मेरे जीवन का आधार: पुस्तकें

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मेरे जीवन का आधार: पुस्तकें

 (विश्व पुस्तक दिवस – 23 अप्रैल पर विशेष-)

“पुस्तकें आत्मा की खिड़कियाँ होती हैं” यह कथन केवल रूपक नहीं, अपितु जीवन की वह अनुभूत सत्यता है जो हर साहित्य प्रेमी के हृदय में धड़कती है। जब हम 23 अप्रैल को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ के रूप में मनाते हैं, तो यह महज एक तिथि नहीं होती; यह उस ज्ञान, विचार, और संवेदना की आराधना का दिवस होता है, जिसने मानव सभ्यता को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर किया है।

रसूल हमज़ातोव का यह विचार कि “स्वयं को और दूसरों को समझने के लिए पुस्तकों की आवश्यकता है,” मानव जीवन की बुनियादी सच्चाई को उद्घाटित करता है। वास्तव में, पढ़ना एक मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और बौद्धिक प्रक्रिया है, जो केवल सूचना प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि आत्मबोध, संवेदना और रचनात्मकता के बीज को सिंचित करती है।

बोलना सहज है, पर पढ़ना और समझना एक अर्जित कौशल है। यह कौशल पाठक और पाठ के बीच निरंतर चलने वाले एक मौन संवाद से विकसित होता है। इस संवाद में केवल शाब्दिक अर्थ ही नहीं, बल्कि पाठ के पीछे छिपे भाव, प्रतीक, और अंतर्निहित दर्शन को समझना भी सम्मिलित होता है। यह प्रक्रिया ही व्यक्ति को भावनात्मक परिपक्वता, आलोचनात्मक दृष्टिकोण और विवेकशील आत्म-निर्णय की क्षमता प्रदान करती है।

पुस्तकें: मित्रता का श्रेष्ठतम रूप-

एकांत में जब शब्दों के सहचर बनते हैं, तब पाठक को यह अनुभूति होती है कि किताब से बढ़कर कोई सखा नहीं हो सकता। एक उत्तम पुस्तक, बारंबार पढ़े जाने पर भी, हर बार नवीन अर्थों और अनुभवों का संचार करती है। मेरी दृष्टि में, पुस्तक केवल ज्ञान का स्रोत नहीं, बल्कि धर्म की अनुभूति है — वह धर्म जिसमें श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी जैसे दिव्य ग्रंथ को साक्षात गुरु का स्थान प्राप्त है।

“शब्द ही गुरु है, शब्द ही ईश्वर है,
शब्द ही जीवन का अमूल्य आधार है।”

शब्दों के बिना न तो विचार संभव हैं, न ही आत्म-अभिव्यक्ति। शब्द ही लेखक के अस्तित्व का प्रतीक होते हैं — वही शब्द जो कभी भावनाओं की स्याही में भीगते हैं, तो कभी विचारों की लौ से तपते हैं। जीवन का आरंभ ‘शब्द’ से होता है और अंत भी उसी में विलीन होता है। सच कहूँ, तो शब्दहीन जीवन, एक निर्वासित यात्रा है, दिशा हीन, अर्थहीन!

पुस्तकें: जीवन का आलोकपथ-

यदि मुझे एक समर्पित लेखक के रूप में पहचाना जाता है, तो इसका श्रेय श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की अमृतमयी वाणी और अनगिनत पुस्तकों की संगति को जाता है। जैसा मैक्सिम गोर्की ने लिखा था — “मेरे भीतर जो भी अच्छाई है, वह पुस्तकों की देन है।” इसी भावना के साथ मैं अपने साहित्यिक पथ की आगामी उड़ानों की योजना बना रहा हूँ।

पाब्लो नेरूदा की यह पंक्ति — “जब कोई पुस्तक पढ़ कर उठता हूँ तो जीवन के पृष्ठ खुलने लगते हैं” — मेरे साहित्यिक अनुभव की सार्थक अभिव्यक्ति है। प्रत्येक पुस्तक, एक नया दृष्टिकोण, एक नई अंतर्दृष्टि, और जीवन के प्रति एक नवीन संवेदना प्रदान करती है।

पढ़ना: परिवार से प्रारंभ, चरित्र निर्माण की यात्रा-

शिक्षा और संस्कार का प्रारंभ परिवार से होता है। एक बालक बोलना और समझना अपने परिवार के वातावरण से सीखता है। वहीं, पढ़ने की आदत उसके मानसिक विकास, आचरण और दृष्टिकोण को परिष्कृत करती है। 2005 में शिकागो में हुए अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन सम्मेलन में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था—
“पढ़ना प्रतिभा के समग्र विकास का मुख्य द्वार है। यह विश्व की जटिलता को समझने, वैज्ञानिक प्रगति को आत्मसात करने और समग्र विकास की आधारशिला रखने का मार्ग प्रशस्त करता है।”

एक पुस्तक, अनेक जीवन-

लेखक जॉर्ज आर. आर. मार्टिन का यह कथन —
“एक पाठक मृत्यु से पूर्व हज़ारों जीवन जीता है,
जो नहीं पढ़ता, वह केवल एक ही जीवन जीता है।”
उपरोक्त कथन निश्चित ही हमें यह सिखाता है कि पुस्तकें केवल ज्ञान नहीं, अपितु अनुभवों, कल्पनाओं और जीवन के वैकल्पिक सत्य की यात्रा हैं।

इसलिए, इस ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर हम सभी संकल्प लें कि हम प्रतिदिन एक उत्तम पुस्तक पढ़ने का अभ्यास अपनाएँगे। यह न केवल हमारे विचारों को समृद्ध करेगा, अपितु आने वाली पीढ़ियों को एक मूल्यनिष्ठ और विवेकशील समाज का मार्गदर्शन भी प्रदान करेगा।

सभी पाठकों, विद्वानों और ज्ञान-पिपासुओं को विश्व पुस्तक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
पुस्तकें पढ़ें, जीवन के अर्थ को गहराई से जानें।

 



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