श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी और भक्त कबीर

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ੴ सतिगुर प्रसादि॥

चलते-चलते. . . .

(टीम खोज-विचार की पहेल)

प्रासंगिक 7 वां संत कबीर जयंती समारोह (04/06/2023 पुणे)

श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी और भक्त कबीर

भक्त कबीर जी का मध्यकालीन संत-महापुरुषों की भक्त श्रृंखला में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। उस समय में धर्म चिंतन के क्षेत्र में वह अपने समय के हरमन प्यारे, समाज द्वारा स्वीकृत, राणा और रंक दोनों ही समुदायों से सम्मान प्राप्त अत्यंत तेजस्वी सितारे थे।

इस सम्मान का मूल कारण उनके मुखारविंद से उच्चारित विद्रोह के वह स्वर थे, जिसका सारोकार मानव शरीर, मानव सोच, मानव आत्मा और मानव दुख: दर्द अर्थात मानव रचित समाज के प्रत्येक क्षेत्र पर उनकी वाणी सीधा कशाघात करती है। वर्तमान समय में भी उनके द्वारा रचित वाणी जीवन में सांत्वना और साहस प्रदान करने के लिए पूरी तरह समर्पित और सार्थक दिखाई पड़ती है। इन्हीं सभी विशेषताओं के कारण सिख धर्म के पांचवें गुरु ‘श्री अर्जन देव साहिब जी’ ने जब ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की संपादन प्रारंभ की तो उन्होंने भक्त कबीर जी की वाणीयों को सम्मान सहित ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में स्थान प्रदान किया, सिख धर्म के अनुयायियों के द्वारा ‘कबीर वाणी’ को ‘शब्द गुरु’ के रूप में सदैव ही सम्मान और सत्कार के साथ पूजा जाता है।

हमें निर्विवाद रूप से स्वीकार करना पड़ेगा कि जब ‘कबीर वाणी’ को ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में स्थान प्राप्त हुआ तो इस वाणी ने लोकप्रियता के शिखर के ऊंचाक को प्राप्त किया था और वह वर्तमान समय में भी अधोरेखित होता है। निसंदेह कबीर पंथियों द्वारा रचित ‘कबीर बीजक’ ग्रंथ को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है परंतु इसके पश्चात प्रामाणिकता की दृष्टि से देखा जाए तो विशेष रूप से ‘कबीर वाणी’ को ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में समाहित कर संपादित किया गया है और सिख धर्म के अनुयायियों ने इस वाणी को सहेज, कर संभाल कर, ‘शब्द गुरु’ का दर्जा देकर सम्मान दिया है।

यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है की, भक्त कबीर जी का समकालीन समाज धार्मिक दृष्टि से, सामाजिक व्यवहार से और आर्थिक रूप से संतुलित नहीं था। यदि इतिहास के पन्नों को खंगाला जाए तो निःसंदेह ‘कबीर युग’ में जनमानस का जीवन, भावनाओं से रहित, किस्मत का गुलाम और हर तरह के अन्याय को सहन करने का आदी बन चुका था। उसकी मानसिक अवस्था अत्यंत विकट थी, वह अपनी मान-मर्यादाओं और जीवन जीने की पद्धति को भूल चुका था। वह मालिक की गुलामी और पुजारियों की सेवा में समर्पित था। वह गुलामी की रस्सी को गले में डालकर जीने का अभ्यस्त हो चुका था। किसी भी प्रकार का अत्याचार उसे दुखी नहीं करता था, दुखों को भोगना उसके जीवन का पाठ्यक्रम बन गया था। उसे दुख लगता ही नहीं था कारण उसने सुख का कभी स्वाद ही नहीं चखा था। जिस मनुष्य ने अपने जीवन में सुख का एक पल भी व्यतित ना किया हो, वह सुख के मार्ग की कल्पना भी नहीं कर सकता है। ऐसी परिस्थिति थी कि आम आदमी वेदना और व्यथा से पीड़ित होकर जीवन जी नहीं रहा था अपितु जीवन को घसीट रहा था।

ऐसे कठिन समय में मानवीय जीवन के क्षेत्र में जो ‘कबीर वाणी’ ने कीर्तिमान स्थापित किए वह वर्तमान समय में भी मनुष्य को धीरज और साहस प्रदान करने की शक्ति देता हैं। इन सभी विशेषताओं के कारण ही पांचवें गुरु ‘श्री अर्जन देव साहिब जी’ ने जब ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का संपादन कर कबीर वाणी को उचित सम्मान दिया।  

‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का संपादन बड़ी कुशलता और वैज्ञानिक तरीके से की गई है। 1430 अंगों वाले (‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है) इस पावन ग्रंथ के अंग क्रमांक 9 से लेकर अंग क्रमांक 1353 तक की संपूर्ण वाणी को विभिन्न गुरमत संगीत के रागों में विभाजित किया गया है। प्रथम आठ अंग और 1353 अंगों से लेकर 1430 अंगों तक वाणी में रागों के शीर्षक अंकित नहीं है। गुरमत संगीत के रागों के अनुसार संपूर्ण वाणी को क्रमानुसार 31 मुख्य राग और 34 उपरागों में विभाजित किया गया है। प्रथम महिला के अंतर्गत ‘श्री गुरु नानक देव जी’ की वाणी आती है फिर क्रमानुसार दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें और नौवें महिला की वाणी आती है। जो की गुरुओं के क्रम को दर्शाता है, इसके पश्चात भक्तों की वाणी आती है और इन भक्तों की वाणी में भक्त कबीर जी को प्रथम स्थान प्राप्त है। जबकि कालानुसार 12 वीं सदी के बाबा फरीद जी थे, जो भक्त कबीर जी से 3 सदी पूर्व पैदा हुए थे।

दरअसल ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के समय तक संत-महापुरुषों और गुरुओं की वाणियों को किसी संकलित रूप में संग्रहित नहीं किया गया था। ‘श्री गुरु अर्जन देव जी’ ने इस दृष्टिकोण से विचार कर, भाई गुरदास जी की सहायता से प्रथम पांच सिख गुरुओं की वाणी और इसके पश्चात समान विचार रखने वाले भक्तों और भाटों की वाणियों को संग्रहित कर, एक प्रमाणिक ग्रंथ के संपादन में अपना अभूतपूर्व योगदान प्रदान किया था। उस समय यत्र-तत्र बिखरी हुई इन वाणियों को खोजकर, और उन वाणिओं में भक्तों और भाटों की वाणियों को जोड़कर एवं उन वाणियों की जांच-पड़ताल कर, संपूर्ण ग्रंथ का संकलन और संपादन करना सचमुच एक अत्यंत कठिन कार्य था।

भक्त कबीर जी के संदर्भ में इस संकलन में स्पष्ट किया गया है–

लोगु जानै इहु गीतु है इहु तो ब्रहम विचार।। 

(अंग क्रमांक 335)

अर्थात् लोग समझते हैं कि यह गुरु का शब्द गीत है परंतु या तो ब्रह्म का चिंतन है।

सच तो यह है कि वर्तमान समय में सारे धर्मों में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ ही ऐसे पावन ग्रंथ है जिसमें दूसरे धर्म के मानने वालों के विचारों को अपनी विचारधारा से जोड़कर इस महान ग्रंथ ने मानवीय समाज का प्रत्येक क्षेत्र में संपूर्ण मार्गदर्शन किया है।

‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में भक्त कबीर जी द्वारा रचित 229 पद्य गुरमत संगीत के 17 रागों में और 243 श्लोकों में संकलित है। (इन में 6 गुरु साहिबान के श्लोकों को भी संकलित किया गया) अर्थात् कबीर वाणी की संख्या अन्य भक्तों की तुलना में सर्वाधिक है। इससे स्पष्ट है कि भक्त कबीर जी की मूल अवधारणा सिख गुरुओं की मान्यताओं के अनुसार एक समान अर्थात् अभेद है। मानवीय जीवन शैली पर भक्त कबीर जी और सिख गुरुओं ने एक जैसे ही विचारों को प्रस्तुत किया है। इसी कारण से ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में भक्त कबीर जी के 243 श्लोकों के स्पष्टीकरण में एक श्लोक श्री गुरु अमर दास जी का और पांच श्लोक श्री गुरु अर्जन देव जी के भी शामिल है।

इस ग्रंथ की संपदना में श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी ने स्वयं की वाणी और चार गुरु साहिबान की वाणियों से अधिक संख्या में ‘कबीर वाणी’ को स्थान दिया है। इससे स्पष्ट है कि समान विचारधारा वाली वाणियों से इस ग्रंथ के संपदन में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया था। इसलिए इस पावन-पुनीत ग्रंथ में 12 वीं शताब्दी के बाबा फरीद से लेकर 17 वीं शताब्दी के ‘श्री गुरु तेग बहादुर जी’ की वाणी को संग्रहित किया गया है।

सन् 1708 ई. में ‘श्री गुरु गोविंद सिंह जी’ ने इसी महाराष्ट्र की धरती पर अबचल नगर श्री हजूर साहिब नांदेड़ में देहधारी गुरु की परंपरा को समाप्त कर ‘शब्द गुरु’ के रूप में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की स्थापना कर उन्होंने इस ग्रंथ के प्रारंभ से ही ‘गुरु शब्द’ को जोड़कर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के  नाम को अधोरेखित किया था। उस समय से लेकर वर्तमान समय तक यही नाम प्रचलित है। जहां यह ग्रंथ सिख धर्म के अनुयायियों के लिए गुरु रूप से पूजनीय है, वही इस पावन ग्रंथ में अन्य 35 वाणी कारों को भी ‘शब्द गुरु’ के रूप में एक जैसा सम्मान और सत्कार प्राप्त है अर्थात् इस ग्रंथ में संकलित गुरुओं की वाणी ‘शब्द गुरु’ के रूप में है तो निसंदेह ‘कबीर वाणी’ को भी तो वह ही सम्मान और सत्कार प्राप्त है।

नोट 1. उपरोक्त आलेख ‘राष्ट्रीय शिक्षक संचेतन (उज्जैन) और अंजुमन खेरुल इस्लामस पूना कॉलेज आफ आर्ट्स, साइंस व कॉमर्स कैम्प पुणे द्वारा आयोजित 7 वें संत कबीर जयंती समारोह में पुणे से प्रकाशित दैनिक भारत डायरी और टीम खोज-विचार की और से प्रस्तुत किया गया है।

2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।

साभार— लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज-विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।

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