शहीद: अर्थ एवं व्याख्या
सलोक कबीर॥
गगन दमामा बाजिओ परिओ नीसानै घाउ॥
खेतु जु माँडिओ सूरमा अब जूझन को दाउ॥
सूरा सो पहिचानीऐ जु लरै दीन के हेत॥
पुरजा पुरजा कटि मरै कबहू न छाडै खेतु॥
(अंग क्रमांक 1105)
अर्थात् वह ही शूरवीर योद्धा है, जो दीन-दुखियों के हित के लिए लड़ता है। जब मन-मस्तिष्क में युद्ध के नगाड़े बजते हैं तो धर्म योद्धा निर्धारित कर वार करता हैं और मैदान-ए-ज़ंग में युद्ध के लिए ‘संत-सिपाही’ हमेशा तत्पर रहता है। वो ‘संत-सिपाही’ शूरवीर है, जो धर्म युद्ध के लिए जूझने को तैयार रहते हैं। शरीर का पुर्जा-पुर्जा कट जाये, परंतु आखिरी साँस तक मैदान–ए-ज़ंग में युद्ध करते रहते हैं।
भक्त कबीर जी द्वारा रचित यह वाणी श्री गुरु ग्रंथ साहिब में ‘मारु राग’ के अंतर्गत अंकित है। वीर रस से ओत-प्रोत इस ‘सबद’ (पद्य) जैसी रचनाओं से प्रेरित होकर जो ‘संत-सिपाही’, धर्म योद्धा, देश-धर्म की रक्षा के लिए और ज़ुल्मों के खिलाफ लड़ते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर वीरगति को प्राप्त होता है, वह ‘शहीद’ कहलाता है। ‘शहीद’ शब्द का अर्थ करने और विश्लेषण करने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा। ईसा काल पूर्व मिस्र में राज करने वाले राजा जिन्हें ‘फ्रोन’ के नाम से भी जाना जाता है। उनके समय में दो कबीले हुआ करते थे ‘मौजस’ और ‘इब्रानी’! इन दोनों कबीलों के लोगों पर ‘फ्रोन’ के राजाओं द्वारा बेइंतहा ज़ुल्म किए जाते थे। इतिहास में अंकित है कि इन दोनों कबीलों ने मिलकर उस समय के ‘फ्रोन’ राजाओं के खिलाफ बग़ावत शुरू कर दी थी। इन राजाओं के द्वारा अपनी सेनाओं को आदेश दिया गया था कि इन दोनों कबीलों के लोगों को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया जाए। उस समय इन दोनों कबीलों के पुरुष, महिलाएँ, बुजुर्ग और बच्चों का बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया। ज़ुल्म की इंतिहा थी। उस समय गर्भवती स्त्रियों को और उनके भ्रूणों की भी बेदर्दी से हत्या कर दी गई थी। ‘फ्रोन’ राजाओं का सेना को आदेश था कि दोनों कबीलों की आने वाली पीढ़ियों का समूल नष्ट कर दिया जाए। जब यह मौत का तांडव चल रहा था तो ग्रीस के लोगों द्वारा ग्रीस की भाषा में एक विशेष चिन्हांकित (µaptup) शब्द का जन्म हुआ जिसे ‘शहीद’ के नाम से उच्चारित किया गया।
इसके पश्चात प्रभु ईसा मसीह को ‘शहीद’ किया गया तो शब्द आया MARTYR जिसे MARTYRDOM भी कहा जाता है। इसी तरह से इस्लाम धर्म में अरबी भाषा का शब्द है ‘शहीद’ । पहली बार ‘शहीद’ शब्द का उपयोग ‘मुकद्दस हदीस’ में भी किया गया। ईसा काल में शब्द ‘शहीद’ का पैमाना कुछ और था। कारण, इस काल में आपस में ही एक दूसरे को मारा जाता था। यदि सिख इतिहास को देखा जाए तो श्री गुरु ग्रंथ साहिब में ‘शहीद’ शब्द दो बार अंकित है। पहली बार ‘शहीद’ शब्द (पद्य) ‘श्री राग’ में पृष्ठ क्रमांक 53 (पाठकों की जानकारी के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पृष्ठों को गुरमुखी में सम्मान पूर्वक ‘अंग’ कहकर संबोधित किया जाता है।) पर श्री गुरु नानक देव साहिब द्वारा रचित वाणी में अंकित है-
पीर पैकामर सालक सादक सुहदे अउरु सहीद॥
(अंग क्रमांक 53)
दूसरा ‘सबद’ (पद्य) ‘मल्हार राग’ में भक्त कबीर जी द्वारा उच्चारित पृष्ठ (अंग) क्रमांक 1293 पर अंकित है-
जा कै ईदि बकरीदि कुल गऊ रे बधु करहि मानीअहि सेख सहीद पीरा॥
इस तरह से दो बार ‘शहीद’ शब्द श्री गुरु ग्रंथ साहब में अंकित है। इसी प्रकार ‘शहीद’ शब्द भाई गुरदास जी द्वारा लिखित ‘वारां’ में भी एक बार अंकित है-
मुरदा होइ मुरिद न गली होवणा। साबरु सिदकि सहीदु भरम भउ खोवणा॥
अर्थात् जिसके पास ‘सबद और सिदक’ है, वो शहीद कहलाता है। अपने भीतर भ्रम और भय को दूर करने वाला ‘शहीद’ कहलाता है। श्री गुरु नानक देव जी के समय से ही सिख धर्म में ‘शहीद’ होने की परंपरा रही है। जिस समय ‘बाबर’ के द्वारा लाहौर शहर में आग लगाई गई थी, उस समय शहर के सभी घरों को जलाया जा रहा था। उस समय श्री गुरु नानक देव जी का एक सिख भाई ‘तारु पोपट’ पानी की बाल्टी से जब आग बुझाने की कोशिश करता है तो उसे उस आग में जलाकर ‘शहीद’ किया गया था। सिख धर्म के गुरुओं में से पाँचवें गुरु, श्री गुरु अर्जन देव जी’ को ‘शहीदों के सरताज’ की उपाधि से विभूषित किया गया है, जिन्होंने धर्म ग्रंथों की मर्यादा, आन-बान और शान के लिए तपते हुए तवे पर बैठकर बेमिसाल शहीदी दी थी। श्री गुरु हरगोविंद साहिब (सिख धर्म के षष्टम गुरु) ने अपने कार्यकाल में चार युद्ध किए थे। इन युद्धों में वीरगति को प्राप्त करने वाले सिख ‘शहीद’ कहलाये। इसी तरह हिंदू धर्म की रक्षा के लिए नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने दिल्ली के चाँदनी चौक में अपने सिख भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला जी के साथ प्राप्त की ‘शहीदी’ इतिहास में अभूतपूर्व है। श्री गुरु तेग बहादर साहिब जिन्हें ‘धर्म की चादर’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है के लिए गुरुवाणी में अंकित है-
धर्म हैत जिन साका किआ सीस दिआ पर सिर ना दिआ॥
दशम पिता श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब के समय भंगानी के युद्ध में वीरगति को पाने वाले ‘शहीद’ कहलाये। जब मुग़ल सेना द्वारा आनंदपुर साहिब के क़िले को घेर लिया गया और कसमें देखकर गुरु जी को क़िला खाली करने के लिए कहा गया, इन कसमों का मान-सम्मान रखने के लिए जब गुरु जी ने किला खाली किया तो खाई हुई कसमों से पलट कर पीछे से आक्रमण किया गया। इस युद्ध में आन-बान और शान के लिए मैदान–ए-ज़ंग में युद्ध करते समय वीरगति को प्राप्त करने वाले ‘शहीद’ कहलाए। इस युद्ध में गुरु जी के चारों साहिबज़ादे भी ‘शहीद’ हुए थे। श्री आनंदपुर साहिब के क़िले में से बाहर निकलकर ग्राम झंखिया के मैदान-ए-ज़ंग में युद्ध कर वीरगति को प्राप्त कर ‘शहीद’ होने वाली प्रथम सिख महिला योद्धा बीबी भीखां कौर जी थीं। इसी प्रकार बीबी शरण कौर पाबला चमकौर की गढ़ी में जब बड़े साहिबज़ादों की देह का संस्कार कर रही थी तो उसे भी चिता की आग में ‘शहीद’ किया गया था। गुरुओं के समय में अंतिम ‘शहीदी’ चित्तौड़गढ़ की धरती पर भाई मान सिंह जी और बाबा जोरावर सिंह एवं उनके साथ में 21 सिखों ने शहीदी दी थी, जिनका अंतिम संस्कार दशमेश पिता श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब महाराज ने स्वयं किया था। बाबा बंदा सिंह बहादर से लेकर सन् 1984 ई. तक अभिलेख के अनुसार 849000 (आठ लाख उन्चास हज़ार) सिखों ने ‘देश-धर्म’ की रक्षा के लिए और ज़ुल्मों के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति प्राप्त कर शहीदियाँ दी हैं।
सन् 1984 ई. से लेकर सन् 2020 ई. तक 9 लाख से भी अधिक सिखों ने शहादत का जाम पिया है। भाई इकबाल सिंह जी लिखित पुस्तक के अनुसार अभी तक 9 लाख से भी अधिक सिखों ने शहादत का जाम पिया है। बाबा बंदा सिंह बहादुर से लेकर सन् 1984 ई. तक के अभिलेख के अनुसार 849000 (आठ लाख उनचास हज़ार) सिखों ने ‘देश-धर्म’ की रक्षा के लिए और जुल्मों के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति प्राप्त कर शहीदियाँ दी है। हाल ही में सन् 2020 ई. में लद्दाख की सीमा पर चीनियों से हुए युद्ध में सरदार गुरतेज सिंह ने अपनी म्यान से कृपाण निकालकर अकेले ही 12 चीनियों को मौत के घाट उतार वीरगति प्राप्त की एवं सन् 2022 ई. में किसान आंदोलन में भी जो सिख किसान शहीद हुए, इन सभी को मिलाकर 9 लाख से ज़्यादा सिखों ने शहीदों में स्वयं का नाम भी अंकित किया है। भाई काहन सिंह जी नाभा लिखित पुस्तक अनुसार ‘शहीद’ का अर्थ, धर्म के नाम पर ग़वाही देने वाला शहीद होता है। ‘शहीद’ शब्द का पैमाना अति विशाल, पवित्र और ऊँचा है। सिख धर्म में शहीदों की दास्तान अनोखी है, यह दास्तान ना खत्म हुई है और ना ही कभी खत्म होगी।
देश-धर्म की रक्षा और ज़ुल्म के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति प्राप्त सभी ‘संत-सिपाही’ गुरु सिख शहीदों को सादर नमन! !