मित्रता के रंग अद्भुत
जीवन में संपर्क में आए हुए कुछ लोग अचानक नहीं आते हैं। प्रत्येक घटना के पीछे कुछ ना कुछ कारण होता है। हम किसी से, कहीं तो एक-दुसरे से ऋणानुबंध के एक अटूट जोड़ से जुड़े होते हैं, नहीं तो देश-विदेश में हम से संबंधित व्यक्ति से ही हमारी मुलाकात क्यों होती है? इस प्रश्न का उत्तर कोई नहीं जानता। इन बने हुए अद्भुत संबंधों को निभाने के लिए जी तोड़ मेहनत और त्याग करना पड़ता है। जिस तरह से हमें जीवन जीने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है, उसी तरह से जीवन में यह संबंध ऑक्सीजन का काम करती है। ईश्वर रक्त से बने रिश्ते स्वयं बनाकर भेजता है उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता परंतु प्रेम और आत्मीयता के रंग में रंगा मित्रता का रिश्ता वैसा नहीं होता है। मित्रता का यह रिश्ता आपसी तालमेल, विचार और अंतरात्मा का रिश्ता है। यह रिश्ता इतना मजबूत और अटूट होता है कि किसी के भड़काने पर या विपरीत परिस्थितियों में भी यह कभी टूट नहीं सकता। जब हम जीवन के सबसे कठिन दौर में होते हैं तो इन अद्भुत रिश्ते से बने मित्रों का कंधे पर हाथ रख कर बोला गया यह वाक्य ‘मैं हूं ना’ संजीवनी का काम करता है। इस तरह के रिश्ते जीवन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं।
निस्वार्थ मित्रता की यदि कोई ताकत है तो वह है उसकी सहजता। मित्रता की इस सहजता में ही उसकी सुरक्षितता की मलाई अपने आप तैयार होती है। मजेदार बात यह है की मलाई दूध से बनती है और दूध के ऊपर एक सशक्त छत का निर्माण करती है। मलाई के निचे स्थित दूध को मलई का भार महसूस नहीं होता है। इस प्रकार दूध और मलाई का साथ कोई मजबूरी भी नहीं है। निस्वार्थ मित्रता भी ऐसी ही होनी चाहिये। “दूध से ज्यादा स्निग्ध” मलाई की तरह! इसके पश्चात दूध से बने पदार्थ जैसे की दही,लस्सी,मक्खन और घी निश्चित ही ज्यादा पौष्टिक होते है। इसी तरह से निस्वार्थ मित्रता के रिश्ते में होना चाहिए।
“धन से धनवान होना बहुत सरल है, रिश्तों से समृद्ध होना बहुत कठिन है”।
“मित्रता का हर एक पायदान प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व का उत्कर्ष बिंदु होना चाहिए”।
मित्रता दिवस की सभी स्नेही मित्रों को शुभकामनाएं!