श्री गुरु ग्रंथ साहिब और भक्ति संगीत

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श्री गुरु ग्रंथ साहिब और भक्ति संगीत

‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ एक ऐसा पवित्र, अनोखा ग्रंथ है जिसमें अंकित सारी गुरुबाणी भक्ति संगीत पर आधारित है।‌ जिसे ‘गुरमत संगीत’ के नाम से भी पहचाना जाता है। ‘गुरमत संगीत’ का प्रारंभ सिक्ख धर्म के संस्थापक प्रथम गुरु ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ से हुआ एवं दशम पिता ‘श्री गुरु गोबिन्द सिंघ साहिब जी’ के समय तक पूर्ण विकसित हो गया था। निश्चित रूप से ‘गुरमत संगीत’ का आधार भारतीय शास्त्रीय संगीत ही है।’गुरमत संगीत’ को हम इस तरह से परिभाषित कर सकते हैं-
सिख धर्म में प्रभु के यश के साथ आध्यात्मिक संबंध रखने वाले गुरु, भक्त, संत एवं सुफी-फकीरों की बाणी को राग, लय और ताल में गाने की संगीतमय पद्धति को ‘गुरमत संगीत’ कहते हैं।

‘गुरमत संगीत’ की कुछ मौलिक विधायें हैं जिस कारण ‘गुरमत संगीत’ पारंपरिक भारतीय शास्त्रीय संगीत से अलग हो जाता है। सिख धर्म में प्रचलित पारंपरिक कीर्तन प्रथा के सिद्धांत को ही ‘गुरमत संगीत’ कहते है।
‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने गुरमत के प्रचार के लिये संगीत को माध्यम बनाया और यही संगीत की परंपरा दसवें गुरु तक ‘गुरमत संगीत’ के नाम से विकसित हुई और इस तरह भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक नई विधा ‘गुरमत संगीत’ का जन्म हुआ।
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में 1430 पृष्ठों (अंग) में ‘गुरमत संगीत’ के आधार पर ही रागमयी गुरबाणी अंकित है। 12 वीं सदी से लेकर 17 वीं सदी तक भारत के विभिन्न प्रांतों में रची गई ईश्वरी आध्यात्मिक बाणी को ही ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में संकलित किया गया है। इस ग्रंथ में सिख गुरुओं के अतिरिक्त अन्य धर्मों के भक्त, संत और सूफी-फकीरों की बाणी भी सम्मिलित है।

‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में संकलित गुरबाणी को योजनाबद्ध तरीके से वैज्ञानिकिय आधार पर संकलित किया गया है। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में रचित रागों को विशिष्ट भावनाओं, विषय और समय के साथ सम्मिलित किया गया है। जिसका मानवीय जीवन पर विभिन्न रूप से विशेष प्रभाव होता है। संक्षेप में जानकारी इस प्रकार से-
राग बिलावल- इस राग में आत्मा के सौंदर्य का वर्णन किया गया है।
राग गौंड़ और तुखारी- इस राग में अलगाव और संघ के विषय में वर्णन किया गया है।
राग श्री- इस राग में माया और अलगाव को वर्णित किया गया है।
राग माझ- इस राग में आत्मा का परमात्मा में लीन होना और नकारात्मक विचारों को त्यागने के के संबंध में अद्भुत वर्णन किया गया है।
राग गौरी- इस राग में आध्यात्मिक सिद्धांतों और विचारशीलता का वर्णन किया गया है।
राग आसा- यह राग मानवीय जीवन की आशाओं पर केंद्रित है‌।
राग देवगंधारी- इस राग में पति-पत्नी को आत्मानुभूति अवस्था में लीन होने का वर्णन किया गया है।
राग सोरठ- इस राग में ईश्वर की लीलाओं का वर्णन किया गया है।
राग धनाश्री- इस राग में कई विभिन्न विषयों का उत्तम वर्णन किया गया है।
राग जैत श्री- इस राग में मन की स्थिरता का वर्णन किया गया है।
राग टौढ़ी- इस राग में माया और अलगाववाद का वर्णन है।
राग बैरारी- इस राग में प्रभु की भक्ति करने की प्रेरणा का वर्णन किया गया है।
राग तिलंग- इस राग में लिखित कविता में इस्लामिक परंपरा के अनेक शब्दों का उपयोग उदासी और सुंदरता को दर्शाने के लिये किया गया है।
राग नट नारायण- इस राग में प्रभु मिलन उपरांत मिलने वाले आत्मिक आनंद का वर्णन किया गया है।
राग माली गौरा और बसंत- इस राग में जीवन में मिलने वाली खुशियों को वर्णित किया गया है।
राग केदारा- प्रेम पर वर्णित है।
राग भैरव- इस राग में नरकीय यातना का वर्णन किया गया है।
राग सारंग- इस राग में प्रभु मिलन की प्यास का वर्णन किया गया है।
राग जै जै वंती और वड़हंस- इन रागों में अलगाववाद पर ध्यान केंद्रित करने का वर्णन किया गया है।
रात कल्याण प्रभाती और कानरा- इन रागों में भक्तों की भक्ति को दर्शाने का वर्णन किया गया है।
राग सोही बिहाग और मल्हार- इन रागों में आत्मा का प्रभु के घर से दूर होना और पति मिलन की खुशी का वर्णन किया गया है।
शास्त्रीय संगीत के राग व्यक्ति की भावनात्मक झुकाव का‌ प्रतिबिंब होता है और इसे संगीत की लय में लाने हेतु बनाये गये नियमों में संग्रहित करना होता है। ठीक इसी प्रकार इन रागों को उच्चारने का समय चक्र भी निश्चित है, जो इस प्रकार है–
राग सोहिनी और परज- प्रातः से पूर्व (रात 2 बजे से भोर 4 बजे) तक।
राग भटियार और ललीत- भोर ( 4 बजे से 6 बजे) तक।
राग अहीर, भैरव, बिलास्खानी-टोड़ी, कोमल-ऋषभ और आशावारी- प्रातः ( 8 बजे से 10 बजे) तक।
राग भैरवी, देशकर, अलहिया – बिलावल और जौनपुरी- प्रातः (10 बजे से दोपहर 2 बजे) तक।
राग मपलासी और मुल्तानी- दोपहर (2 बजे से 4 बजे) तक।
राग- पूर्वी, श्री और प्रदीप- सांयकाल (4 बजे से 6 बजे) तक।
राग यमन, पुरिया, शुद्ध-कल्याण और हमीर- सांयकाल (6 बजे से 8 बजे) तक।
राग जै जै वंती, केदार, दुर्गा और देश- सांयकाल ( 8 बजे से 10 बजे) तक।
राग बिहाग, बागे श्री, शंकर और चंद्रकौंस- रात (10 बजे से 12 बजे) तक।
राग मालकौंस, दरबारी, कान्हड़ा, शहाना और अड़ाना- देर रात ( 12 बजे से 2 बजे) तक।
इससे स्पष्ट रुप से निष्कर्ष निकलता है कि यदि ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की बाणी को समझना है तो हमें भारतीय शास्त्री संगीत और ‘गुरमत संगीत’ का ज्ञान होना आवश्यक है।


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