राष्ट्र निर्माण के सजग प्रहरी: शिक्षक
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
प्रासंगिक–
शिक्षक दिवस पर विशेष–
राष्ट्र निर्माण के सजग प्रहरी, शिक्षक
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जे सउ चंदा उगवहि सूरज चड़हि हजार॥
एते चानण होदिआँ गुर बिनु घोर अंधार॥
(अंग क्रमांक 463)
अर्थात् यदि सौ चन्द्रमा उदित हो जायें और हजारों ही सूरज की रोशनी हो जाये, संसार में इतना प्रकाश होते हुये भी गुरु के ज्ञान के बिना घोर अंधकार ही होगा।
किसी भी राष्ट्र का निर्माण उस राष्ट्र के शिक्षकों पर निर्भर करता है, वह शिक्षक ही है जो युवाओं को सही दिशा में बढ़ने के लिये प्रेरित करते है और देश की आर्थिक, सामाजिक, नैतिक विकास की निति और भविष्य का निर्माण करते है, निसंदेह शिक्षक दिवस का अवसर हमें अनेक संदर्भो में भारतीय ज्ञान परंपरा का विशिष्ट एवं उसमें निहित शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार का अभिनव अवसर प्रदान करता है। हमारे देश में ज्ञान की परिशिलनता पर बल दिया गया है। ज्ञान से बढ़कर मन, वचन और आत्मा को पवित्र करने वाला कोई दुसरा तत्व नहीं है। इस संदर्भ में ज्ञानार्जन सही अर्थों में मानव व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानव के द्वारा अर्जित ज्ञान निश्चित ही राष्ट्र निर्माण में निर्मित होकर प्रति फलित होता है। ज्ञानार्जन वही है जो हमें अंदर और बाह्य बंधनों से मुक्त करें, जो बंधनों से मुक्त करें वही विद्या है। ज्ञानार्जन से ही संकीर्ण दृष्टिकोण समाप्त होता है, ज्ञानार्जन से ही व्यक्ति के विचारों के दायरे में वृद्धि होती है, ज्ञान की परंपरा से ही हमारा दृष्टिकोण व्यापक होता है। सुदूर अतीत से लेकर वर्तमान समय तक भारतीय संस्कृति का आदर्श निश्चित ही ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का रहा है। शिक्षक हमारे नायक होते हैं, इन्हीं के मार्गदर्शन में व्यक्ति का विकास होता है। बचपन से ही हमारी अवधारणा होती कि हमारे शिक्षक हमारे नायक है। सुदूर अतीत से चली आ रही हमारी शाश्वत मूल्य दृष्टि, ज्ञान के प्रति हमारा अनुराग और गुरु की महिमा हमारे समक्ष एक नायक की तरह आदर्श रही है। हमारी संस्कृति में यह माना जाता है कि ज्ञानार्जन एक निरंतर प्रक्रिया है, इसका कोई अंत नहीं होता है। यह अबाधित प्रक्रिया है, इस संदर्भ में शिक्षक की भूमिका को अनेकों माध्यमों से एवं अनेकों अभीव्यक्तियों से प्रस्तुत किया गया है। निश्चित ही शिक्षक गुरु रूपी और उसके उपकार अनंत है, कबीर वाणी में अंकित है–
सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार॥
लोचन अनंत उघाड़िया, अनत दिखावण हार॥
सच्चे गुरु अनंत के दर्शन करवाते हैं और हमारी दृष्टि को व्यापक करते हैं। सच्चे गुरु सही मायनों में हमारे जीवन के नायक होते हैं और इनके नेतृत्व में ही हमारी दृष्टि विशाल होती है। सच्चे गुरु के उपकार से ही हम अंतर्मन की दृष्टि से संसार को प्रकट कर देख सकते हैं। यदि हम शिक्षक की भूमिका को रेखांकित करे तो यह माना जाता है कि उत्तम शिक्षक वही है जो केवल आप तक सूचना ही नहीं पहुंचाता, वह सूचना से ज्ञान तक की यात्रा करवाता है और ज्ञान से आगे वह बोध तक ले जाने में सहायता करता है। एक उत्तम शिक्षक सही मायनों में जीवन का पथ–प्रदर्शक होता है, शिक्षकों से प्राप्त प्रेरणा बिंदुओं से ही हम अपने अलौकिक जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं। समाज को यदि शिक्षा की दृष्टि से जोड़कर देखें तो समाज में जितनी अच्छी शिक्षा होगी उतना ही अच्छा समाज निर्मित होगा| एक अच्छा समाज ही उत्तम राष्ट्र निर्माण कर सकता है। श्रेष्ठ शिक्षक वह है जो व्यक्ति को तार्किक बनाएं, श्रेष्ठ शिक्षक वह है जो रचनात्मक परिवेश का निर्माण करें, एक श्रेष्ठ शिक्षक रचनात्मक परिवेश तो निर्माण करता ही है और साथ ही वह कठोर आलोचक भी होता है। एक शिक्षक अंदर से रचनात्मक परिवेश के रूप में सहायता प्रदान करता है और बाहर से वह सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करने की राह हमें प्रदर्शित करता है। एक आलोचकिय व्यक्तित्व और एक रचनात्मक परिवेश के व्यक्तित्व के रूप में ही एक उत्तम शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। शिक्षक केवल उनका विषय शिक्षित नहीं करते अपितु अन्य विषयों का आपस में जो सामान्यजस्य पूर्ण संबंध है उसे भी अधोरेखित करते हैं। इससे निश्चित ही विभिन्न विषयों के मध्य जो तट बंध है उनके बंधन से भी मुक्ति प्राप्त होती है। एक उत्तम शिक्षक हमारी अंतरा अनुशासनिक दृष्टि को भी विकसित करता है। एक उत्तम शिक्षक ही हमें दर्शाता है कि डिग्रीयां तो आपकी पढ़ाई के खर्चे की रसीद है, ज्ञान तो वही है जो आप के किरदार में झलकता है| एक उत्तम शिक्षक ही हमें परोपकारी बनाता है, गुरुवाणी में अंकित है–
विदिआ विचारी ताँ परउपकरी॥
(अंग क्रमांक 356)
अर्थात् यदि विद्या का विचार–मनन किया जाए तो ही परोपकारी बना जा सकता है।
वर्तमान समय में सूचना–संचार प्रौद्योगिकी के इस युग में शिक्षक की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इस युग में शिक्षक पथ–प्रदर्शक और प्रेरक की भूमिका में आ गया है। विभिन्न माध्यमों से इस नए दौर से प्राप्त सूचना एवं विभिन्न माध्यमों से हमारे मध्य प्राप्त ज्ञान के प्रवाह को किस नजरिए से देखना है? इसे शिक्षित करने का दायित्व भी शिक्षक का ही हो चला है। नई संचार नीति के साथ शिक्षकों का दायित्व और भी अधिक महत्वपूर्ण होने वाला है, इस नए परिवेश में एक उत्तम शिक्षक का दायित्व केवल आकड़ों या सूचनाओं तक स्वयं को सीमित नहीं रखना है अपितु उसे ज्ञान के धरातल की प्रभावपूर्ण यात्रा का बोध करवाना है।
एक उत्तम राष्ट्र का निर्माण ज्ञानार्जन एवं धनार्जन पर निर्भर करता है। इन दोनों विधाओं को समेकित कर ही एक सामर्थ्यशाली और वैभवशाली राष्ट्र का निर्माण हो सकता है। इस गहरे अर्थ में हमारा कोई भी पल ऐसा नहीं होना चाहिए जो ज्ञान से विरक्त हो, जब हम एक उत्तम राष्ट्र की संकल्पना करते हैं तो निश्चित ही तीन महत्वपूर्ण तत्वों पर उत्तम राष्ट्र की संकल्पना आधारित होती है, 1. भूमि और प्रकृति 2. जन अर्थात् वह जन समुदाय जो उस भूमि पर निवास कर उसका अनुराग करता है, 3. उस भूमि पर निवासित लोगों की संस्कृति। इन तीनों तत्वों को समेकित कर जो राष्ट्र का निर्माण होगा उसमें ज्ञानार्जन का तत्व इन तीनों तत्व के समेकित–समुचित विचारधाराओं से अपना विशेष संबंध दर्शाता है| हमारे शिक्षक हमें पुरातन समय से ही शिक्षित कर ज्ञान देते आ रहे हैं, उपरोक्त अधोरेखित तत्वों की संकल्पना के सरोकारों को समेकित कर ही हम उत्तम राष्ट्र की दिशा में अग्रसर होंगे| एक उत्तम शिक्षक वह है जो हमें हमारे विचारों को आजादी प्रदान करें, एक उत्तम शिक्षक वह है जो हमें भूमि के प्रति अनुराग और निष्ठा प्रदान करें, एक उत्तम शिक्षक वह है जो हमें हमारे जन के साथ, हमारी संस्कृति के साथ और हमारे राष्ट्र के साथ आंतरिक रूप से और बाह्य रूप से सभी स्तरों पर परस्पर संबंधता का अहसास करवाता है। निश्चिती ही हमारी संस्कृति में शिक्षक एक नायक है, इसी संदर्भ में चाहे मनोवैज्ञानिक धरातल पर शिक्षा की अवधारणा हो, चाहे दार्शनिक धरातल पर शिक्षा की अवधारणा हो या चाहे आर्थिक धरातल पर शिक्षा की अवधारणा हो, अर्थात् ऐसी कोई अवधारणा नहीं है जो सीधा–सीधा शिक्षा से संवाद न करती हो इसलिए हमारे दार्शनिकों ने शिक्षक की भूमिका और उसके अवदान को रेखांकित किया है। पुरातन समय से लेकर वर्तमान समय तक हम आधुनिक भारतीय पुनर्जागरण की पुराधाओं को निर्दिष्ट करें या राष्ट्रीय आंदोलन के अनेकों नायकों की बात करें तो सभी के केंद्र में चिंता की बात भारतीय शिक्षा रही है। यदि भारतीय शिक्षा को विशिष्ट आयाम प्रदित कर हमें अपने समृद्धशाली राष्ट्र को विश्व गुरु बनाना है तो यहां अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य केवल एक योग्य शिक्षक अपने ज्ञान के द्वारा श्रेष्ठतम उत्पादन प्रदान कर के कर सकता हैं। यह जो उत्पाद बनेगा वह काल के प्रवाह से भी नष्ट नहीं हो सकता है, निश्चित ही इस उत्पाद से ज्ञान का हस्तांतरण तो होगा ही अपितु हमारा देश एक समर्थ राष्ट्र की और अपने कदमों को होले–होले बढ़ जाएगा इसलिए शिक्षक का दायित्व केवल सुचना या ज्ञान का हस्तांतरण नहीं है अपितु हमें ज्ञान किस तरह आत्मसात करना है? उसकी विधा को भी समझना होगा।
हमारे शिक्षक, विद्यार्थियों को इस वैश्विक मंच पर सामाजिक न्याय और समानता के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं, शिक्षक ही हमारे विद्यार्थियों को वैज्ञानिक अनुसंधानों का हमराही बना सकते हैं| हमारे शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों को इस तरह शिक्षित कर सकते हैं कि यह राष्ट्र एक अखंड–अक्षुण्ण राष्ट्र है साथ ही जीवन में राष्ट्रहित हमारा सर्वोपरि लक्ष्य होना चाहिए। इस राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य के सामने बाकी सभी क्षुद्र या गौण है। हमारी व्यापक राष्ट्रीयता को केवल उत्तम शिक्षक ही जागृत कर सकते हैं, निश्चित ही हमारे शिक्षक हमारे नायक है, आज शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर राष्ट्र निर्माण के सजग प्रहरी सभी सुधि शिक्षकों को सादर अभिवादन!
नोट–1. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।
2. गुरवाणी का हिंदी अनुवाद गुरवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।
(विशेष नोट– उपरोक्त लेख विशेष तौर पर हाल ही में सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. राम राजेश मिश्रा सर वरिष्ठ आचार्य, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, यूनेस्को पुरस्कार से सम्मानित, पूर्व कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन एवं रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर को उनके शैक्षणिक जीवनी के लिए समर्पित किया गया है।)
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