Responsive Menu
Add more content here...

मृत्यु का प्रमाण पत्र

Spread the love

मृत्यु का प्रमाण पत्र

(एक जीवनदर्शी अनुभव कथा)

सेवानिवृत्त पुलिस आयुक्त… कभी गर्व से सीना ताने सरकारी बंगले में रहने वाले, अब उन्हीं की कॉलोनी में स्थित एक सामान्य से निजी मकान में निवास कर रहे थे। पद, प्रतिष्ठा और सत्ता का तेज अब भी उनके आचरण में झलकता था। उन्हें स्वयं पर अत्यधिक गर्व था, इतना कि वह किसी को अपनी बराबरी का मानने को भी तैयार नहीं थे।

हर संध्या, वह कॉलनी के पार्क में टहलने निकलते थे। वहाँ आने-जाने वालों को अनदेखा करना उनकी आदत बन चुकी थी। उन्हें लगता था कि “यह लोग मेरी हैसियत के नहीं हैं, मैं अलग श्रेणी का हूँ।”

एक दिन की बात है कि वह एक बेंच पर बैठे थे। तभी एक वृद्ध सज्जन, जिनके मुख पर एक सहज सौम्यता थी, पास आकर बैठ गए। मुस्कुराते हुए बोले-
“नमस्कार! बड़ी शांति है यहाँ, है ना?”

परंतु कमिश्नर साहब अपने परिचय की गाथा छेड़ चुके थे –
“मैं राज्य का पुलिस आयुक्त रह चुका हूँ। हजारों अधिकारियों को आदेश देता था। यह कॉलोनी का घर भी मेरा खुद का है… इत्यादि”

वृद्ध सज्जन मुस्कुराए! न कुछ बोले, न कुछ जताया।
अगले कुछ दिनों तक यही क्रम चलता रहा, कमिश्नर साहेब बोलते रहे, वृद्ध शांति से सुनते रहे।

फिर एक दिन, वही वृद्ध धीरे से बोले-
“कमिश्नर साहब, एक बात कहूँ? बल्ब जब तक जलता है, तब तक उसका मूल्य है। बुझते ही वह चाहे सौ वॉट का हो या ज़ीरो वॉट का! उस बल्ब का कोई मायना नहीं रह जाता। वह बस एक बुझा हुआ बल्ब बनकर रह जाता है।”

कमिश्नर साहब कुछ चौंके। वृद्ध आगे बोले-
“मैं यहाँ पिछले पांच वर्षों से रह रहा हूँ। लेकिन मैंने आज तक किसी को नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूँ।”

यह सुनकर कमिश्नर साहेब मौन हो गए।

वृद्ध ने दुसरी और इशारा करते हुए कहा-
“वहाँ गुप्ता जी बैठे हैं, वह रेलवे के जनरल मैनेजर थे। सामने जो सरदार साहेब हैं, वह लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर हुए हैं। साथ कोने में जो सफेद धोती-कुर्ते में बैठे हैं, वह DRDO के चेयरमैन थे। पर किसी ने आज तक अपनी पहचान का प्रदर्शन नहीं किया। क्यों? क्योंकि अब सबका बल्ब बुझ चुका है, अब सब एक समान हैं।”

“आप, मैं, हम सभी, अब फ्यूज बल्ब हैं। चाहे वह LED हो या CFL, हैलोजन हो या डेकोरेटिव, जब बल्ब जलता है तभी तक मूल्यवान होता है। एक बार बुझा, तो सब एक बेकार समान!

“पद, प्रतिष्ठा और सत्ता, ये केवल एक समय की सजावट हैं। यह हमारी स्थायी पहचान नहीं है। अगर इन्हीं में हम जीवन की परिभाषा ढूँढ़ते रहे, तो हम बहुत बड़ी भूल करते हैं।”

वृद्ध की वाणी में अब एक गहरा जीवन-दर्शन उतर आया था, उसने कहा-
“शतरंज में राजा, वजीर, प्यादा, सब खेलते हैं। लेकिन खेल खत्म होते ही सब एक ही डिब्बे में समा जाते हैं। कोई ऊंच-नीच नहीं रहती। जीवन भी एक शतरंज है, अंत में सब एक ही गिनती में आते हैं। डिब्बा बंद!”

“उगता सूरज और डूबता सूरज, दोनों ही सुंदर होते हैं। लेकिन दुनिया सिर्फ़ उगते सूरज को प्रणाम करती है। यह जीवन का कटु सत्य है। जो इसे स्वीकार लेता है, वही सच्चे अर्थों में आत्मज्ञानी बनता है।”

“कभी शेर की सवारी करने वाला भी बुढ़ापे में लाठी टेकता है।
कभी जिस पर हेलीकॉप्टर फूल बरसाते थे, वो भी अंत में चुपचाप श्मशान जाता है।
कभी तख्त पर बैठने वाला भी तख्ते के नीचे सो जाता है।”

“जीवन में चाहे जितने भी प्रमाण पत्र, पदक, सम्मान पत्र, ट्रॉफियाँ मिल जाएँ,
अंत में सबको बस एक ही प्रमाण पत्र मिलता है-
‘मृत्यु का प्रमाण पत्र!’
और वही सबसे प्रमाणिक दस्तावेज बनता है, जो हमें स्थायी विश्राम में ले जाता है।”

 इसलिए आज जो शांति है, उसका आनंद लीजिए।
कल क्या हो, कौन जाने।
यदि जीवन मिला है तो विनम्र बनकर जियो,
क्योंकि अंत में सब बराबर हो जाते हैं। 

 शेष रह जाता है “मृत्यु का प्रमाण पत्र”

साभार- मराठी की व्हाट्सएप पोस्ट से प्रेरित होकर इस आलेख की रचना की गई हैं। 


Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *