत रहना आने वाले समय में यह बालक-
“दिन रक्ष संकट हरै। एह निरभै जर तुरक उखेरी”।।
अर्थात् यह बालक दीन के रक्षक होंगे और बड़े से बड़े संकटों का नाश कर देंगे और यह निर्भय होंगे एवं दुश्मनों को जड़ों से उखाड़ के रख देंगे। मैंने स्वयं तो इनको नमन किया है परंतु भविष्य में इनके आगे पूरी दुनिया शीश झुकाकर नतमस्तक होगी। निश्चित ही यह अद्भुत नवजात बालक ‘तेग का धनी’ होगा। इसलिए इनका नामकरण भी मैंने ‘तेग बहादर’ कर दिया है। (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित लीला आनंद उत्सव और कांति सौंदर्य आभा कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|

एक दिन गुरु ‘श्री हरगोबिंद साहिब जी अपने तख्त पर विराजमान होकर संगत को उपदेशित कर रहे थे तो उस समय आप जी अपनी बाल लीलाओं से सभी को मोह लेते हैं और खेलते-खेलते गुरु जी की गोद में जाकर बैठ जाते हैं। उस समय बाल ‘तेग बहादुर साहिब जी’ ने गुरु जी के पीरी वाले ‘गातरे’ को कसकर पकड़ लिया था। (कृपाण को संजो कर रखने वाले कपड़े से बने हुए पट्टे को ‘गातरा’ शब्द से संबोधित करते हैं)। जब गुरु ‘श्री हरगोबिंद साहिब जी’ ने आप जी के हाथ से गातरा छुड़वाने का प्रयत्न किया तो आप जी ने उसे और कसकर पकड़ लिया था। उस समय गुरु ‘श्री हरगोबिंद साहिब जी’ ने भाव विभोर होकर कहा था कि पुत्र जी अभी समय नहीं आया है; जब समय आएगा तब आपको ‘देग’ चलानी भी पड़ेगी और खानी भी पड़ेगी। (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित लीला आनंद एवं उत्सव कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|

बाल ‘तेग बहादुर जी’ ने चार वर्ष की आयु से लेकर दस वर्ष की आयु तक ‘बाबा बुड्ढा जी’ से केवल शिक्षा ही ग्रहण नहीं की अपितु ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ से लेकर वर्तमान समय तक सिख इतिहास का अध्ययन कर उन्हें ठीक से समझ लिया था। ‘बाबा बुड्ढा जी’ से आप जी ने अपने दादा ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ की शहीदी के इतिहास को भी सुना था। लगातार 6 वर्ष तक आप जी ‘बाबा बुड्ढा जी’ के सानिध्य में रहे और जीवन की जरूरतों को अच्छी तरह से समझ लिया था। ‘बाबा बुड्डा’ जी के सात्विक जीवन की उच्च शिक्षाओं को आपने अपने हृदय में समाहित कर अपने स्वयं के जीवन को ‘भक्ति भावनाओं’ के रंग से भर दिया था। (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबधित बाल विद्या मेधा बुद्धी कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|
‘भाई गुरदास जी’ और ‘बाबा बुड्ढा जी’ ने मिलकर भावी गुरु ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ को उत्तम ढंग से सिख रीति-रिवाजों और संस्कारों से शिक्षित भी किया था। ‘भाई गुरदास जी’ ने ब्रजभाषा, के अतिरिक्त कई अन्य भाषाओं का ज्ञान भी भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को दिया था। इसलिये गुरु ‘श्री तेग बहादर साहिब जी’ की रचित बाणी में पुरातन हिंदी की शब्दावली बहुतायात में पायी जाती है| अपने समय में भाई गुरदास जी बाल ‘तेग बहादुर जी’ को शिक्षित करने के दायित्व को बहुत ही अच्छे ढंग से निभा रहे थे। साथ ही बाबा बुड्ढा जी के निरीक्षण में ‘गतका विद्या’ (सिख योद्धाओं के द्वारा परंपरागत विधि से सीखने वाली शस्त्र विद्या) को सीखने का प्रारंभ भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने कर दिया था। (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाहा जी से संबधित विद्या मेधा बुद्धी कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|

‘उत्तम वैद्य’ के रूप में भावी गुरु ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ ने चिकित्सा विज्ञान में भी महारत हासिल कर रखी थी और कई दुर्गम रोगों का इलाज भी किया था। आप जी को कई प्रकार की जड़ी-बूटियों की उत्तम जानकारी थी कारण ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ महाराज ने अपने कार्यकाल में तरनतारन में एक विशेष ‘चिकित्सा केंद्र’ बनाया था और इस केंद्र में कोढ़ के रोग से पीड़ितों का उत्तम इलाज किया जाता था। साथ ही जब लाहौर शहर ‘अकाल ग्रस्त’ हुआ था तो वहां पर भी रोगियों का उत्तम इलाज किया था। इन सेवाओं को उत्तम ढंग से निभाते हुए भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में महारत हासिल की थी। इस ‘चिकित्सा विज्ञान’ की शिक्षा को भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के साथ-साथ आप जी से दो वर्ष आयु में बड़े भाई ‘बाबा अटल जी’ ने भी प्राप्त की थी। (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित क्रिया कर्मण्यता कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|

जिस प्रकार से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के बडे़ भ्राता बाबा अटल जी ने अपनी योग चित्तलय शक्ति के द्वारा अपने मित्र मोहन जी को पुनर्जीवित किया था, निश्चित ही बाल तेग बहादुर जी भी अपनी योग चित्तलय शक्ति से इस कार्य को अंजाम दे सकते थे| इसी से सिद्ध होता है कि श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी योग चित्तलय शक्ति कला से परिपूर्ण थे|

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का 7 वर्ष से 10 वर्ष तक का जीवन अत्यंत सादगी एवं त्याग और वैराग्य स्वरूप में व्यतीत हुआ था कारण इन 4 वर्षों में आप से 2 वर्ष बड़े भ्राता बाबा अटल जी का निधन हो गया था साथ ही दादी जी माता ‘गंगा जी’ एवं परम स्नेही बाबा ‘श्री चंद जी’ (जिनकी आयु 100 वर्षों से भी अधिक थी) एवं उनके सबसे करीबी शिक्षक जिन्हें वह अपना आदर्श मानते थे ऐसे बाबा बुड्ढा जी का भी 17 नवंबर सन 1631 ई. को 125 वर्ष की आयु में अकाल चलाना (स्वर्गवास) कर गए थे| इन सभी कारणों से बाल ‘तेग बहादुर जी’ के ह्रदय में त्याग और बैराग उत्पन्न हो गया था| (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित क्रिया कर्मण्यता और विमला पारदर्शिता कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|

भावी गुरु ‘श्री तेग बहादुर जी’ का करतारपुर में परिणय बंधन के पश्चात ही पैंदे खान से करतारपुर का चौथा युद्ध हुआ था। पैंदे खान वह अनाथ बालक था जिसे ‘श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी’ ने आश्रय देकर उसका पालन-पोषण किया था। इस बालक पैंदे खान के पालन-पोषण के लिए दो भैंस के दूध का भी प्रबंध किया गया था। गुरु पातशाह जी स्वयं पैंदे खान के पालक की भूमिका निभा रहे थे एवं जीवन में आवश्यक सभी सुविधाएं मुहैया करवाई थी। इस पैंदे खान का निकाह भी गुरु जी की कृपा दृष्टि से हुआ था। गुरु जी ने इस पैंदे खान की बेटी का निकाह भी करवाया था और इनके निवास के लिए भवन निर्माण भी करवाया था परंतु ‘नमक हराम’ पैंदे खान अपने जमाई काले खान के बहकावे में आकर स्वयं के साथियों के साथ और मुगल सरकार की सेनाओं से मिलकर करतारपुर पर आक्रमण कर दिया था।

दूसरी और सिख योद्धाओं ने भी इस युद्ध को गंभीरता से लेते हुए अपनी संपूर्ण तैयारी की थी। जब यह युद्ध प्रारंभ हुआ था तो उस समय भावी गुरु ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपनी आयु के 14 वें वर्ष में प्रवेश किया था। इस आयु में आप जी ने शस्त्र विद्या, घोडसवारी और ‘तेग’ नामक शस्त्र को चलाने में महारत हासिल कर ली थी। भावी गुरु ‘श्री तेग बहादुर जी’ अपने नाम के विशेषण अनुसार ‘तेग के धनी’ अर्थात ‘तेग बहादुर’ के रूप में प्रस्थापित हो चुके थे। इस युद्ध में भावी गुरु ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ ने जब अपने ‘तेग’ नामक शस्त्र के जौहर दिखाने शुरू किए तो दुश्मनों ने आश्चर्यचकित होकर अपने मुंह में उंगलियों को दबा लिया था। इस युद्ध में अभूतपूर्व ‘युद्ध कौशल्य’ का परिचय देते हुए इस छोटी आयु के भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने सिद्ध कर दिया था कि वो ‘तेग के धनी’ और शूरवीर योद्धा है। करतारपुर का युद्ध सफलता पूर्वक जीता गया था। इस युद्ध के पश्चात गुरु ‘श्री हरगोबिंद साहिब जी’ ने हौसला अफजाई के लिए भावी गुरु ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ के लिए कमाल के आशीर्वाद वचन कहे थे। आप जी ने प्रेम पूर्वक कहा था कि सचमुच आप ‘तेग के धनी’ हो, आपने अपने नाम के विशेषण अनुसार ‘तेग बहादुर’ के नाम को सारगर्भित करते हुए इस नाम कि आपने लाज रख ली।(इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित क्रिया कर्मण्यता, विद्या मेधा बुद्धि और उत्कर्षिनी प्रेरणा और नियोजन कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|

11 अगस्त सन 1664 ई. के दिवस ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की नौवीं ज्योत के रूप में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को गुरता गद्दी का तिलक सुशोभित किया गया था। 9 अक्टूबर से लेकर 22 नवंबर तक 43 दिनों तक गुरु ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ ने संगत को दर्शन-दीदार देकर उनका उद्धार किया था और ‘बाबा बकाला’ की धरती को भाग्य लगाये थे। गुरु जी ने उपस्थित संगत के बीच इच्छा जाहिर कर उन स्थानों पर, उन गुरु धामों पर जाना चाहिए जहां मसंदों ने मनमानी कर आप स्वयं ही गुरु के रूप में आसीन हो गए थे। जिसके कारण संगत भ्रमित होकर गुमराह हो रही थी। इन भ्रमित संगत को सही ज्ञान देने के लिए ऐसे स्थानों पर जाना आवश्यक हो गया था।

इस यात्रा के दौरान गुरु जी ग्राम ‘कालेके’ ग्राम ‘तसरिका’ और ग्राम ‘लेहल’ होते हुए 22 नवंबर सन 1664 ई. को आप जी संगत समेत ‘श्री दरबार साहिब जी’ अमृतसर में पहुंचे थे| उस समय हर जी ‘श्री दरबार साहिब जी’ पर कब्जा जमाए बैठा था और उसने ‘श्री दरबार साहिब जी’ के प्रवेश द्वार को बंद कर दिया था| हरि जी भयभीत था कि कहीं मेरा कब्जा ना चला जाए? हरि जी ने दर्शनी ड्योढ़ी के द्वार को बंद करवा दिया था। हरि जी वहां से दूर भाग कर अपने ग्राम ‘हेहर’ नामक स्थान पर चला गया था। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ बेर के पेड़ के चारों और बने चबूतरे पर आसीन हुए थे और कुछ समय पश्चात आप जी अपने गंतव्य स्थान की और काफिले सहित मार्गस्थ हो गए थे। भाई मक्खन शाह लुबाना ने गुरु जी से निवेदन किया कि यदि आप आदेश करें तो मैं इन सभी दोषियों को सबक सिखा दूंगा परंतु गुरु जी ने वचन उच्चारित किए कि यह अपने कर्मों के फलों का स्वयं ही भुगतान करेंगे। (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित ज्ञान नीर क्षीर विवेक एवं संतोष कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के पश्चात लोक-कल्याण के लिए सर्वाधिक यात्रा की थी| ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ ने भारत भूमि के विभिन्न प्रांतों की यात्रा की थी। विशेष रूप से सुबा पंजाब और हरियाणा में आप जी ने यात्राएं कर सिक्खी के बूटे को प्रफुल्लित किया था। आप जी ने बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड होते हुए आसाम तक की यात्रा की थी। साथ ही साथ आप जी उड़ीसा, दिल्ली, हरियाणा के मार्ग से होते हुए पुनः पंजाब में पधारे थे। गुरु जी द्वारा आयोजित यात्राएं धर्म प्रचार-प्रसार के लिए तो थी ही अपितु आप जी ने इन यात्राओं के माध्यम से अनेक आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक उन्नयन और मानव जाति के कल्याण के लिए अनेक रचनात्मक कार्यों को अंजाम दिया था। आप जी ने इन यात्राओं के माध्यम से अंधविश्वास, रूढ़ियों की आलोचना कर नए आदर्शों को प्रस्तावित किया था। आप जी ने इन यात्राओं के माध्यम से अनेक रोगियों को रोग से मुक्त किया था। आप भी उत्तम वैद्य और आयुर्वेद चिकित्सक थे। जहां-जहां भी आप जी गये उन स्थानों पर लोक-कल्याण हेतु धर्मशालाएं बनाई। कई कुएं खुदवाकर स्वच्छ पीने के पानी का इंतजाम किया था। आप जी ने अपने जीवन में अनेक परोपकार के कार्य किए थे। आप जी उत्तम वास्तु शिल्पकार थे, आप जी ने 19 जून सन 1665 ई. को ग्राम सहोटा के समीप ऊंचे टीले पर मोहरी गड्ड (नींव का पत्थर) रखकर चक नानकी (श्री आनंदपुर साहिब जी) नगर का निर्माण किया था। उस समय में इस नगर की रचना अपने आप में वास्तुशिल्प का अनोखा अविष्कार थी। (इस स्वर्णिम यात्राओं के इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित श्री धन संपदा, भू अचल संपत्ती, कीर्ती यश प्रसिद्धी, मधुर वाणी की सम्मोहकता, लीला आनंद एवं उत्सव, कांति सौंदर्य और आभा, विद्या मेधा बुद्धी, विमला पारदर्शिता, उत्कर्षिनी प्रेरणा और नियोजन, ज्ञान नीर क्षीर विवेक एवम् संतोष, क्रिया कर्मण्यता, योग चित्तलय, प्रहवि अत्यंतिक विनय, सत्य यथार्थ, ईशान आधिपत्य और अनुग्रह उपकार ऐसी कुल 16 कलाओं की अनुभूती के दर्शन होते है)|

11 नवम्बर सन 1675 ई. को (वर्तमान समय से 349 वर्ष पूर्व) ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ के समक्ष समय के हुक्मरानों ने तीन शर्तों को रखा था। कोई करामत दिखाओ, या इस्लाम धर्म को कबूल कर लो और यदि दोनों शर्तो को मानने को तैयार नहीं हो तो मृत्यु के लिए तैयार हो जाओ। ऐसे कठिन समय में पूरे देश की आंखें गुरु जी के फैसले पर टिकी हुई थी। गुरु जी ने इंसानियत की जमीर को जिंदा रखने के लिए स्वयं की शहादत का फैसला लिया था। सर्व कला संपूर्ण ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ अपनी आध्यात्मिक शक्ति के द्वारा चाहे जो करामत दिखा सकते थे परंतु इंसानियत को जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने का संदेश देने के लिए आपके द्वारा लिया गया फैसला इस पूरे मुल्क की तकदीर बदलने वाला था। विश्व के इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण मौजूद नहीं है कि किसी दूसरे के धर्म को बचाने हेतु स्वयं की शहादत को अर्पित कर देना। आप जी के द्वारा इंसानियत के जमीर को नंगा होता हुआ देखा नहीं गया था। इसलिए अपनी शहादत की चादर से आप जी ने इंसानियत के जमीर को ढककर इंसानियत अस्मत को बेआबरु होने से बचा लिया था। (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबधित योग चित्तलय और ईशान आधिपत्य कला की अनुभूती के दर्शन होते है)| जिसे एक कवि ने इस तरह से शब्दांकित किया है:-

तेग बहादुर के चलत भयो जगत में शोक॥
है है है सब जग भयो जै जै जै सुर लोक॥

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की शहीदी से पूरे जगत में शोक की लहर फैल गई थी और दुनिया में हाहाकार मच गया था परंतु धरती तो धरती अपितु स्वर्ग लोक में भी गुरु जी की शहादत की जय-जयकार गूंज उठी थी।

उस समय गुरु जी के परम भक्त भाई लक्खी शाह बंजारे ने गुरु जी के धड़ का संस्कार अपने घर को आग लगाकर किया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा रकाबगंज की विलोभनीय इमारत दिल्ली में सुशोभित है। भाई जैता जी ने मुगल सैनिकों की आंख में धूल झोंक कर गुरु जी के शीश को लेकर श्री आनंदपुर साहिब की और प्रयाण किया था। उस समय गुरु ‘श्री गोविंद सिंह साहिब जी’ ने भाई जैता जी को ‘रंगरेटा, गुरु का बेटा’ की उपाधि से सुशोभित कर सम्मानित किया था। (इस स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित ईशान आधिपत्य कला की अनुभूती के दर्शन होते है)|

इस दुनिया में गुरु साहिब के दर्शाए मार्ग पर चलकर ही अमन और शांति कायम हो सकती है। सत्ता का गुरूर और जोर-जुल्म से आज तक कोई विजय प्राप्त नहीं कर सका है। अंत में इंसानियत के जमीर के रक्षक ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ की पावन-पुनीत-पवित्र शहादत को समर्पित चंद पंक्तियां:-
तिमिर घना, तमा गहराई, पर सत्य का दीप बुझा है क्या?
धर्म की ध्वजा, आकाश सम, तूफानों से झुका है क्या?
शहीद की पुकार में, है जग का उजियारा छुपा है क्या?
ज्ञान के सूरज को तमस ने कभी निगला है क्या?
श्री गुरु तेग बहादुर जी का साहस है इतिहास का गान,
जहां धर्म के रक्षक बनें, वहीं जीवन का बलिदान।
मिट गए मिटाने वाले, जब गुरुओं का ज्ञान जगा,
शमशीरों से सत्य रुका, ऐसा कभी हुआ है क्या?
नमन तुम्हें, हे त्याग के युगधरा, सत्य के प्रहरी महान,
श्री तेग बहादुर जी, तुम हो मानवता के अभिमान।
(‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के अनमोल स्वर्णिम इतिहास में गुरु पातशाह जी से संबंधित श्री धन संपदा, भू अचल संपत्ती, कीर्ती यश प्रसिद्धी, मधुर वाणी की सम्मोहकता, लीला आनंद एवम् उत्सव, कांति सौंदर्य और आभा, विद्या मेधा बुद्धि, विमला पारदर्शिता, उत्कर्षिनी प्रेरणा और नियोजन, ज्ञान नीर क्षीर विवेक एवं संतोष, क्रिया कर्मण्यता, योग चित्तलय, प्रहवि अत्यंतिक विनय, सत्य यथार्थ, ईशान आधिपत्य और अनुग्रह उपकार कला इस प्रकार से सोलह कला अर्थात् सर्व कला संपूर्ण की अनुभूती के दर्शन होते है)|

इंसानियत की जमीर के रखवाले, ‘सर्व कला संपूर्ण’ ऐसे महान ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की महान शहादत को सादर नमन!


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