‘गुरु पंथ खालसा’ में सिख शहीदों की एक लंबी फेहरिस्त है। जुल्म के खिलाफ लगातार लड़ते हुए श्री गुरु नानक देव साहिब जी के सिखों ने लगातार शहिदीयों को प्राप्त किया है। भाई तारु पोपट ऐसे ही एक युवक सिख सेवादार की सेवा करते हुए प्राप्त की गई शहादत की अनोखी दास्तान है, भाई तारु पोपट की|
मुगल आक्रांता बाबर ने लगातार हिंदुस्तान पर आक्रमण कर हिंदुस्तान को लताड़ा, मारा और जलाया था। बाबर द्वारा हिंदुस्तान के सांस्कृतिक मूल्यों का लगातार हनन किया गया था। किसी भी हिंदुस्तानी ने इस जुल्मी आक्रांता के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई थी। इस पूरे भारतवर्ष में उस समय श्री गुरु नानक देव साहिब जी ने बाबर को जाबर कहकर लानत दी थी। बाबर के जुल्मों की इंतहा थी। उसके द्वारा पूरे लाहौर शहर में आग लगा दी गई थी।
जब लाहौर शहर में अग्नि का तांडव अपनी चरम सीमा पर था तो उस समय युवावस्था की दहलीज पर खड़ा श्री गुरु नानक देव साहिब जी का एक नौजवान सिख भाई तारु पोपट जी ने स्वयं अपने हाथों से इस ज्वलंत आग को बुझाने का प्रयास किया था। कई इतिहासकारों ने तारु और पोपट ऐसे दो नामों को भी अंकित किया है। भाई तारु पोपट जी चढ़ती हुई उम्र का नौजवान सिख था। उस समय इस नौजवान ने बाल्टी नुमा बर्तन में पानी भरकर जलते हुए लोगों के घरों को बुझाने का सेवाभावी कार्य प्रारंभ कर दिया था।
मुगल सैनिकों ने इस भाई तारु पोपट से पानी बुझाने के इस बर्तन को छीन लिया था और भाई तारु पोपट पर हमला कर बुरी तरह से घायल करके भगा दिया था। भाग कर भाई तारु पोपट अपने स्वयं के घर पर आ गया था। भाई तारु पोपट ने इस रक्तरंजित अवस्था में भी पुनः पानी की बाल्टी हाथ में ली और आग बुझाने के लिए जब वो पुनः जाने लगा तो भाई तारु पोपट की बहन ने उसकी बांह को पकड़ कर रोक कर कहा भाई आप कहां जा रहे हो? आप बुरी तरह से घायल हो इस रक्तरंजित अवस्था में आप को इलाज की सख्त जरूरत है। इन मुग़ल सैनिकों ने तुम्हें बुरी तरह से मार कर घायल किया है। इस अवस्था में तुम कहीं नहीं जा सकते हो।
भाई तारु पोपट ने जिद करके कहा कि मेरी बहन में पुनः आग बुझाने जा रहा हूं। भाई तारु पोपट की बहन ने कहा था कि भाई अब यदि तुम पुनः आग बुझाने गए तो यह जालिम मुगल सैनिक तुम्हें मार देंगे।
उस समय भाई तारु पोपट ने अपनी बहन को निर्भीकता से जवाब दिया था कि मेरी बहन श्री गुरु नानक देव साहिब जी के सिख मरने से नहीं डरते हैं। मैं भी उन्हीं का गुरु सिख हूँ मैं यह सहन नहीं कर सकता हूं कि गुरु के सिख के सम्मुख कोई कैसे किसी का घर जला सकता है? मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता हूं।
उस समय भाई तारु पोपट पानी की बाल्टी भर के आग बुझाने के लिए चला गया था और जाते-जाते अपनी बहन को कह कर गया था कि मेरी बहन यदि मैं जीवित नहीं रहता हूं तो एक बात हमेशा ध्यान में रखना कि–
जे जीवै पति लथी जाइ॥
सभु हरामु जेता किछु खाइ॥ (अंग क्रमांक 142)
अर्थात यदि तुम्हारे सामने कोई जुल्म कर सामने वाले की इज्जत-आबरू को उतार रहा हो तो ऐसे समय में तुम चैन से कैसे रह सकते हो? तुम चैन से कैसे रोटी खा सकते हो?
भाई तारु पोपट कह कर गया था कि हो सकता है की इस सेवा को निभाते हुए मैं शहीद हो जाओ! जब भाई तारु पोपट पुनः आग बुझाने गया तो जालिम सरकार के नुमाइंदों ने इसे शहीद कर दिया था।
यह एक बात याद रखने वाली है कि जब तारु पोपट पुनः आग बुझाने के लिए जा रहा था तो उसकी बहन ने प्रश्न किया था कि भाई इस सेवा को निभाते हुए मारे गए तो तुम्हें क्या मिलेगा? उस समय भाई तारु पोपट ने उत्तर दिया था कि बहन मेरी मैं श्री गुरु नानक देव साहिब जी का सिख हूँ, एक बात हमेशा याद रखना–
जिस दिन दरगाह में (अकाल पुरख के सम्मुख) जब लेखा मांगा जाएगा तो उस दिन दो सूचियां अंकित होगी–
एक आग लगाने वालों की सूची होगी और दूसरी आग बुझाने वालों की।
जब कोई श्री गुरु नानक देव साहिब जी का सिक्ख होये तो निश्चित ही उसका नाम आग लगाने वालों की सूची में नहीं होगा। अपितु उसका नाम आग बुझाने वालों की सूची में होगा।
श्री गुरु नानक देव साहिब जी के इस युवा सिख भाई तारु पोपट का जिक्र भाई गुरदास जी रचित वारां में भी अंकित है-
भाई तारु पोपट सिख सधाया॥
अर्थात सिख इतिहास में भी भाई पोपट तारु जी का जिक्र किया गया है परंतु अफसोस है कि आज हम ऐसे शूरवीर, सुरमा योद्धाओं के इतिहास को अपनी युवा पीढ़ी तक नहीं पहुंचा पा रहे है।
ऐसी अनोखी है! ‘गुरु पंथ खालसा’ के सिक्ख धर्म के प्रथम शहीद युवा बच्चे के शहादत की दास्तान।
भाई तारु पोपट जी की शहादत ‘गुरु पंथ खालसा’ के सिख शहीदों की गौरवमयी गाथाओं में से एक है। श्री गुरु नानक देव जी के सिखों ने हमेशा से अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई है और अपने धर्म, सेवा और मानवता के लिए प्राणों की आहुति दी है। भाई तारु पोपट जी की कथा इसी शहादत की अनूठी मिसाल है, जो सेवा और बलिदान का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करती है।
जब मुगल आक्रांता बाबर ने हिंदुस्तान पर अत्याचार करते हुए लाहौर शहर को आग के हवाले कर दिया, तब उस विनाशकारी माहौल में युवा भाई तारु पोपट जी ने आग बुझाने का साहसिक कार्य अपने हाथों में लिया। उन्होंने पानी की बाल्टी उठाकर जलते हुए घरों को बुझाने का प्रयास किया। यह निस्वार्थ सेवा और अदम्य साहस का प्रतीक था, जो सिख धर्म के मूल सिद्धांतों का अनुसरण करता था।
मुगल सैनिकों ने उन्हें रोका, उनकी बाल्टी छीन ली और उन पर हमला कर बुरी तरह घायल कर दिया। घायल अवस्था में भी, भाई तारु पोपट जी रुके नहीं। जब वे वापस आग बुझाने जाने लगे, तो उनकी बहन ने उन्हें रोका और कहा, “भाई, तुम बुरी तरह से घायल हो। इस हालत में जाने पर वे तुम्हें मार डालेंगे।”
इस पर भाई तारु पोपट जी ने निर्भीकता से उत्तर दिया, “मैं श्री गुरु नानक देव जी का सिख हूँ। गुरु के सिख अन्याय के सामने चुप नहीं बैठते। मेरे सामने किसी का घर जल रहा हो और मैं कुछ न करूं, यह संभव नहीं है। अगर मुझे शहीद होना भी पड़े, तो यह मेरी सेवा का हिस्सा होगा।”
भाई तारु पोपट जी ने अपनी बहन से कहा, “जब अकाल पुरख के सम्मुख लेखा लिया जाएगा, तो दो सूचियां होंगी—एक आग लगाने वालों की और दूसरी आग बुझाने वालों की। गुरु नानक देव जी के सिख का नाम हमेशा आग बुझाने वालों में लिखा जाएगा।”
यह कहकर भाई तारु पोपट जी पुनः जलती आग को बुझाने के लिए चले गए और अंततः मुगल सैनिकों द्वारा शहीद कर दिए गए। उनकी शहादत को भाई गुरदास जी ने अपनी वारों में अंकित किया है—
“भाई तारु पोपट सिख सधाया।”
भाई तारु पोपट जी की यह शहादत हमें याद दिलाती है कि सिख धर्म का हर सिख अन्याय के खिलाफ खड़ा
होता है और सेवा के प्रति समर्पित रहता है। उनके जीवन की यह महान घटना आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी वीर गाथाएं हमेशा सजीव रहें, ताकि हमारा युवा
अपनी महान विरासत से जुड़े रहें और उससे प्रेरणा ले सकें।