ੴ सतिगुर प्रसादि॥
गुरबाणी और सिख इतिहास-1
(टीम खोज-विचार की पहेल)
प्रासंगिक– (राष्ट्रभाषा हिंदी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष।
राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रचार-प्रसार में, गुरु पंथ खालसा का योगदान
‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रचार-प्रसार में पंजाबी सभ्याचार में जीवन व्यतीत करने वाले साहित्यकारों का प्राचीन समय से लेकर वर्तमान समय तक अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। निश्चित ही प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मां बोली/मातृभाषा पर अभिमान होता है परंतु संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ ने अपने चहुंमुखी विकास से किया है। पंजाब की पावन-पुनीत धरती का ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रचार-प्रसार में पुरातन समय से ही उल्लेखनीय योगदान है। सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद की रचना पंजाब में हुई थी और हिंदी साहित्य का प्रथम महाकाव्य पृथ्वीराज रासो की रचना हिंदी के प्रथम कवि चंदबरदाई ने की थी, जो की मूलत: पंजाब से थे।
गुरुओं के काल से ही ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रचार-प्रसार को प्रारंभ कर दिया था, जब ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की पांचवी ज्योत ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ ने ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का संपादन किया तो इस युगो-युग अटल ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ को भी महत्वपूर्ण स्थान मिला है। इस महान ग्रंथ में 12 वीं शताब्दी के भक्त फरीद जी की वाणी से 16 शताब्दी के ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के वाणीयों के 115 पदों को प्रमुखता से स्थान दिया गया है। जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने इस भारत भूमि से जोर-जबर और अन्याय को समाप्त करने के लिए पंजाब से धर्म प्रचार-प्रसार की यात्रा प्रारंभ कर उत्तर पूर्व के बांग्लादेश के ढ़ाका तक इस धर्म प्रचार-प्रसार की यात्रा को किया तो उस समय इस यात्रा में ‘गुरु पंथ खालसा’ के महान विद्वान और अनेक भाषाओं के ज्ञाता शहीद भाई मती दास जी को सेवा दी गई थी कि वह इस यात्रा के दरमियान गुरु पातशाह जी के मुखारविंद से उच्चारित वाणीयों का सरल अर्थ कर, इस यात्रा के मार्ग (जो कि दिल्ली से उत्तर प्रदेश, बिहार होता हुआ बांग्लादेश के ढाका तक था) में संपर्क में आए श्रद्धालुओं तक पहुंचाएं और उन्हें लिखित रूप से सुरक्षित करें। सिख विद्वानों और इतिहासकारों का मानना है कि उस समय से ही ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रचार-प्रसार को व्यापक आयाम प्राप्त हुए। उस समय देश में आम लोगों में केवल अरबी, फारसी, पश्तो, पंजाबी, संस्कृत, ब्रज भाषा, भोजपुरी, मराठी, बंगाली इत्यादि क्षेत्रीय भाषाओं का बोलबाला था। ऐसी विभिन्न भाषाओं में उत्तम समन्वय बनाने हेतु ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ ने उल्लेखनीय भूमिका अदा की है। निश्चित ही ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ ने संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधकर रखा है।
‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की दसवीं ज्योत करुणा, कृपाण और कलम के धनी ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने विशेष रूचि लेकर श्रीमद् भगवत गीता, उपनिषद, रामायण, महाभारत इत्यादि ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद करवाया था। गुरु पातशाह जी आप स्वयं उच्च कोटि के साहित्यकार एवं श्रेष्ठ कवि थे, आप जी ने अपनी आत्मकथा को ब्रज भाषा में रचित किया था। दशमेश पिता जी के ‘श्री आनंदपुर साहिब जी’ के दरबार में 52 कवि और 36 लेखक, 24×7, साहित्यिक रचनाएं कर, अपनी सेवाएं निभा रहे थे। इसके अतिरिक्त उस समय में अनेक लेखक, विद्वान और अन्य कवि ‘श्री आनंदपुर साहिब जी’ में पहुंचकर अपनी उत्तम साहित्यिक कृतियों को गुरु महाराज के चरणों में समर्पित कर अपनी–अपनी विद्वता प्रदर्शित करते थे। उस समय में ‘श्री आनंदपुर साहिब जी’ के दरबार में प्रतिदिन सुबह–शाम उपनिषद, वशिष्ठ भागवत गीता, रामायण, महाभारत एवं अन्य ब्रज भाषाओं में रचित ग्रंथों की कथा होती थी। आध्यात्मिक विचारों का आदान–प्रदान और विश्लेषण किया जाता था। साथ ही उस समय के विद्वान इन सभी ग्रंथों और साहित्यिक रचनाओं का विशेष रूप से अनेक भाषाओं में अनुवाद भी करते थे। इस महत्वपूर्ण साहित्य–संपदा का अनुवाद शीघ्र अति शीघ्र हो, इसके लिए इन ग्रंथों के विभिन्न भागों को अनेक विद्वानों को अनुवाद करने की सेवा दी जाती थी।
दशमेश पिता ने सन् 1686 ईस्वी. में पांवटा साहिब जी में एक साहित्य-सम्मेलन का आयोजन किया था। इस सम्मेलन में आप जी ने विद्या की महत्ता को स्पष्ट कर, विद्या के महत्व को दर्शाने के लिये अपने व्याख्यान में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी को उपदेशित कर वचन किए थे कि–
विदिआ विचारी ताँ परउपकरी।। (अंग क्रमांक 356)
अर्थात यदि विद्या का विचार-मनन किया जाए तो ही परोपकारी बना जा सकता है। साथ ही आप जी वचन किये थे कि दुनिया में आए सभी प्राणी मात्र को विद्या प्राप्त करना ही चाहिए। उस समय गुरु पातशाह जी एवं दरबार के सभी विद्वानों ने मिलकर एक ‘विद्यासागर’ नामक महान ग्रंथ तैयार किया था अफसोस. . . यह महान ग्रंथ ‘श्री आनंदपुर साहिब जी’ का जब किला खाली किया गया तो सरसा नदी की बाढ़ में यह हमारी सबसे अमूल्य और अनमोल धरोहर बह गई थी। आप जी ने उस समय में निर्मल पंथ के पांच वरिष्ठ विद्वानों का चुनाव कर उन्हें काशी (वाराणसी) में जाकर संस्कृत एवं अन्य भाषाओं की विद्या ग्रहण करने की आज्ञा दे कर आशीर्वाद दिया था।
भविष्य में निर्मल पंथ के विद्वान, संत महापुरुष और महंतों के द्वारा जनसाधारण की अनेक प्रकार की लोक-कल्याण हेतु सेवाएं ‘राष्ट्र भाषा हिंदी’ में की जाती रही हैं, कथा, कीर्तन, राग, व्याख्यान, मंडलिया, शास्त्रार्थ, गुरुवाणी का प्रचार–प्रसार, योगाभ्यास, ज्योतिष शास्त्र का अभ्यास, पत्रकारिता, लेखन कार्य, संपादन, प्रकाशन और अनेक साहित्यिक रचनाओं के द्वारा ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के माध्यम से लोक-कल्याण हेतु सेवाएं निर्मल संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा प्रदान की जाती हैं। निर्मल पंथ के निम्नलिखित विद्वान जिन्होंने ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की साहित्य के माध्यम से अपनी महान सेवाएं अर्पित कर अपना नाम निश्चित इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित किया है, जिनमें से कुछ विद्वान, महापुरुषों के नाम निम्नलिखित हैं—
श्रीमान पंडित गुलाब सिंह जी, चूड़ामणि महाकवि संतोख सिंह जी, पंडित तारा सिंह जी नरोत्तम, ज्ञानी ज्ञान सिंह जी, संत निहाल सिंह जी कविंद्र, संत निरंकार सिंह जी, संत संपूरण सिंह जी, ज्ञानी बदन सिंह जी सेखवां वाले, पंडित देवा सिंह जी देवपुरा, ठाकुर निहाल सिंह जी थोहा ख़ालसा, महंत गणेश सिंह जी, संत नारायण सिंह जी मेहरना कलां, पंडित गोविंद सिंह जी महंत दयाल सिंह जी लाहौर वाले इत्यादि।
वर्तमान समय में अनेक साहित्यिक सेवा संबंधी कार्यों के लिए विशेष रूप से श्रीमान महंत तेजा सिंह जी खुड्डा, श्रीमान महंत जसविंदर सिंह जी शास्त्री (कोठारी जी) और श्री मान दर्शन सिंह जी शास्त्री बनारस वाले का नाम वर्णन करना आवश्यक है। विशेष रूप से श्री मान संत बाबा जोध सिंह जी महाराज निर्मल आश्रम ऋषिकेश वाले भी अनेक पुरातन और नवीन ग्रंथों का ‘राष्ट्र भाषा हिंदी’ में प्रकाशन कर अत्यंत महत्वपूर्ण सेवा समर्पित कर रहे हैं।
आधुनिक युग में भी पंजाब हिंदी साहित्य को आगे बढ़ाता रहा है। इसमें पंजाबी सभ्याचार के महान विद्वान श्री मान भगत सिंह, मोहन राकेश जी अश्क, यशपाल जी, राकेश जी, कृष्णा सोबती जी, भीष्म साहनी, बलराज साहनी, सरदार जे.पी. संगत सिंह, बलवंत गार्गी, गज़ल गायक जगजीत सिंह जी इत्यादि का योगदान उल्लेखनीय है। सच जानना. . . . . पंजाबी सभ्याचार में जीवन व्यतीत करने वाले प्रत्येक पंजाबी का सोना-जागना हिंदी के साथ होता है। हिंदी का ‘का’ पंजाबी में दा और ‘की’ की जगह दा का प्रयोग किया जाता है।
यदि हिंदी साहित्य के इतिहास को परिपेक्ष करें तो हमें डॉक्टर महीप सिंह जो की ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रसिद्ध लेखक, चिंतक, स्तंभकार और पत्रकार थे। आप जी को सन 2002 ईस्वी. में भारत-भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आप जी दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के वरिष्ठ प्राध्यापक थे। आप जी ने अपने कार्यकाल में 125 कहानियां और कई उपन्यास भी लिखे थे। इसी प्रकार से डॉक्टर जोध सिंह जो कि ‘गुरु पंथ-खालसा’ के धर्म शास्त्री, लेखक, संरक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। आप जी को भी पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था। आप जी ने ‘श्री गुरु गोविंद सिंह जी’ की रचना जाप साहिब का हिंदी में उत्तम अनुवाद किया था। साथ ही आप जी ने दशम् ग्रंथ के संबंध में भी अनेक रचनाएं हिंदी में रचित की थी। आप जी को भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था। इसी प्रकार से सरदार राजेंद्र सिंह जी बेदी प्रख्यात हिंदी-उर्दू के लेखक, उपन्यासकार, निर्देशक, पटकथा लेखक एवं नाटककार थे। आप जी ने अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ में समर्पित होकर अपनी सेवाएं प्रदान की थी। आपने भारत-पाक विभाजन के अनेक जीवंत किस्सों को अपने शब्दों से उजागर किया था। आपने लगभग 28 हिंदी फिल्मों की पटकथा लेखक, निर्देशक, निर्माता एवं संवाद लेखन में अपनी कलम से कमाल कर दिखाया था। आप जी द्वारा निर्मित फिल्म ‘एक चादर मैली सी’ ने भारत-पाक दोनों मुल्कों के दर्शकों को लुभाया था। आप जी को सर्वश्रेष्ठ कहानी और संवाद लिखने के लिए ‘फिल्म फेयर अवार्ड’ के सम्मान से तीन बार सम्मानित किया गया था। आप जी को उर्दू साहित्य का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। इसी प्रकार से हिंदी टेलीविजन और सिनेमा के प्रसिद्ध हास्य कलाकार निर्माता और निर्देशक जसपाल सिंह भट्टी ने अपनी टेलीविजन श्रंखला फ्लॉप शो, फुल टेंशन और उल्टा-पुल्टा के लिए सबसे ज्यादा चर्चित हुए थे। विगत वर्ष में आपकी टेलीविजन श्रंखला उल्टा-पुल्टा को महाराष्ट्र के प्रसिद्ध अखबार ‘सकाळ’ में मराठी पाठकों के लिए विशेष रूप से प्रकाशित किया गया था। जिसे संपूर्ण महाराष्ट्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई थी। आप जी का एक सड़क दुर्घटना में 25 अक्टूबर सन 2012 ई. को जालंधर (पंजाब) में निधन हो गया था। आप जी को मरणोपरांत पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया था। इसी प्रकार से ऑल इंडिया रेडियो के उद्घोषक एवं वरिष्ठ खेल टीका कार (कमेंटेटर) जसदेव सिंह की सेवाएं भी हिंदी के श्रोताओं के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई थी। जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सुविधा उपलब्ध नहीं थी तो आप भी अपनी विशिष्ट शैली में विश्व कप हॉकी मैच की कमेंट्री एवं 26 जनवरी गणतंत्र दिवस की कमेंट्री करते थे। उस समय उनके द्वारा की गई उद्घोषणा ने आज भी श्रोताओं के हृदय में अपनी विशिष्ट पहचान अंकित की हुई है। आप जी को भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया था। इसी प्रकार से ग़ुलज़ार नाम से प्रसिद्ध सरदार सम्पूर्ण सिंह कालरा हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं। इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक, नाटककार तथा प्रसिद्ध शायर हैं। उनकी रचनाएँ मुख्यतः हिन्दी, उर्दू तथा पंजाबी में हैं, परन्तु ब्रज भाषा, खड़ी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी इन्होंने रचनाएँ कीं। गुलज़ार को वर्ष 2002 ईस्वी. में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2004 ईस्वी. में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तिसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। आप जी को 10 बार फिल्म फेयर अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है। सन 2013 ईस्वी. में आप को दादा साहिब फालके सम्मान से भी सम्मानित किया गया।
वर्तमान समय में ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ साहित्य की सेवा में विशेष रूप से चंडीगढ़ निवासी डॉ. अमरजीत सिंह वधान ने तां उम्र ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रचार-प्रसार में समर्पित होकर, उत्तम सेवा निभा रहे हैं। आप विगत 41 वर्षों से राष्ट्रीय कृत सिंडिकेट बैंक, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर अपनी सेवाएं समर्पित कर रहे हैं। आप जी ने समकालीन हिंदी कहानी पर पीएचडी. की है, आप जी ने व्यवहार विज्ञान विषय पर डी. लिट. की पदवी हासिल की है। आप जी ने अपने कार्यकाल में अनेक विषयों पर 175 शोध प्रबंध लिखे हैं। आप जी के द्वारा 24 मौलिक ग्रंथ, 27 संपादित ग्रंथ, 04 अनूदित ग्रंथ (अंग्रेजी से हिंदी), 16 अनुदित ग्रंथ (पंजाबी से हिंदी) इस प्रकार से 71 ग्रंथों को आप जी ने रचित किया है। आप जी के कार्यकाल में अनेक विद्यार्थियों ने पीएच.डी., एम. फिल. और डी. लिट. की उपाधि प्राप्त की है। आप जी को 70 राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए है। आप जी का जीवन ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रचार-प्रसार में भीष्म पितामह की तरह है। इतना अधिक लेखन कार्य करने के पश्चात भी आप जी सोशल मीडिया से दूर रहकर अत्यंत सादगी पूर्ण सदाशयता से अपना जीवन ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के लिए समर्पित कर रहे हैं। इसी प्रकार से मुंबई निवासी सरदार हरजिंदर सिंह जी सेठी का हिंदी साहित्य में एक लेखक, स्तंभकार, समीक्षक, श्रेष्ठ कवि के रूप में अनोखा और बेमिसाल योगदान है। आप जी की रचनाएं अभूतपूर्व है, जैसे की मां सरस्वती साक्षात् आपकी कलम में समाहित हो गई। यदि आपके लिखे वाक्यों का विश्लेषण करें तो बस्स. . . मुंह से निकल जाएगा कि इस लेख में इस स्थान पर इससे अच्छा और दूसरा कोई वाक्य हो ही नहीं सकता? आप जी को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आप जी की अजर-अमर रचना ‘गुरु तेग बहादुर: एक युग व्यक्तित्व’ को सन 1997 ईस्वी. में महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ने ‘काका काळेळकर पुरस्कार’ से सम्मानित किया था। हिंदी साहित्य के नवोदित लेखकों को आप जी समय-समय पर विशेष मार्गदर्शन भी करते हैं। इसी प्रकार से कानपुर निवासी प्रसिद्ध कहानीकार लेखक और उपन्यासकार सरदार हरभजन सिंह मेहरोत्रा ने भी अपनी विशिष्ट लेखन शैली से पाठकों का मन मोह लिया है। आप ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के पश्चात लेखन कार्य में अद्भुत जौहर दिखाये, उनकी कहानी ‘मां को क्या हो गया? अत्यंत प्रख्यात है। साथ ही आप जी के उपन्यास हिना, अनायास, सफर के साथी, बा मुलाहिजा होशियार, अभिमन्यु नहीं मरेगा, ए जिंदगी तुझे सलाम, जैसे उपन्यास अत्यंत प्रसिद्ध हैं। प्रेम कथाओं पर आधारित ‘पलाश की परछाइयां’ कहानी संग्रह ने भी पाठकों के हृदय में विशेष स्थान प्राप्त किया है। अत्यंत कठिन आर्थिक परिस्थितियों में आपने अपने लेखन कार्य को विशेष आयाम दिए है।
वर्तमान समय में हिंदी साहित्यकार डा. पिलकेन्द्र जी अरोरा चर्चित व्यंग्यकार एवं समीक्षक हैं। ‘साहित्य के प्रिंस’, ‘पाठक देवो भव’ ,‘साहित्य के अब्दुल्ला’, ‘लिफाफे का अर्थशास्त्र’ और ‘श्री गूगलाय नमः’ चयनित व्यंग्य’ आपके प्रकाशित व्यंग्य संग्रह हैं। आपने राष्ट्रीय शीर्षस्थ व्यंग्यकारों से सीधी बातचीत पर आधारित ‘साक्षात् व्यंग्यकार’ एवं मध्यप्रदेश के रचनाकारों पर केन्द्रित ‘व्यंग्य प्रदेश’ का कुशल संपादन किया है। 32 वर्षों तक हास्य-व्यंग्य के अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन का आपने संयोजन-संचालन किया है। टी.वी. चैनलों और आकाशवाणी केंद्र से आपकी व्यंग्य वार्ताओ का प्रसारण हुआ है। म.प्र. साहित्य अकादमी के शरद जोशी कृति पुरस्कार (2021) और म.प्र. लेखक संघ के प्रसिद्ध ‘माणिक वर्मा व्यंग्य सम्मान’ सहित आपको कई सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हैं। आप जी व्यंग्यकार होने के साथ धर्म, दर्शन और इतिहास में भी आपकी गहन अभिरूचि है। सिख इतिहास पर आपका विशेष अध्ययन है। सिख इतिहास एवं साहित्य पर केन्द्रित आपकी ‘युग स्रष्टा गुरु नानक देव’, ‘युगद्रष्टा गुरु गोबिंद सिंह’ युग रक्षक गुरु तेग बहादुर, युग ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब : स्वरूप एवं दर्शन सहित छः पुस्तकें प्रकाशित हैं। विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से आपने एम. काम और पीएच. डी (अर्थशास्त्र) की उपाधियां प्राप्त की एवं वाणिज्य प्राध्यापक रहे। इसी प्रकार इंदौर निवासी तीरथ सिंह जी खरबंदा प्रख्यात व्यंग्यकार और लेखक हैं आप भी अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हैं। प्रमुखता से आप हिंदी के प्रसिद्ध अखबार नईदुनिया, अमर उजाला, प्रजातंत्र, जनवाणी, जनसंदेश टाइम्स, भारत डायरी इत्यादि में आपकी व्यंग्य रचनाओं को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता है। हाल ही में आपका नवीन व्यंग संग्रह ‘सुना हैं आप बहुत उल्लू हैं’। प्रकाशित हुआ हैं। इसी प्रकार व्यंग कार एवं लेखिका लखनऊ निवासी इंद्रजीत कौर अपनी व्यंग्य रचनाओं से हिंदी के पाठकों में अपना विशिष्ट स्थान निर्माण कर रही हैं। आप जी पेशे से शिक्षिका है एवं विगत 20 वर्षों से व्यंग्य लेखन में अपना अभूतपूर्व योगदान दे रहीं है, आप जी को अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए है। आप जी आकाशवाणी और दूरदर्शन के अनेक कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी को अंकित किया है। आप जी के चार व्यंग्य संग्रह क्रमश: ईमानदारी का सीजन, पंचतंत्र की कथाएं, चुप्पी की चतुराई और चयनित व्यंग्य रचनाएं प्रकाशित हो चुके है।
इसके अतिरिक्त अनेक पंजाबी सभ्यता के साहित्यकार जिन्होंने ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ के प्रचार-प्रसार में अपने जीवन को समर्पण कर विशेष योगदान दिया है। ऐसे सभी जाने-पहचाने, पंजाबी सभ्याचार के समस्त साहित्यकारों को एवं ‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ प्रेमियों को टीम खोज-विचार की ओर से आज के शुभ अवसर पर सादर नमन!
‘राष्ट्रभाषा हिंदी’ दिवस की स्वस्तिकामनाएं!
नोट:-1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।
2. गुरवाणी का हिंदी अनुवाद गुरवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।
साभार– लेख में प्रकाशित गुरवाणी के पद्यों की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज-विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।