भावभीनी श्रद्धांजलि-
(“टर्बन्ड टॉरनेडो” बापू फ़ौजा सिंह जी को सादर समर्पित)
जब आज 15 जुलाई सन 2025 ई. को सोशल मीडिया के माध्यम से यह अत्यंत दुखद समाचार प्राप्त हुआ कि इस सदी के महान धावक, गुरु पंथ खालसा के निस्वार्थ सेवादार, दृढ़ संकल्प और अटल आस्था के प्रतीक बापू फ़ौजा सिंह जी अब इस नश्वर संसार से विदा ले चुके हैं, तो मन गहरे शोक और वैराग्य से भर उठा। जैसे किसी प्रकाश स्तंभ का दीपक बुझ गया हो, जैसे आशीर्वाद की छांव देने वाला कोई बरगद अचानक छूट गया हो। यह केवल एक महान धावक के निधन का समाचार नहीं था, अपितु एक जीवंत प्रेरणा, एक युगधर्मा संत-सिपाही के ध्वजवाहक के चिर वियोग की पीड़ा थी।
बापू फ़ौजा सिंह जी से मेरा आत्मिक जुड़ाव पंजाब यात्राओं के दौरान अक्सर होता था। विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक और गुरमत विचार मंचों पर हमारी टीम “खोज-विचार” जब भी पहुंचती, वहां बापू जी का स्नेहिल, मृदुभाषी और हर्षवर्धन स्वागत मन को छू जाता। उनकी उपस्थिति मात्र से कार्यक्रमों में ऊर्जा का संचार हो जाता था। ठेठ पंजाबी में सुनाए जाने वाले उनके जीवन के प्रेरक किस्से, हास्य और व्यंग्य से सजी हुई रोचक शैली में प्रस्तुत होते, और हर सुनने वाला आत्ममुग्ध हो जाता।
सबसे अद्भुत तथ्य यह था कि अत्यंत वयोवृद्ध होने के बावजूद बापू फ़ौजा सिंह जी 200 से 250 किलोमीटर तक की यात्रा स्वयं वाहन चलाकर किया करते थे। उनके चेहरे पर कभी थकान की रेखा नहीं होती। वह एक चलता-फिरता अनुशासन, समर्पण और आत्मबल का प्रतीक थे। उनकी शारीरिक तंदुरुस्ती, मानसिक प्रखरता और आत्मिक ऊर्जस्विता हर उम्र के व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत थी।
बापू जी का हमारी टीम “खोज-विचार” के प्रति विशेष स्नेह और आत्मीय लगाव था। वह हमें केवल आशीर्वाद ही नहीं देते थे, अपितु हमारे विचारों को दिशा देने वाले एक मार्गदर्शक भी थे। किसी सच्चे बुजुर्ग की भांति वे हमारी बातों को ध्यान से सुनते और यथायोग्य परामर्श देते। उनके शब्दों में अनुभव की गहराई और आत्मा की सच्चाई झलकती थी।
आज जब वे अकाल पुरख के चरणों में विलीन हो गए हैं, तो यह केवल पार्थिव देह का अंत नहीं, बल्कि एक युगीन चेतना की विदाई है।
टीम खोज-विचार की ओर से हम बापू फ़ौजा सिंह जी को सादर नमन, अश्रुपूरित श्रद्धांजलि और हृदय की गहराइयों से प्रणाम अर्पित करते हैं।
हम सभी की अरदास है-
“हे अकाल पुरख वाहिगुरु जी!
अपने इस प्यारे सपूत को, जिसने जीवन भर तेरा नाम जपते हुए सेवा और संयम का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया, उसे अपने चरणों में स्थान प्रदान कर।
उन्हें सचखंड का वासी बना, और हमें उनके जैसी सेवा, श्रद्धा और संकल्प की प्रेरणा निरंतर प्रदान करते रहना।”
बापू जी, आप हमारे विचारों में, हमारी स्मृतियों में और हमारी प्रेरणाओं में सदैव जीवित रहेंगे।
वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतेह!
जीवन परिचय-
जन्म: 1 अप्रैल 1911, ब्यास , जालंधर (तब ब्रिटिश भारत)
परिवार: खेती-बाड़ी करने वाले परिवार में जन्मे, पाँच वर्ष की आयु तक, आप जी को चलने में भी कठिनाई होती थी
दौड़ना और प्रेरक शुरुआत
सन 1992 ई. में इंग्लैंड जब तक आए, पत्नी और सबसे छोटे बेटे के निधन के पश्चात सन 1994 ई. में उन्होंने 89 वर्ष की आयु में नियमित दौड़ना शुरू किया, दौड़कर अपने मानसिक दर्द को मात देने का लक्ष्य था, और 2000 में पहली बार लंदन मैराथन (6 घंटे 54 मिनट) पूरी की
विशिष्ट रिकॉर्ड और मैराथन
सन 2003 ई. में टोरंटो वाटरफ्रंट मैराथन में 90+ श्रेणी में 5 घंटे 40 मिनट में दौड़ पूरी की, यह उनकी व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ सफलता थी| सन 2011 ई. में Toronto Waterfront Marathon में 100 वर्ष की आयु में पूर्ण मैराथन पूरी कर शतायु धावक बने और उसी साल Ontario Masters में एक ही दिन में 100 मीटर से 5000 मीटर तक आठ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए|
सम्मान और प्रतिष्ठा
सन 2004 ई. में एडिडास के “Impossible is Nothing” अभियान का चेहरा, जहाँ वह डेविड बेकहम और मोहम्मद अली के साथ दिखे और सन 2012 ई. में लंदन ओलंपिक में मशाल वाहक बने| ब्रिटिश सरकार द्वारा बर्क माउंट स्टेडियम में आयोजित Ontario Masters मास्टर मीट में सीनियर रिकॉर्ड बनाए
जीवन शैली और दर्शन
दृढ़ व्यक्तित्व, सात्विक जीवन (शाकाहारी, न मादक पदार्थ), मानसिक शांति और दिन में 4 घंटे तक दौड़ते थे, अक्सर दौड़ते समय “रब से बातें” करते हुए प्रेरणा लेते थे
अंतिम दिनों और निधन
14 जुलाई सन 2025 ई. को पंजाब के ब्यास शहर में सड़क पार करते समय एक वाहन की टक्कर से दुखद निधन, उम्र: 114 वर्ष!
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और विश्व के कई सम्मानित व्यक्तियों ने उनकी प्रेरणादायक छवि को सादर नमन कर श्रद्धांजलि अर्पित की|
प्रेरणास्पद संदेश
फौजा सिंह का जीवन इस महान सत्य को सिद्ध करता है कि “उम्र केवल एक संख्या है।” उन्होंने यह प्रमाणित किया कि चाहे शारीरिक या मानसिक सीमाएं हों, उन्हें पार करने की शक्ति किसी भी उम्र में अर्जित की जा सकती है। जीवन में कभी भी शुरुआत करने में देर नहीं होती, इसका सबसे प्रेरक उदाहरण स्वयं फौजा सिंह हैं, जिन्होंने 89 वर्ष की आयु में दौड़ना शुरू किया और 100+ की उम्र में विश्व की सीमाओं को लांघते हुए इतिहास रच डाला। उनके साहस, अनुशासन, और दौड़ के प्रति समर्पण ने दुनिया को दिखाया कि इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास से उम्र को मात दी जा सकती है।



