शहीद भाई मणी सिंह जी: एक अनुपम शहादत और प्रेरणा का स्रोत

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शहीद भाई मणी सिंह जी: एक अनुपम शहादत और प्रेरणा का स्रोत

भाई मणी सिंह जी, एक दिव्य आत्मा और सिख धर्म के महान शहीद, का जन्म 10 मार्च 1644 ईस्वी को पंजाब के संगरूर जिले के ग्राम लोंगोवाल में हुआ। कुछ विद्वानों के मतानुसार, उनका जन्म ग्राम अलीपुर, जिला मुजफ्फरनगर (अब पाकिस्तान) में भी माना जाता है। उनके पिता जी का नाम भाई माई दास और माता जी का नाम मधरी बाई (सीतो) था।

अमृत ग्रहण और गुरु सेवा
अप्रैल 1699 की ऐतिहासिक बैसाखी पर, उन्होंने खंडे-बाटे का अमृत ग्रहण किया और गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रिय सिख बन गए। भाई मणी सिंह जी ने अपने जीवनकाल में अनेक युद्धों में भाग लिया और गुरु घर की कई महत्वपूर्ण सेवाएं निभाई। उनकी लगन और सेवा भावना के कारण उन्हें गुरु घर के दीवान के पद पर नियुक्त किया गया। आनंदपुर साहिब के युद्ध के दौरान जब सरसा नदी के किनारे गुरु परिवार बिछड़ गया, तो भाई मणी सिंह जी ने माता सुंदर कौर जी और माता साहिब कौर जी को सुरक्षित दिल्ली पहुँचाया।

साहित्य और प्रशासनिक योगदान
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की पुनः बीड़ लेखन में उन्होंने एक लेखक के रूप में योगदान दिया। भाई मणी सिंह जी को दरबार साहिब के तीसरे हेड ग्रंथि के रूप में भी सेवा का अवसर मिला। उन्होंने संगत और गुरुद्वारा प्रबंधन में अनुकरणीय कार्य किए।

सिख एकता के प्रयास
बाबा बंदा सिंह बहादुर की शहादत के बाद, सिख पंथ दो भागों में विभाजित हो गया—तत्त खालसा और बंदी खालसा। इन दोनों दलों को एकजुट करने में भाई मणी सिंह जी ने अपनी प्रखर बुद्धि और समर्पण से अहम भूमिका निभाई।

शहादत की अनमोल गाथा
दिवाली के अवसर पर सरबत खालसा के आयोजन हेतु उन्होंने जकरिया खान से अनुमति मांगी। इसके लिए उन्होंने दस हजार रुपये कर देने का वचन दिया। लेकिन जकरिया खान की बदनीयत से संगत पर हमला हुआ, जिससे कई सिख शहीद हुए। जब भाई मणी सिंह जी ने विरोध किया, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें धर्म परिवर्तन करने या शहीदी स्वीकारने की शर्त दी गई। भाई मणी सिंह जी ने धर्म परिवर्तन से इनकार कर 14 जून 1734 को लाहौर के नखाश चौक में अपने अंग-प्रत्यंग कटवाकर शहादत को गले लगाया।

परिवार की शहादत और साहित्यिक योगदान
भाई मणी सिंह जी के परिवार में 12 भाई थे, जिनमें से 11 ने सिख धर्म के लिए शहादत दी। उनके 10 पुत्रों में से 7 ने भी बलिदान दिया। उनके दादा भाई बल्लू राय जी ने श्री गुरु हरगोबिंद जी की सेना में युद्ध करते हुए वीरगति पाई। साहित्यिक क्षेत्र में भी भाई मणी सिंह जी का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने ज्ञान रत्नावली, भगत रत्नावली, और गुरु विलास पातशाही 6वीं जैसे ग्रंथों की रचना की।

भाई मणी सिंह जी का जीवन त्याग, समर्पण और वीरता की अनुपम मिसाल है, जो हर सिख के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी शहादत हमें सत्य और धर्म के मार्ग पर अडिग रहने की शिक्षा देती है।

 

 

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