राम बिना को बोले रे…

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ੴ सतिगुर प्रसादि॥

(अद्वितीय सिख विरासत/गुरबाणी और सिख इतिहास/टीम खोज-विचार की पहेल)

वर्तमान समय में पूरे देश में राम नाम की धूम मची हुई है| उस प्रभु-परमेश्वर राम की भक्ति में प्रत्येक भारतीय सराबोर होकर, हम सभी के आराध्य देव अकाल पूरख के स्वरूप श्री राम को याद कर रहे हैं| मेरे 61 वर्ष के जीवन में मैंने कभी भी एक साथ पूरे देश को ऐसी राम भक्ति में सराबोर होते हुए नहीं देखा है| निश्चित ही अयोध्या धाम के राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से आज प्रत्येक भारतीय अभिभूत है| विवादों से दूर रहकर इस प्राण-प्रतिष्ठा के शुभ अवसर पर प्रत्येक भारतीय के होठों पर प्रभु-परमेश्वर राम का नाम पहुंचाने के लिए राम मंदिर ट्रस्ट के आयोजकों का तहे दिल से आभार! 

निश्चित ही प्रभु-परमेश्वर अकाल पूरख राम का नाम हमारी जीवन यात्रा में हमारे श्वास-श्वास में समाया हुआ है| राजनीति से दूर रहकर उस अकाल पूरख प्रभु-परमेश्वर श्री राम को इष्ट मानकर ही हम अपना मानवीय जीवन सफल कर सकते हैं| श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में सिख गुरुओं के अतिरिक्त जिन भक्तों की वाणी का समावेश किया गया है, उन भक्तों ने सृष्टि के रचयिता अकाल पूरख, प्रभु-परमेश्वर के विभिन्न नाम को अभिव्यंजक शब्दों के द्वारा प्रकट किया है| जैसे कि अल्लाह, ठाकुर, प्रभु, स्वामी, शाह, पातशाह, साई, मुरारी, मुरलीधर इत्यादि| इसी तरह से राम शब्द को भी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में लगभग 2000 बार प्रकट कर, इन भक्तों ने विभिन्न उदाहरणों से आम श्रद्धालुओं को सही भक्ति मार्ग दिखाकर, उस अकाल पूरख की भक्ति से जोड़ने का अभिनव प्रयत्न किया है|

गुरबाणी में अनेक स्थानों पर अलग-अलग संदर्भों का हवाला देने के लिए एक ही शब्द का उपयोग किया गया है| हिंदी में हमें समझने के लिए ‘यमक अलंकार’ का उदाहरण अत्यंत महत्वपूर्ण है| ‘यमक अलंकार’ को परिभाषित करने के लिए हम उदाहरण देते हैं–

कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय,

वा खाये बौराये या पाए बौराये|

उपरोक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि प्रथम पंक्ति में कनक शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है परंतु एक कनक का अर्थ धतूरा एवं दूसरे कनक का अर्थ सोना है| इसी प्रकार गुरबाणी में राम शब्द को अनेक संदर्भो में अनेक स्थानों पर अलग-अलग रूप से प्रकट किया गया है| उदाहरण के लिए गुरबाणी में अंकित है—

गोरख पूतु लोहरीपा बोलै जोग जुगति बिधि साई||

                (अंग क्रमांक 939)

अर्थात गोरख का पुत्र लोहारिपा कहता है कि योग की युक्ति सही है| इसी संदर्भ में दूसरी पंक्ति है–

गुरु ईसरु गुरु गोरखु बरमा गुरु पारबती माई|| 

               (अंग क्रमांक 2)

अर्थात गुरु ही शिव, विष्णु, ब्रह्मा और माता पार्वती है क्योंकि गुरु के पास शक्ति है|

इसी संदर्भ में एक और पंक्ति है–

ऊपरि गगनु गगन परि गोरखु ता का अगमु गुरु पुनि वासी||  (अंग क्रमांक 992)

अर्थात धरती के ऊपर गगन मंडल है, उस गगन पर परमेश्वर निवास करता है परंतु यह स्थान अगम्य है| और गुरु पुनः जीवों को उस स्थान का वासी बना देता है| इस तरह से गुरबाणी में ‘गोरख’ शब्द के विभिन्न अर्थ प्रचलित है, ठीक इसी प्रकार से संस्कृत के ग्रंथों में भी ऐसे संदर्भ मिलते हैं, जिसमें एक शब्द के अनेक अर्थ पाए जाते हैं| जैसे की असुर का अर्थ सूरज भी है और राक्षस भी! अज का अर्थ ब्रह्मा, विष्णु, महेश, बकरा, बादल इत्यादि है| शिव का अर्थ देवी, धाम, शक्ति इत्यादि है| इसी प्रकार से विश्व की विभिन्न भाषाओं में एक ही शब्द के कई विभिन्न अर्थ पाए जाते हैं और भाषा के विद्वान संदर्भों के अनुसार इन शब्दों को प्रकट कर इनका सही उपयोग करते हैं| 

इसलिए यह आवश्यक नहीं है कि जहां राम शब्द को प्रकट कर उपयोग में लाया गया हो उसका अर्थ मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथ पुत्र ‘श्री राम’ ही हो! राम शब्द अध्यात्म की दुनिया में आदिकाल से ही प्रचलित है, इस कारण से ही ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में सिख गुरुओं और अन्य भक्तों ने आम श्रद्धालुओं को मार्गदर्शन करने के लिए राम शब्द का अनेक संदर्भो में उपयोग किया है| कई संदर्भों में ऐसा भी होता है कि आम लोग अपने इष्ट को साधारण तौर तरीके से राम कहकर संबोधित करते हैं कारण भारतीय जन मानस में राम शब्द की अपनी एक विशिष्ट महिमा है| जैसे कि ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की पांचवी ज्योत जिज्ञासु प्रवृत्ति के ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने गुरु के प्रति मिलन की तड़प को प्रकट करने हुए अपने सद्गुरु को मुरारी और सारंगपाणी कहकर संबोधित किया है| गुरबाणी के मीठे बोल हैं—

तेरा मुखु सुहावा जीउ सहज धुनि बाणी||

चिरु होआ देखे सारिंगपाणी||

धंनु सु देसु जहा तुं वसिआ मेरे सजण मीत मुरारे जीउ||

                       (अंग क्रमांक 96)

अर्थात है मेरे गुरु! तेरा मुख अति सुंदर है तेरी वाणी की ध्वनि भी मन को आनंद प्रदान करती है| है सारंगपाणी! तेरे दर्शन किए मुझे चिरकाल हो चुका है| हे मेरे सज्जन एवं मित्र प्रभु! वह धरती धन्य है, जहां तुम वास करते हो|

इसी तरह गुरबाणी में राम, रघुनाथ और गोपाल शब्द अकाल बोधक के स्वरूप में आए हैं| गुरबाणी का फरमान है—

प्रहिलादु कहै सुनहु मेरी माइ||

राम नामु न छोड़ा गुरि दीआ बुझाइ|| 

           (अंग क्रमांक 1133)

अर्थात भक्त प्रहलाद ने निर्भीक होकर कहा है कि हे मेरी माता! गुरु ने मुझे समझा दिया है मैं अंत तक राम नाम का जाप नहीं छोड़ सकता|

इसी तरह गुरबाणी का फरमान है—

प्रहलाद का राखा होइ रघुराइआ||

          (अंग क्रमांक 1133)

अर्थात प्रभु-परमेश्वर स्वयं प्रहलाद का रखवाला बना|

इसी तरह गुरबाणी का फरमान है—

मेरी पटीआ लिखि देहु स्री गुोपाल|| 

                 (अंग क्रमांक 1194)

अर्थात आपसे अनुरोध है कि मेरी तख्ती पर उस प्रभु-परमेश्वर का नाम अंकित कर दें|

यदि उपरोक्त गुरबाणी की पंक्तियों में अंकित घटनाओं के संदर्भ को अलग कर दें और उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एवं यशोधा पुत्र श्री कृष्ण से जोड़े तो निश्चित यह इतिहास के विपरीत मितहास हो जाएगा कारण प्रहलाद की रक्षा के समय श्री राम और श्री कृष्णा अवतरित नहीं हुए थे ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की नौवीं ज्योत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के द्वारा रचित वाणी एक-एक रघुनाथ का भी अर्थ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम नहीं है कारण वाणी में आता है—

रामु गइओ रावनु गइओ जा कउ बहु परवारु||

 (अंग क्रमांक 1429)

अर्थात राजा दशरथ सुत मर्यादा-पुरुषोत्तम श्री राम भी संसार छोड़ गए, लंका पति रावण भी मौत की आगोश में चला गया, जिसका बहुत बड़ा परिवार था| इस बाणी अनुसार शरीर धारी मर्यादा-पुरुषोत्तम श्री राम भी संसार छोड़ गए तो वह सतगुरु जी के इष्ट कैसे हो सकते हैं? निश्चित ही गुरु साहिब ने तो शाश्वत और अविनाशी राम के नाम का स्मरण किया है| गुरबाणी में अंकित है—

साधो इहु तनु मिथिआ जानउ||  (अंग क्रमांक 1186)

अर्थात हे सज्जनों! इस शरीर को नाशवान मानो और इसके भीतर जो ईश्वर विद्यमान है उसे ही शाश्वत समझो| || रहाउ||

इससे स्पष्ट है की गुरबाणी ने जब भी राम नाम का जाप, चिंतन एवं सिमरन करने की प्रेरणा की या पूजा करने के लिए प्रेरित किया तो उपरोक्त गुरबाणी के पदों को सर्वव्यापी वाहिगुरु के अर्थ में संदर्भित किया गया है| ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ ने तो हमें बड़े प्यार से राम का नाम भैया संबोधित कर स्मरण करने के लिए उपदेशित किया और राम के नाम का अर्थ भी अपनी वाणी में स्पष्ट किया है| गुरु वाक है—

जपि मन सिरी रामु|| राम रमत रामु||

सति सति रामु|| बोलहु भईआ सद राम रामु रामु रवि रहिआ सरबगे|| ||रहाउ||  (अंग क्रमांक 1202)

अर्थात है मन! श्री राम का जाप कर लो, संपूर्ण सृष्टि में राम-राम बसा हुआ है| राम सदा सत्य है, शाश्वत स्वरूप है, है भैया! सदैव राम-राम बोलो, वह सर्वव्यापक है|  ||रहाउ||

पंचम गुरु ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ की वाणी से तो किसी भी प्रकार का संदेह रह ही नहीं जाता है| गुरु जी का फरमान है—

रमत रामु सभ रहिओ समाइ|| (अंग क्रमांक 865)

अर्थात सभी का प्यारा राम नाम सभी में समाया है| या इस तरह से भी गुरबाणी में अंकित है—

रमत राम घट घट आधार||  (अंग क्रमांक 897)

अर्थात घट-घट में व्यापक राम सभी के जीवन का आधार है|

भक्त नामदेव जी ने भी अपनी वाणी में पंडित (पांडे) को संबोधित कर, स्पष्ट रूप से कहा है कि—

पाँडे तुमरा रामचंदु सो भी आवतु देखिआ था||

रावन सती सरबर होई घर की जोइ गवाई थी||

 (अंग क्रमांक 875)

अर्थात हे पांडे! तुम्हारे कथनानुसार रामचंद्र जी का भी बहुत नाम सुना, उनकी लंका नरेश रावण के साथ लड़ाई हुई और तदुपरांत उन्होंने पत्नी सीता को गवा दिया था|

श्री गुरु नानक देव जी ने भी गुरबाणी में फरमान किया है—

रोवै रामु निकाला भइआ||

सीता लखमणु बिछुडि गइआ||  (अंग क्रमांक 953)

भक्त कबीर जी ने भी स्पष्ट रूप से लिखा है कि ब्राह्मण जैनउ की रस्म के पश्चात राम की पूजा-पाठ का उपदेश देता है परंतु राम-राम बोलने में अंतर आ जाता है| स्पष्ट है की एक राम तो वह हुआ है जो सर्वव्यापी, शाश्वत और अविनाशी है| जिसका सृष्टि का प्रत्येक जीव सिमरन करता है और इस शाश्वत राम का सिमरन करना मनुष्य मात्र का फर्ज है परंतु इसी राम नाम को रासधारी लोग रासो में स्वांग बनाकर प्रस्तुत करते हैं तो शाश्वत, ईश्वर, अकाल पुरख राम का नाम मर्यादा-पुरुषोत्तम राजा दशरथ पुत्र श्री राम की महिमा बन जाता है|

भक्त कबीर जी का गुरबाणी में पावन श्लोक है—

कबीर राम कहन महि भेदु है ता महि एकु बिचारु||

सोई रामु सभै कहहि सोई कउतकहार|| 

       (अंग क्रमांक 1374) 

अर्थात कबीर जी कहते हैं कि राम कहने में भेद है परंतु उसमें एक समझने योग्य बात है कि दशरथ पुत्र श्री रामचंद्र को भी सब लोग राम ही कहते हैं और सर्वव्यापक लीला रचने वाले रचयिता को भी राम कहा जाता है| निश्चित ही गुरबाणी राम नाम जपने की अभूतपूर्व प्रेरणा देती है और सूचित करती है कि हमें प्रत्येक जीवों में रमत होकर रमने वाले सर्वव्यापी राम के नाम का जाप करना है कारण प्रभु राम के नाम का जाप हमें मनुष्य जीवन में परम पद प्राप्त कर, असीम सुख की प्राप्ति करवाता है| कबीर जी का गुरबाणी में फरमान है—

कबीर रामै राम कहु कहिबे माहि बिबेक||

एकु अनेकहि मिलि गइआ एक समाना एक||

         (अंग क्रमांक 1374)

अर्थात कबीर जी कहते हैं कि राम-राम जपते रहो राम का नाम जपने में ही विवेक है| एक राम ही है, जो अनेकानेक रूपों में सब में समाया हुआ है| एक राम ही है जो सभी के दिल में बसा हुआ है| वह सभी के हृदय में समान रूप से एक ही है| गुरबाणी का फरमान है—

सभै घट रामु बोलै रामा बोलै||

राम बिना को बोलै रे|| रहाउ||

एकल माटी कुंजर चीटी भाजन हैं बहु नाना रे||

असथावर जंगम कीट पतंगम घटि घटि रामु समाना रे|| 

 (अंग क्रमांक 988)

अर्थात सभी के शरीर के रोम-रोम में राम बोलता है! राम के अतिरिक्त और कौन बोल सकता है? रहाउ|| मिट्टी एक ही है परंतु उस मिट्टी से हाथी एवं चींटी रूपी अनेक प्रकार के जीव रूपी बर्तनों का निर्माण हुआ है| स्पष्ट है! वृक्ष, पहाड़, मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंग सभी में राम का नाम समाया हुआ है| निश्चित ही राम नाम में असीम शक्ति और सर्वानंद है| वर्तमान समय में ही क्यों? प्रत्येक मनुष्य को राम का नाम जीवन की अंतिम श्वास तक लगातार जपना चाहिए| राम नाम के साथ राजनीति करना अनुचित है कारण राम नाम भारतीय जनमानस के अंतरात्मा की आवाज है| राम नाम ही देशभक्ति का द्योतक है| उस अकाल प्रभु-परमेश्वर राम का नाम जपने से ही कलयुग रूपी भवसागर से पार हुआ जा सकता है| तो आओ हम सभी मिलकर बोलें—

सभै घट रामु बोलै रामा बोलै||

राम बिना को बोलै रे|| रहाउ||

 जय श्री राम||


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