सफलता की कुंजी: संघर्ष

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सफलता की कुंजी: संघर्ष

मनुष्य के परिचय का प्रारंभ उसके चेहरे से होता है तो उसकी संपूर्ण पहचान उसके विचार, वाणी और कर्मों से होती है। आप स्वयं चाहे जितने बड़े व्यक्तित्व के स्वामी हो या आपके साथ चाहे जितनी भीड़ नुमा लोग सहयोग करते हो परंतु जीवन को अपने कर्तव्य से ही लगातार संघर्ष कर सार्थक करना पड़ता है। जीवन की कठिनाइयों में आधार देने के लिए कंधे ना खोजें! स्वयं को स्थित प्रज्ञ बनाएं। जिस व्यक्ति का स्वयं से ही संघर्ष होता है उसे कोई पराजित नहीं कर सकता है। कोई भी दुख, मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं है, वो ही हारा है, जो लड़ा नही है। निश्चित ही जीवन के संघर्ष में अपयश अनाथ होता है परंतु यशस्वी इंसान को जीवन में ईर्ष्या, निंदा, टीका और टिप्पणी का लगातार सामना करना पड़ता है कारण प्रतिदिन की स्तुति प्रगति के मार्ग में गतिरोध का कार्य करती है। प्रतिदिन की स्तुति गर्व के मार्ग पर ले जाती है जो कि घातक है। जीवन में नेक कमाई अर्जित करना अत्यंत कठिन है और उस नेक कमाई को संभालकर–सहेज कर रखना और भी अधिक कठिन है, फिर वह धन हो, मन हो, या जन हो, जीवन यात्रा को चमकाने के लिए स्वयं को ही प्रकाशमान करना होगा और जीवन यात्रा को झलकाने के लिए स्वयं को ही तेजवान होना होगा। मित्रता ऐसी निभाओ कि पूरा जग अपना होना चाहिए। इंसान ऐसे बनो कि इंसानियत भी नतमस्तक हो, प्रेम ऐसा करो कि दुनिया प्यारी लगे, सभी को मदद ऐसी करो कि स्वयं का जीवन सार्थक हो, संयमित जीवन सकारात्मकता प्रदान कर विशेष गुणों को सर्जीत करता है, एक उत्तम विचार कई नकारात्मक विचारों को समाप्त करता है। प्राप्त वस्तुओं के लिए उस अकाल पुरख, परमेश्वर का शुक्रराना करना चाहिए कारण प्राप्त हुई वस्तुओं के लिए जीवन में आपने कड़ा संघर्ष किया है। ध्यान रखो! स्वयं की अंतरआत्मा को कभी कलुषित न होने दो।

भूतकाल, भविष्य काल और वर्तमान काल में एक शाश्वत सच है कि रिश्ते और विश्वास की कमाई करना ही उन्नति का मार्ग है। जिन व्यक्तियों के प्रति आदर सम्मान हो उनके समक्ष अवश्य नतमस्तक होना चाहिए। वरिष्ठों से प्राप्त बहुमूल्य आशीर्वाद, प्रेरणा और मार्गदर्शन निश्चित ही जीवन के संघर्ष में तुम्हें सम्मान प्रदान करेंगे। सकारात्मक विचारों से युक्त जीवन अत्यंत सुंदर है, एक बहुत ही सुंदर गीत है–

ज्योति से ज्योत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो॥

इंसान का इंसानियत से जुड़ना अत्यंत आवश्यक है जितनी भूख है उतना खाना यह प्रकृति है और भूख से अधिक खाना विकृती है परंतु समयानुसार स्वयं भूखे रहकर दूसरों की भूख मिटाना या संस्कृति है। अच्छे व्यक्तियों के जीवन में संकटों के पहाड़ निरंतर आते रहते हैं कारण संकटों से सामना करने की क्षमता उस अकाल पुरख,परमेश्वर से ऐसे व्यक्ति को ही प्राप्त होती है, जो जवाबदार होते हैं। इस जीवन की यात्रा ने हंसाया तो समझो कि उत्तम कार्यों के फल प्राप्त हो रहे हैं और यदि जीवन की यात्रा ने रुलाया तो यह इशारा है कि अच्छे कार्यों को अंजाम देने का समय आ गया है। ऐसे व्यक्तियों से जीवन में संपर्क रखो जिन्हें तुम्हारे अस्तित्व का आभास हो, स्वयं का आत्मविश्वास ऐसी सकारात्मक ऊर्जा है जो अंधकारमय जीवन में प्रकाश किरण का कार्य करती है। जीवन में यश से थोड़ा परंतु अपयश से हम बहुत अधिक सीखते हैं। जीवन यात्रा में सकारात्मक मोड़ प्राप्त करने हेतु अच्छे समय की नहीं अपितु अच्छे लोगों की आवश्यकता होती है। भीड़ में अपने लोगों की पहचान करना सीख गए तो संकट के पहाड़ों के समय, अपने लोग भीड़ के रूप में सहारा बनने हेतु सामने होंगे। मेरे रचित वाक्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, दिल से प्रशंसा, दिमाग से हस्तक्षेप और विवेक से प्रतिक्रिया देने में ही समझदारी है, अन्यथा मौन ही बेहतर है। मेरा स्पष्ट मत है कि प्रतिक्रिया देने से उत्तम है प्रतिसाद देना! प्रतिसाद दिया तो निश्चित ही बदलाव अटल है। फिर चाहे वह मनस्थिती हो या परिस्थिती! अर्थात् संघर्ष के द्वारा विपरित परिस्थितीयों पर पार पाना यदि हमारे सामर्थ्य में है तो जीवन अति सुंदर होगा। असहाय और कमजोर लोग भूतकाल में जीवन जीते हैं और सामर्थ्यवान लोग भूतकाल से शिक्षा ग्रहण करते है। समय की वास्तविकता कब रोते हुए इंसान को हंसायेगी? और हंसते हुए इंसान को कब रुलाएगी? कहा नहीं जा सकता है। जीवन के संघर्ष की वास्तविकता को समझना कोई कठिन कार्य नहीं है केवल जिस तराजू के पल्ले में बैठ कर दूसरे को तोलते हो, उसी तराजू के पल्ले पर स्वयं बैठ कर देखो; निश्चित ही रेगिस्तान की रेतीली पहाड़ियों पर हरियाली के ओएसिस (मरुद्यान) का एहसास होगा। सर्वोत्तम रिश्ता दोस्ती का होता है, संपूर्ण जीवन की एकत्रित संपत्ति अर्थात उत्तम विचार है कारण धन और बल किसी भी इंसान को बुरे रास्ते पर ले जा सकते हैं परंतु उत्तम विचार इंसान को उत्तम और समाज को जोड़ने वाले कार्यों की और प्रेरित करते है। अजीब विडंबना है कि पत्थर में ईश्वर के दर्शन होते हैं, गाय में माता के दर्शन होते हैं और कव्वों में पूर्वजों के दर्शन होते हैं परंतु इंसानों में इंसान नजर नहीं आता है। जिस दिन इंसान में इंसान और इंसानियत नजर आएगी निश्चित ही उस दिन साक्षत् अकाल पुरख, परमेश्वर का तुम्हें आशीर्वाद प्राप्त होगा।

संघर्ष ही जीवन है, “निश्चय कर अपनी जीत करो”।

नोट– अपने जीवन के ‘यथार्थवादी अनुभव’ को इस ‘अनुभव लेखन’ में शब्दांकित कर मन के उद्गारों को उकेरने का प्रयास है।

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निश्चय कर अपनी जीत को पाना होगा

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