पूता माता की आसीस॥
निमख न बिसरउ तुम् हरि हरि सदा भजहु जगदीस ॥॥रहाउ॥
सतिगुरु तुम् कउ होइ दइआला संतसंगि तेरी प्रीति॥
कापड़ु पति परमेसरु राखी भोजनु कीरतनु नीति॥
अंम्रितु पीवहु सदा चिरु जीवहु हरि सिमरत अनद अनंता॥
रंग तमासा पूरन आसा कबहि न बिआपै चिंता॥
भवरु तुमा्रा इहु मनु होवउ हरि चरणा होहु कउला॥
नानक दासु उन संगि लपटाइओ जिउ बूंदहि चात्रिकु मउला॥
(श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी अंग क्रमांक 496)
अर्थात यदि आप के शीश पर माता–पिता का आशीर्वाद होगा तो आप कभी भी एक पल के लिए भी प्रभु–परमेश्वर को नहीं भूलोगे और हमेशा ही सृष्टि के स्वामी का सिमरन और ध्यान करते रहोगे। माता–पिता के आशीर्वाद से ही सच्चे गुरु मेहरबान होते हैं और साध–संगत की सेवा का अवसर प्राप्त होता है। माता–पिता के आशीर्वाद से ही प्रभु तुम्हारी इज्जत–आबरू को नग्न होने से एक कपड़े की पोशाक की तरह से बचाता है। साथ ही उस अकाल पूरख का यशगान करना तुम्हारी प्रतिदिन की खुराक बन जाती है। माता–पिता के आशीर्वाद से ही आप उस अकाल पूरख के नाम का सुधारस पान करते हैं। माता–पिता के आशीर्वाद से ही आपको दीर्घायु प्राप्त होती है और उनके आशीर्वाद से ही ईश्वर भी आपको अनंत खुशियां प्रदान करता है। इन्हीं के आशीर्वाद से तुम्हारे जीवन में खुशियों के रंग भर जाते हैं एवं तुम्हारी प्रत्येक उम्मीदें और आशाएं पूर्ण होती है। इन्हीं के आशीर्वाद से तुम चिंता मुक्त होकर जीवन जी सकते हो, माता–पिता के आशीर्वाद से ही आप विनम्र होकर, भरोसे से जीवन जी सकते हैं एवं ईश्वर के चरण आपके लिए कमल के फूलों की तरह हो जाएंगे। गुरवाणी के इस पद्य से नानक दास जी उपदेशित करते हुए वचन करते हैं कि अपने मन को उस अकाल पुरख की प्रीत से ऐसा जोड़ो जैसे जब पपीहा को वर्षा ऋतु में बारिश के पानी की बूंद प्राप्त होती है तो वो खुशी से हर्षोल्लास में सराबोर होकर आनंद प्राप्त करता है।
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के इस पद्य से माता–पिता के महत्व को बखूबी समझा जा सकता है। माता–पिता प्रत्यक्ष परमेश्वर का रूप होते हैं। माता–पिता का आदर करने से ही आपको भी मान–सम्मान प्राप्त होता है। केवल माता–पिता के आशीर्वाद तुम्हारी कमजोरियों को तुम्हारी खूबीयों में बदल सकते हैं। ईश्वर का अदृश्य स्वरूप माता–पिता के आशीर्वाद के रूप में सदैव तुम्हारे साथ होता है। वह माता–पिता ही है जो अपनी इच्छाओं को दबाकर अपने बच्चों के स्वप्न पूर्ण करते हैं। माता–पिता का शेष जीवन अपने बच्चों की खुशी में ही निहित होता है। प्रत्येक इंसान को अपने सामर्थ्य अनुसार माता–पिता की सेवा अवश्य करनी ही चाहिए।
माता–पिता के आशीर्वाद ही तुम्हें सिखाते हैं कि तुम्हारे पास जो नहीं है उसका विचार मत करो, ऐसा करने से तुम्हें दुख प्राप्त होगा। उस अकाल पुरख ने जो खुशियां तुम्हें भर – भर कर दी है उसका विचार करो, निश्चित ही सुख की प्राप्ति होगी। माता–पिता भले ही अशिक्षित हो परंतु वो अनुभव के विद्यालय में वो पी.एचडी. होते हैं। माता – पिता के आशीर्वाद से ही बच्चे दृढ़ निश्चय से संकट के समय में भी ना डगमगाते हुए पुनः एक नई उम्मीद, एक नई किरण और सकारात्मक ऊर्जा के साथ खड़े होते हैं। ‘सुंदरता का मार्ग ह्रदय से प्रारंभ होता है और वह मार्ग निश्चित ही कर्तव्यों की दहलीज पर अपनी उपस्थिति का अहसास कराता है’। इस कर्तव्य के मार्ग को केवल और केवल माता–पिता ही अपने बच्चों को अनुभव की पाठशाला में शिक्षित करते हैं। प्रत्येक माता–पिता अपनी चुलबुली–चंचल और चतुर संतानों के भविष्य के लिए सुनहरे सपने बुनते हैं। प्रत्येक माता–पिता भागीरथ प्रयत्न कर अपने बच्चों को उच्च शिक्षित, स्वावलंबी और समर्थ बनाना चाहते हैं। पारिवारिक जीवन मूल्य और संस्कारों की शिक्षा माता–पिता द्वारा संचालित बिना दीवारों के विद्यालय से ही प्राप्त होती है।
माता–पिता के शब्द रुपी फूलों से प्राप्त आशीर्वाद से ही आपके जीवन प्रवाह में सुगंध की सरिता प्रवाहित होती है। “माता–पिता का आशीर्वाद” इस शब्द वाक्य के ऊपर रचित शब्दों की सरिता का प्रवाह, निश्चित ही हमारे जीवन में एक मजबूत बांध–बांधता है| अंत में मैं इतना ही लिखना चाहता हूं कि ‘जीवन के प्रत्येक कठिन प्रसंग के समय पर आदि शक्ति के रूप में जो सहारा बनकर साथ में खड़ी होती है वो माँ है और ऐसे कठिन समय में जो कवच के रूप में चट्टान बनकर आप को सुरक्षा प्रदान करता है वो पिता है’।
माता–पिता के आशीर्वाद से हम इस जीवन को मयूर की तरह मस्ती में पंखों को फैला कर, आत्म विश्वास से नृत्य कर जीवन जीते हैं। जी भर के रोना और खिल–खिलाकर नाभि से हंसने की कला को उन्होंने सिखाया, वो माता–पिता ही थे, उथले समुद्र की तरह कल–कल की ध्वनि से जिसने बहना सिखाया, वो माता–पिता ही थे। माता–पिता का आशीर्वाद अपने बच्चों पर इस तरह से होता है जैसे कि–
“भोर के पारिजात फूलों की खुशबू और रातरानी के फूलों की खुशबू का अनोखा मिलाप अभिभूत करता हो”।
अंत में माता–पिता के आशीर्वाद से ही जीवन में समस्त खुशियों का आगाज़ होता है। जिसे गुरवाणी में इस तरह से अंकित किया गया है–
लख खुसीआ पातिसाहीआ जे सतिगुरु नदिर करेइ॥
निमख एक हरि नामु देइ मेरा मनु तनु सीतलु होइ॥
जिस कउ पूरबि लिखिआ तिनि सतिगुरु चरन गहे॥
(‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ अंग क्रमांक 44)
अर्थात् जब माता–पिता के आशीर्वाद से गुरु की कृपा होती है तो वो लाखों खुशियां झोली में भर देता है और जब हम उस अकाल पुरख परमात्मा को याद करते हैं तो मन और तन शीतल हो जाता है। माता–पिता के आशीर्वाद से जो गुरु चरणों में जुड़े रहते हैं वो सभी दुख–कलेशों से मुक्त रहते हैं।
नोट– ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को सम्मान पूर्वक गुरुमुखी में अंग कहकर संबोधित किया जाता है।
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