महान तपस्वी संत बाबा कुलवंत सिंह जी

Spread the love

विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक महत्व रखने वाला तख़्त भारत देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस महान भारत वर्ष में विविध धर्म, जाति, वर्ण के लोग अपनी–अपनी धार्मिक

परंपराओं के अनुसार मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर, बौद्ध स्थलों एवं अलग–अलग धर्म स्थानों में प्राचीन काल से चली आ रही अपनी धर्म मर्यादाओं के अनुरूप देवी–देवताओं, पीर–पैगंबर, ईसा, गुरुओं के द्वारा रचित पूजा–अर्चना के द्वारा इस सृष्टी के विधाता परमेश्वर का अपनी–अपनी पौराणिक परंपरा द्वारा पूजा–अर्चना से परमेश्वर का स्मरण करते है। प्राचीन काल से ही इन धार्मिक स्थलों में परमेश्वर की पुजा–अर्चना करने के लिए सबसे ज्यादा महत्व बाल ब्रह्मचारीत्तव धारण पुजारी का रहा है। उन धार्मिक पुजा स्थलों की पुजा के लिए सन्मान के साथ पुजारियों को मनोनित किया जाता है। जो अपनी–अपनी प्राचीन परंपराओं के अनुसार इन पुजा स्थलों में पुजा आदि का कार्य करते हुये मानव जाति को उस परमेश्वर के साथ जोड़ते हुये सच्चे मार्ग पर चलने की दीक्षा देते है। इन पवित्र स्थानों पर महान महात्माओं को इनके पुर्व के अच्छे कर्म, भजन, बंदगी के साथ अनेक युगों में उस परमेश्वर का तप करने के पश्चात ऐसे महान धार्मिक स्थलों की पूजा करने का अवसर प्राप्त होता है, जो बहुत ही भाग्यवान विशिष्ट व्यक्तित्व के व्यक्ति होते है; जो इस संसार में आकर परमेश्वर की भक्ति कर उस पवित्र स्थान में जाकर उसकी सेवा में अपना जीवन व्यतीत करते है।

सिखों के दसवें गुरु, ‘श्री गुरु गोविंद सिंह जी’ महाराज ने बिहार राज्य के पवित्र शहर पटना साहिब में अवतार धारण किया। इस संसार में हो रहे मानव जाति के साथ जुल्म एवं अत्याचार को खत्म करने के लिए ‘गुरु खालसा पंथ’ की स्थापना की। इस शुर–वीर कौम के साथ आप जी ने हो रहे अत्याचार का खात्मा किया। जिसमें गुरु जी ने अपने सर्व वंश को शहीद करवाया। तत्पश्चात गुरु जी का आगमन दक्खन प्रदेश की इस नगरी जिसे नंदी ग्राम कहा जाता है में हुआ। गुरु जी ने इस नगरी को भाग्य लगाते हुए इस नगरी में अपने सचखंड गमन के पूर्व ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ को गुरुता गद्दी प्रदान कर ब्रह्मलीन हो गये। तभी से इस पावन स्थान पर गुरु जी का सिंहासन स्थित है और यह स्थान ‘तख़्त सचखंड श्री हजुर अबचल नगर साहिब’ के नाम से जाना जाता है। इस पवित्र सिंहासन साहिब की सेवा में परंपरागत प्राचीन चली आ रही मर्यादाओं के अनुसार बाल ब्रह्मचारी, धार्मिक विद्या में निपुण, सिख धर्म के ज्ञानवान, व्यक्तिमत्व वाले निपुण व्यक्ति को ही इस सिंहासन साहिब की सेवा का मान प्राप्त होता है। जिसे सन्माननीय जत्थेदार एवं मुख्य पुजारी जी के नाम से संबोधित किया जाता है। बहुत ही भाग्यशाली व्यक्तिमत्व वाले होते है वह जिन्हें गुरु साहिब आप सेवा करने का अवसर प्रदान करते है।

इस स्थान की सेवा को एक तरीके का तप ही कहा जायेगा क्योंकि इस की सेवा में प्रात,काल 2.00 बजे से ही गुरु जी की सेवा में अलग–अलग समय सुबह से लेकर रात तक गुरु मर्यादाओं के अनुसार सेवा में समर्पित होता है; जिसमें उन्हें नाम मात्र का आराम प्राप्त होता है।

इस वर्तमान युग में महान तपस्वी ‘संत बाबा कुलवंत सिंह जी’ (मुख्य पुजारी, जत्थेदार साहिब) का जन्म इस पवित्र नगरी में हुआ। उनके पिताजी का नाम स. बलवंत सिंह जी और माता जी का नाम बीबी संत कौर जी है। बाबा जी ने दसवीं तक शिक्षा हासिल की इसके पश्चात आय.टी. आय. भी पास किया उसके साथ–साथ बाबा जी का झुकाव बालपन से ही धार्मिक क्षेत्र की और था, बाबाजी के दादा जी स. मंगल सिंह जी कडे वाले, निर्मल एवं संत स्वभाव के स्वयं अपनी कारीगरी से कड़े तैयार करके उससे होने वाले आर्थिक उत्पन्न से अपने पुरे परिवार की उपजीविका साधारण तरीके से चलाते थे एवं बाबा जी के पिता जी स. बलवंत सिंह जी कडे वाले महान हारमोनियम वादक, कीर्तनकार तथा धार्मिक कीर्तन में रुचि रखने वाले व्यक्ति थे। बाबा जी ने अपनी सामाजिक विद्या के साथ धार्मिक विद्या, कीर्तन, कथा आदि की विद्या भी हासिल की है। बाबा जी ने धार्मिक विद्या मास्टर ठान सिंह जी, ज्ञानी जगजीत सिंह जी, ज्ञानी हरदीप सिंह जी से प्राप्त की है।

अपने परिवार के उदर निर्वाह के लिए बाबा जी ने रागी भाई सुखदेव जी के साथ दरबार साहिब में रागी के रूप में अपनी सेवा प्रारंभ की। इनके द्वारा नम्रता, श्रद्धा भावना के साथ की जा रही सेवाओं को ध्यान में रखते हुए गुरुद्वारा सचखंड बोर्ड ने रागी भाई सुखदेव सिंह जी के नांदेड़ से चले जाने के पश्चात उन्हें ग्रंथी सिंह के रूप में सेवा प्रदान की।

समय चलते बाबा जी ने धार्मिक क्षेत्र में विविध धार्मिक ग्रंथों की शिक्षा हासिल करते हुए ‘श्री सूरज प्रकाश ग्रंथ’ की कथा भी की। उनकी इन्हीं सेवाओं को ध्यान में रखते हुए गुरुद्वारा सचखंड बोर्ड द्वारा ‘संत बाबा हजुरा सिंह जी’ जत्थेदार जी के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें मनोनीत किया गया। बाबा जी अपनी सेवा निभाते रहे। इसके पश्चात हेड ग्रंथी भाई साहिब भाई जोगिंदर सिंह जी के अकाल चलाना (वैकुंठ गमन) के पश्चात बाबा जी ने हेड ग्रंथी पद की सेवा भी निभाई। साथ ही पंज प्यारे साहिबान की जो अलग–अलग सेवाएँ होती है उसे भी श्रद्धा से निभाया।

संत बाबा हजुरा सिंह जी के गुरु पुरी सिधारने के पश्चात जत्थेदार जी (मुख्य पुजारी) के रूप में संत बाबा कुलवंत सिंह जी ने ता.12 जनवरी सन् 2000 ई. को सिंहासन स्थान की सेवा प्रारंभ की जो कि वर्तमान समय तक निरंतर इस महान सेवा में समर्पित होकर श्रद्धा भावना के साथ अपना जीवन अर्पित कर रहें है।

बाबा जी ने जत्थेदार साहिब की सेवा प्रारंभ करते ही पुरातन मर्यादा अनुसार प्रकाशमान किये जा रहे ‘श्री दशम ग्रंथ साहिब जी’ के स्वरूप न मिलने के कारण और दशमेश पिता जी की वाणी को संसार में प्रचार एवं प्रसार करने हेतु दशमेश पिता साहिब ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ महाराज द्वारा रचित “श्री दशम ग्रंथ साहिब जी’ नामक इस ग्रंथ को तख़्त सचखंड साहिब की ओर से प्रकाशित करने हेतु निर्णय लिया एवं इस कार्य में बाबा जी स्वयं अपने शिष्यों सहित “श्री दशम ग्रंथ साहिब” जी के प्रकाशन कार्य में हिस्सा लेते रहें।

तख़्त साहिब के महान तपस्वी संत रूप, सत्कार योग्य जत्थेदार सिंह साहिब ‘बाबा कुलवंत सिंह जी’ का जीवन पुरी श्रद्धा के साथ ‘गुरु पंथ खालसा’ की सेवा में पिछले 20 वर्षों से समर्पित कर आपने 21 वें वर्ष में पदार्पण किया है। ऐसी अखंड सेवा को हम नमन कर कोटी–कोटी प्रणाम करते हुए गुरु चरणों में अरदास करते है कि सतगुरु जी इन्हें इसी तरह निरंतर सेवा करने का बल, उद्यम प्रदान करें। हम भी अपने–आप को मानते है कि, तख़्त सचखंड श्री हजुर साहिब के महान संतों की लड़ी में सन्मान योग्य 108 संत ‘बाबा जोगिंदर सिंह मोनी साहिब जी’, सन्मान योग्य ‘संत बाबा हजुरा सिंह जी धूपिया’ और महान तपस्वी ‘संत बाबा कुलवंत सिंह जी’ द्वारा गुरु साहिब के सिंहासन साहिब की सेवा करते हुए हमें देखने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है, ऐसे ‘गुरु पंथ खालसा’ के महान संतो की चरणों में हम सभी सेवादार नमन करते है।

सत्कार योग्य संत बाबा कुलवंत सिंह जी को इस अखंड सेवा के लिए हम अपनी और से हार्दिक बधाई देते हुए भावी सेवा के लिए स्वस्तिकामनाएं प्रेषित करते हुए उनकी सेहत में जल्द से जल्द सुधार हो और वे तंदुरुस्त होकर पुन, ‘सतगुरु दशमेश पिता जी’ के सिंहासन स्थान तख़्त सचखंड साहिब की सेवा में पुनः अपना जीवन समर्पित करें।

गुरु चरणों में यह अरदास (प्रार्थना) करते हुए बाबा जी की अच्छी सेहत की कामना करते है।

‘गुरु पंथ खालसा’ का निमाणा सेवादार–

✍️ स.शरण सिंह सोढी

सुखमणी कॉम्प्लेक्स,

गुरुद्वारा गेट नं.1, नांदेड

मोबाइल, 9765755973

(प्रकाशन-सहयोग व पुनर्लेखन , डाॅ. रणजीत सिंह अरोरा ‘अर्श’ पुणे)।

000

दीपावली शुभ चिंतन

KHOJ VICHAR YOUTUBE CHANNEL


Spread the love
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments