महान परोपकारी इतिहासकार: सरदार भगवान सिंह जी खोजी

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ੴ सतिगुर प्रसादि॥
(अद्वितीय सिख विरासत/गुरबाणी और सिख इतिहास https://arsh.blog/ )
(टीम खोज-विचार की पहेल)
प्रासंगिक—जन्मोत्सव अभिष्टचिंतन

महान परोपकारी इतिहासकार: सरदार भगवान सिंह जी खोजी

दातै दाति रखी हथि अपणै जिसु भावै तिसु देई॥
नानक नामि रते सुखु पाइआ दरगह जापहि सेई॥
(अंग क्रमांक 604)
अर्थात् उस प्रभु-परमेश्वर, अकाल पुरख ने सभी बक्शीशों को अपने हाथ में रखा है और वह जिसे चाहता है उसे ही प्रदान करता है। हे नानक! उस अकाल पुरख के नाम में मग्न होकर उन्होंने नाम का सुख पाया है वह ही ईश्वर के दरबार में बेअंत खुशियां प्राप्त करते है।

परम आदरणीय, सत्कार योग्य, हर दिल अजीज, हरमन प्यारे, जीवन में परिशीलन से ‘गुरु पंथ-खालसा’ की निष्काम सेवाओं में समर्पित होकर अपनी जवाबदेही को निभाने वाले, महान परोपकारी इतिहासकार, सेवा महर्षी, टीम ‘खोज-विचार’ के मार्गदर्शक, गुरु घर के निष्काम सेवादार और गुरसिक्खी रवायतों में जीवन को समर्पित महान इतिहासकार सरदार भगवान सिंह की ‘खोजी’ जी को जन्मदिन की स्वस्तिकानाएं!

`गुरु पंथ खालसा’ में ऐसे अनेक महान ऐतिहासिक व्यक्ति या इतिहास के नायक है जिन्होंने अपने विशेष कारनामों से, लोकहित में बहादुरी और निडरता से उन कारनामों को अंजाम देते हुए, इस संसार में अपनी विशिष्ट पहचान को अंकित किया है, इन परोपकारी व्यक्तियों के इतिहास के कारण से ही उन्हें युगों-युगों तक ‘अद्वितीय सिख विरासत’ के रूप में हमेशा याद किया जाएगा। विरासत के रूप में प्राप्त इतिहास अपने इन इतिहासकारों के कारण से ही अजर-अमर हो जाता है, निश्चित ही इन इतिहासकारों कि एक आम इंसान की तरह दो आंखें, दो हाथ और दो पैर हैं, कुछ महान व्यक्ति आम जन समुदाय में से उठकर महान कारनामों को अंजाम देते है, क्या ऐसे इतिहासकारों में हम ऐसा देखना पसंद करेंगे? कि यदि वह किसी नायक की भांति अपनी बाहों को पंख बनाकर, आकाश में उड़ जाए या पवन रुप होकर कई आकाश और पाताल की सैर कर आए! ऐसे आडंबर करने वाले व्यक्ति कभी भी ऐतिहासिक विरासत नहीं होते है। ऐसे व्यक्ति मिथहास बनकर मजाक बन जाते हैं। इस तरह के मिथहासकारों से इतिहासकारों की जरूरत कुछ अलग होती है, विरासत से प्राप्त इतिहास में केवल उन कारनामों को ही समाविष्ट किया जा सकता हैं जिनके लिए कोई ऐतिहासिक व्याख्या उपलब्ध हो। एक समर्पित इतिहासकार अच्छी तरह से जानता है कि, संसार की सारी सफलताओं का मूल मंत्र है प्रबल इच्छा शक्ति, इसी के बल पर विद्या, संपत्ति और साधनों का उपार्जन होता है| यही वह आधार है, जिस पर आध्यात्मिक तपस्या और साधना निर्भर करती है, यही वह दिव्य सिंबल है, जिसे पाकर संसार में खाली हाथ आया मनुष्य वैभवशाली बनकर संसार को चकित कर देता है| वर्तमान समय के महान इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ एक ऐसे इतिहासकार है जो सारांश में मध्यकालीन युग से लेकर वर्तमान समय तक, ‘गुरु पंथ खालसा’ की पूर्ण ‘अद्वितीय सिख विरासत’ की जानकारी को लगातार देशाटन कर, इस ओजस्वी इतिहास को ‘गागर में सागर’ भरने का प्रयास ‘टीम खोज-विचार’ के इस महानायक ने अपने कर-कमलों से किया है। निश्चित रूप से इस महान इतिहासकार की खोजें ‘गुरु पंथ खालसा’ की ‘अद्वितीय सिख विरासत’ के इतिहास का सारांश में सारगर्भित चर्चाओं का अभिनव प्रयास है।इस ‘अद्वितीय सिख विरासत’ की अद्भुत जानकारी को विभिन्न ग्रंथों, पुस्तकों एवं अन्य स्रोतों से एकत्रित करके, लिखकर एवं पूरे देश में बिना रुके, बिना थके यात्राएं कर पुरी टीम ने अपने महानायक के मार्गदर्शन में ‘गुरु पंथ-खालसा’ के प्रति पूरी ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण के भाव से अपनी निष्काम सेवाओं के श्रद्धा-सुमन ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ को अर्पित किये है।

‘गुरु पंथ-खालसा’ के इस महान परोपकारी और विद्वान, इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ का जन्म 9 नवंबर सन् 1976 ई. को सुबा पंजाब के पटियाला शहर में हुआ था। बचपन से ही परिवार से प्राप्त सांस्कृतिक और धार्मिक संस्कारों के कारण आप जी का विशेष झुकाव गुरबाणी के अध्ययन और सिख इतिहास की खोज पर केंद्रित रहा है।(आप जी की ‘खोज-विचार’ नामक श्रृंखला, यू-ट्यूब और फेसबुक पर अत्यंत प्रसिद्ध है) आप जी के द्वारा ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के संपूर्ण जीवन पर गुरुमुखी भाषा में वीडियो क्लिप्स की श्रृंखला बनाकर, गुरु साहिब के इस महान इतिहास को आम जन समुदाय तक पहुँचाने के लिए आपने विशेष प्रयत्न किए है।सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ ने सन् 1989 ई. में गुरबाणी के फ़रमान— बाबाणिआ कहानिआ पुत सपुत करेनि॥
के अनुसार ‘खंडे-बाटे’ का अमृत छक कर के 16 वर्ष की आयु में आप जी तैयार-बर-तैयार हो गए थे और सन् 1989 ई. में ही आप जी ने सांसारिक शिक्षाओं के अतिरिक्त जीवन में तीन वर्षों तक गुरबाणी, ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की बाणी और सिख इतिहास कंठस्थ कर लिया था। इसके पश्चात आप जी ने चंडीगढ़ स्थित ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब विद्या केंद्र’ में सिख इतिहास गुरबाणी और गुरमत संगीत की विद्याओं का लगातार तीन वर्षों तक गहन अध्ययन किया था। इसी के साथ पूरे विश्व में लगातार यात्राएं कर गुरबाणी का प्रचार-प्रसार किया ‘गुरबाणी ज्ञान प्रकाश केंद्र पटियाला’ (पंजाब) में आप जी ने सैकड़ों विद्यार्थियों को सिख धर्म की शिक्षाओं का गहन अभ्यास करवाया था। आप जी ने अकाल ‘अकादमी वडु साहिब’ (पंजाब) में भी दो वर्षों तक विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षाओं से अवगत करवाया था। आप जी ने महाविद्यालय में कला शाखा के विद्यार्थियों को भी शिक्षित किया था। ‘अद्वितीय सिख विरासत’ के विभिन्न, नवीनतम ऐतिहासिक पहलुओं को सफलतापूर्वक खोजने के कारण आप का उपनाम ‘खोजी’ पड़ गया है। खोजी जी ने अपने अर्जित ज्ञान से जीवन में कुछ विशेष करने का प्रण किया और अपनी शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा देकर सोशल मीडिया के माध्यम से आप जी ने गुरबाणी और सही-सटीक, विशुद्ध सिख इतिहास को आम जन समुदाय तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया।

गुरबाणी का फ़रमान है कि—
खोजी उपजै बादी बिनसै हउ बलि बलि गुर करतारा||(अंग क्रमांक 1255)

अर्थात सत्य की खोज करने वाला इस संसार में यश पता है और वैर-विरोध करने वाला दुखों में नष्ट हो जाता है मैं अपने गुरु, प्रभु-परमेश्वर पर पूर्णत समर्पित हूँ| गुरबाणी के इस फ़रमान अनुसार आप जी ने अपने प्रथम प्रयत्न में ही सिख इतिहास को प्रोजेक्टर की मदद से 300 घंटे का स्लाइड शो बनाकर आम जन समुदाय तक पूरे भारतवर्ष में पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उस समय आप जी ने टी.वी.शो के माध्यम से 70,000 विद्यार्थियों को गुरबाणी और सिख इतिहास से जोड़ने का बेमिसाल कार्य भी किया था।

वर्तमान समय में टीम ‘खोज-विचार’ के बेहतरीन स्टेज शो ‘कौन बनेगा प्यारे का प्यारा’ के माध्यम से, खेल-खेल में सिख बच्चों को ‘अद्वितीय सिख विरासत’ की अद्भुत जानकारी प्रदान कर, हजारों सिख धर्म के अनुयायियों को ‘खंडे-बाटे का अमृत छकाकर (अमृतपान की विधि) तैयार-बर-तैयार किया है और इस माध्यम से आप जी लगातार ‘गुरु पंथ-खालसा’ को अपनी सेवाएं समर्पित कर रहे है|वर्तमान समय में देश के दूरदराज के इलाकों में, ग्रामीण अंचलों में बसे हुए नानक पंथी/नानक नाम लेवा संगत के पास अपने विशेष प्रयत्नों से पहुंच कर, इस समस्त ‘लाखों की तादात में संगत’ को एक सूत्र में बाँधकर, सिख इतिहास और गुरबाणी से जोड़कर उन्हें मुख्यधारा में लाने का आप जी लगातार प्रयास करते रहते है| आप जी की निष्काम सेवाओं को देखते हुए आप जी को देश-विदेश में कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है| वर्तमान समय में आप जी ने सभी सिख इतिहास प्रेमियों के हृदय में अपने विशिष्ट स्थान को निर्दिष्ट किया है।
गुरबाणी का फ़रमान है—
गुरमुखि खोजत भए उदासी|| दरसन के ताई भेख निवासी||
साच वखर के हम वणजारे|| नानक गुरमुखि उतरसि पारे||
(अंग क्रमांक 939)
उपरोक्त गुरबाणी के फ़रमान अनुसार भविष्य में शीघ्र ही आप जी के द्वारा गुरुबाणी और सिख इतिहास के अनुसंधान के लिये, सर्व आधुनिक तकनीकी सुविधाओं से युक्त गुरमत शिक्षा केन्द्र के रूप में एक बुंगा ‘ज्ञान बुंगा’ को पटियाला (सूबा पंजाब) में प्रारंभ करने की योजना है। इस ‘ज्ञान बुंगा’ के माध्यम से नवोदित लेखक, साहित्यकार और इतिहासकारों को कांक्रिट मंच उपलब्ध करवाया जायेगा| ऐसे महान परोपकारी सिख इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ को उनके जन्मोत्सव पर अनेक हार्दिक स्वस्ति कामनाएं!
हम सभी संगत गुरु महाराज के चरणों में जुड़कर इस महान परोपकारी इतिहासकार के दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए अरदास करते है, वैसे भी अरदास का यह अटूट नियम है कि जब हम जानबूझकर किये हुए दोषों से मुक्त होने की याचना करते हैं तो अनजाने में हुए विस्मृत दोषों से भी मुक्त हो जाते हैं|
आप जी इसी तरह ‘गुरु पंथ खालसा’ की चढ़दी कला में रहकर अपनी सेवाएं समर्पित करें। वाहिगुरु जी आपकी समस्त स्वयं संचित अभिलाषाओं को पूर्ण करें।

‘जन्मोत्सव अभिष्टचिंतन’!


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