रमैय्या–वस्तावैय्या. . .रमैय्या–वस्तावैय्या
भारत जैसे विशाल देश में बॉलीवुड में रचित पुराने गाने, गीत, संगीत का निश्चित ही अपना इतिहास और महत्व है। हमारे जमाने के श्रोताओं के लिए यह सभी बेहतरीन दिन – रात मुंह पर चढ़े रहने वाले गानों की स्मृतियां सचमुच अद्भुत है। यह मधुर स्मृतियाँ ऐसी है, जैसे भूतकाल के संदर्भ में स्वयं लिखित पुरानी डायरी के फड़फड़ाते हुए पृष्ठों के समान एवं इन पृष्ठों को जैसे भोर के पारिजात फूलों की खुशबू और रातरानी के फूलों की खुशबू का एक अनोखा मिलाप अभिभूत करता हो। इन मधुर स्मृतियों को विशेष आयाम और उजाला देते हैं पुराने गानों के वह शब्द जो अनायास ही हर संगीत प्रेमी गुनगुनाते हुए गाकर स्वयं को प्रफुल्लित कर, चेतना और उर्जा प्रदान करता है। निश्चित ही फिल्मी गानों के उत्साह रूपी यह शब्द हमारी स्मृतियों के पटल की धूल को झाड़ते हुए, हमें उन मधुर स्मृतियों के मनोरंजन की मजेदार और रोचक दुनिया की अनोखी सैर कराते हैं।
रमैया–वस्तावैया यह एक ऐसा ही फिल्मी गाना है। इसकी निराली और अद्भुत शब्दावली निश्चित ही जुहू चौपाटी की खमंग भेल का आनंद प्रदान करती है। वर्तमान समय में भी इस मधुर गाने की लोकप्रियता शीर्ष पर है। इस गाने को सुनने वाले श्रोता और पाठक शायद नहीं जानते हैं कि रमैय्या–वस्तावैया शब्द का अर्थ क्या है? बहुसंख्यक लोगों इस शब्द का अर्थ नहीं जानते हैं। मुझे भी इस शब्द का अर्थ ज्ञात नहीं था।
हिंदी फिल्मी गानों के एक रसिक और पुरानी पीढ़ी के श्रोता आदरणीय विवेक जी जोशी के द्वारा इस शब्द का अर्थ एक मराठी लेख से ज्ञात हुआ है। गाने के शब्दों की रचना और निर्माण की कहानी अत्यंत रोचक है। बॉलीवुड के महान और प्रसिद्ध कलाकारों की टोली अर्थात् राज कपूर शैलेंद्र, शंकर जयकिशन और उनके सहयोगी अपने नित्य कार्य से मुक्त होने के पश्चात नियमित रूप से एक ढा़बे पर चाय–नाश्ते के लिए जाते थे और इस ढ़ाबे पर एक इकलौता कामगार काम करता था जिसका नाम रमैय्या था। ढ़ाबे पर एक अकेला कामगार होने के कारण ग्रहाकों की सेवा के लिए उसकी दौड़–धूप निरंतर चलती रहती थी। प्रत्येक ग्राहक आवाज देकर पुकारते हुए कहता था रमैय्या पानी लाना. . . रमैय्या चाय लाना. . . रमैय्या. . . रमैय्या और रमैय्या की आवाज निरंतर इस ढाबे पर गूंजती रहती थी। इस भागम–भाग में ढाबे का मालिक भी अपने इस इकलौते कामगार को रमैय्या–वस्तावैय्या शब्द कहकर निरंतर पुकारता रहता था।
एक दिन उपरोक्त उल्लेखित हमारे बॉलीवुड के महान कलाकारों की टोली ने इस ढाबे पर चाय का आर्डर किया और चाय का इंतजार करते–करते इन कलाकारों ने ढाबे के टेबल पर थाप देना प्रारंभ कर दी और ठेका धर कर गुनगुनाना प्रारंभ किया रमैय्या–वस्तावैया . . . रमैय्या–वस्तावैय्या इसी बीच गीतकार शैलेंद्र ने शब्द समायोजित कर चाल रचना प्रारंभ कर शब्दों को जोड़ा और गुनगुनाते हुए इस गाने को आगे बढ़ाया. . . मैंने दिल तुझको दिया. . . एवं इस प्रकार से भारतीय फिल्मी संगीत में एक अत्यंत रोचक और लोकप्रिय गाने पदार्पण हो गया। मुझे इस अत्यंत मधुर गाने के संबंध में जानकारी एक मराठी लेख से प्राप्त हुई थी और मैं यह अत्यंत रोचक और निराली जानकारी आप श्रोताओं और पाठकों तक पहुंचा रहा हूं।
और हां इस कहानी का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस ढाबे का मालिक और इकलौता कामगार दोनों ही तेलुगू भाषी थे, रमैय्या–वस्तावैय्या इस तेलुगु शब्द का अर्थ होता है रमैया इधर आओ! 😂😂 कई बार ऐसा होता है कि कोई प्रसिद्ध–लोकप्रिय कलाकृति के जन्म की कहानी अद्भुत और रोचक होकर एक नया इतिहास बनाती है।
साभार– ललकार स्मृति वाट्सएप ग्रुप पुणे।
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