महान संत श्री गुरु नानक देव जी: मानवता के पथ प्रदर्शक
कलि तारण गुरु नानक आइआ।।
भारत, जिसे विविधता में एकता की भूमि के रूप में जाना जाता है, सदियों से “वसुधैव कुटुंबकम्” के सिद्धांत का पालन करता आ रहा है। इस महान संस्कृति की बुनियाद में सिख धर्म और इसके महान संतों की अनमोल शिक्षाएं हैं। सिख धर्म और इसके अनुयायियों ने न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी भारत को अमूल्य योगदान दिया है। देश की आज़ादी के संघर्ष से लेकर सीमाओं की रक्षा तक, सिखों की वीरगाथाएं, बलिदान, और योगदान भारतीय इतिहास के हर पन्ने में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं। सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी का जीवन और उनके उपदेश न केवल सिख समुदाय के लिए बल्कि समस्त मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं।
जन्म और प्रारंभिक जीवन-
महान संत श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ईस्वी को रावी नदी के किनारे बसे तलवंडी नामक गांव में हुआ, जिसे आज ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है और यह अब पाकिस्तान में स्थित है। उनके पिता मेहता कालू गांव के पटवारी थे और माता तृप्ता देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। गुरु नानक जी की एक बहन थी, जिनका नाम नानकी था, और वे भाई गुरु नानक के प्रति अत्यधिक स्नेह रखती थीं। बचपन से ही बाल नानक में असाधारण प्रतिभा और अध्यात्म के प्रति झुकाव दिखाई देने लगा था। सांसारिक सुख-सुविधाओं के प्रति उदासीनता, गहन चिंतन, और आध्यात्मिकता के बीज उनके बचपन में ही प्रकट हो गए थे।
श्री गुरु नानक देव जी की बुद्धिमानी और दिव्य दृष्टि का पहला परिचय उस समय हुआ जब वे सात वर्ष की आयु में विद्यालय गए। पंडित गोपालदास ने जब अक्षरमाला का पाठ पढ़ाया, तो नानक ने प्रत्येक अक्षर का गहन अर्थ समझाया, जिससे उनके अध्यापक चकित रह गए। यह उनका पहला दिव्य संदेश था, जिसने लोगों को यह एहसास कराया कि नानक असाधारण बालक हैं। कुछ समय बाद, उन्होंने विद्यालय जाना छोड़ दिया और आध्यात्मिक चिंतन में अधिक समय बिताने लगे। उनके चारों ओर कई चमत्कारिक घटनाएं घटने लगीं, जिससे लोग उन्हें दिव्य शक्ति मानने लगे।
विवाह और आध्यात्मिक यात्राएं-
आपका विवाह बटाला के भाई मुला की पुत्री सुलक्खनी से हुआ। इस विवाह से उन्हें दो पुत्र प्राप्त हुए, लेकिन श्री गुरु नानक देव जी का जीवन पारिवारिक बंधनों तक सीमित नहीं था। उनके पिता को भी यह समझ में आ गया कि नानक का उद्देश्य मात्र सांसारिक सुखों में लिप्त होना नहीं है। अपने आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, उन्होंने अपने दो शिष्यों मरदाना और बाला के साथ एक अद्वितीय आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़े।
श्री गुरु नानक देव जी ने मानवता को एक नई दिशा देने के उद्देश्य से संसार का भ्रमण किया। वे उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, चारों दिशाओं में गए और विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों, और समुदायों से संवाद स्थापित किया। उनकी ये यात्राएं “उदासियां” के नाम से प्रसिद्ध हुईं, जिनमें उन्होंने करीब आठ वर्ष बिताए। इस दौरान उन्होंने मुसलमानों, हिंदुओं, जैनियों, सूफियों, योगियों, और सिद्धों के केंद्रों का दौरा किया और उन्हें सत्य, प्रेम, और मानवता का संदेश दिया।
तीन महत्वपूर्ण शिक्षाएं-
श्री गुरु नानक देव जी ने अपने उपदेशों के माध्यम से मानव जीवन को उत्कृष्ट और सामाजिक समरसता से पूर्ण बनाने के लिए तीन प्रमुख शिक्षाएं दीं, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं:
- नाम जपो– ईश्वर का स्मरण और ध्यान करते हुए उसकी भक्ति में लीन रहना।
- कीरत करो– ईमानदारी और परिश्रम से जीविका कमाना, बिना छल-कपट के।
- वंड छको– अपनी कमाई का एक हिस्सा जरूरतमंदों के साथ बांटना और सेवा करना।
इन शिक्षाओं में न केवल आध्यात्मिक विकास का मार्ग दिखाया गया है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समरसता का भी आदर्श प्रस्तुत किया गया है। श्री गुरु नानक देव जी के उपदेशों में यह संदेश निहित है कि ईश्वर का सच्चा भक्त वही है जो ईमानदारी से जीवन यापन करता है और समाज में जरूरतमंदों की सहायता करता है।
स्त्रियों के प्रति समान दृष्टिकोण-
उस समय समाज में स्त्रियों को हीन दृष्टि से देखा जाता था और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे। गुरु नानक देव जी ने इस सामाजिक कुप्रथा का विरोध किया और स्त्रियों को सम्माननीय स्थान दिलाने के लिए आवाज उठाई। उनका प्रसिद्ध उपदेश था:
सो किउ मंदा आखीऐ जितु जंमहि राजान॥ (अंग 473)
अर्थात, जो स्त्री राजाओं और अवतारों को जन्म देती है, उसे कैसे हीन समझा जा सकता है? उन्होंने नारी को समाज में पुरुषों के बराबर अधिकार देने की बात की, जो उस समय के लिए एक क्रांतिकारी विचार था।
ईश्वर और मानवता का संदेश-
श्री गुरु नानक देव जी ने जीवन भर मानवता, समानता, और प्रेम का संदेश दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईश्वर एक है और सभी मनुष्य उसकी संतान हैं। उनका यह संदेश हिंदू और मुसलमान दोनों के लिए समान रूप से प्रभावी था। उनके उपदेशों में जाति, पंथ, और धर्म की दीवारों को गिराने का प्रयास था। उन्होंने कहा कि ईश्वर भक्ति प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, और इसमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
श्री गुरु नानक देव जी का मानना था कि हर धर्म का मूल तत्व एक ही होता है, प्रेम और करुणा। उन्होंने रूढ़ियों और अंधविश्वासों का कड़ा विरोध किया और लोगों को एक नई दिशा दिखाई। उनका प्रसिद्ध उपदेश था:
हकु पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाइ॥ (अंग 141)
अर्थात, दूसरों का हक मारना उतना ही पाप है जितना मुसलमानों के लिए सूअर का मांस और हिंदुओं के लिए गौ-मांस खाना।
गुरु गद्दी का सौंपना-
अपने जीवन के अंतिम दिनों में, गुरु नानक देव जी ने अपने प्रिय शिष्य भाई लहना जी को गुरु गद्दी सौंप दी, जो बाद में श्री गुरु अंगद देव जी के नाम से जाने गए। उन्होंने यह संदेश दिया कि धर्म और विरासत के विकास के लिए वंश नहीं, बल्कि गुण और योग्यता महत्वपूर्ण हैं। भाई गुरदास जी ने इस बात को अपनी वाणी में लिखा:
कलि तारण गुरु नानक आइआ।।
अर्थात, कलियुग के उद्धार के लिए ही श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश हुआ है।
ज्योति-ज्योति और विरासत-
5 सितंबर 1539 को, श्री गुरु नानक देव जी ने करतारपुर साहिब (पाकिस्तान) में ज्योति-ज्योति समा लिया। उनकी शिक्षाएं और उपदेश आज भी मानवता के मार्गदर्शन के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि धर्म का मूल उद्देश्य मानवता की सेवा और समानता का प्रचार करना है।
गुरु नानक देव जी के उपदेश केवल धार्मिक शिक्षा नहीं थे, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का संदेश थे। उनकी शिक्षाओं का पालन आज भी एक आदर्श समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है। भारतीय समाज में उनका योगदान अद्वितीय है, और उनकी शिक्षाओं से आने वाली पीढ़ियां सदैव प्रेरणा लेती रहेंगी।
कलि तारण गुरु नानक आइआ।।
अर्थात कलयुग का उद्धार करने हेतु ही श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश हुआ है।