बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी: श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी

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ੴ सतिगुर प्रसादि॥

चलते-चलते. . .

(टीम खोज-विचार की पहेल)

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी: श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी

‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की दसवीं ज्योत, ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ निश्चित ही इस संसार में एक ऐसे आदर्श महापुरुष थे जिस की संकल्पना ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने की थी। आप जी का जीवन निश्चित ही एक महाबली योद्धा और सर्वगुण संपन्न महापुरुष की मूरत को साकार करता है। आप जी के हरफनमौला व्यक्तित्व ने साबित कर दिया था कि वह एक राजा भी है और एक योगी भी हैं। आप जी मीरी-पीरी के दाता और संत-सिपाही थे, गृहस्थ आश्रम में रहते हुए भी आप जी बहुपक्षीय शख्सियतों के गुणों का खजाना थे। केवल 42 वर्ष की छोटी सी आयु में उनकी शख्सियतों के समस्त गुण झलकते है, निश्चित ही आसमान में चमकती हुई बिजली की आयु लंबी तो नहीं होती है परंतु जितनी भी होती है उसमें एक कणखर चमक और कर्कश आवाज होती है, जो सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित करती है। ऐसे सर्वगुण संपन्न शख्सियतों के मालिक, गुरु पातशाह जी का इस संसार में दूसरा कोई सानी नहीं है, आप जी को अनेक भाषाओं में महारत हासिल थी।

आप जी साहित्य के रसिक, काव्य मर्मज्ञ और कवियों के क़द्रदान थे, आप जी ने उस तात्कालिक समय के सभी श्रेष्ठ साहित्यकारों और कवियों को अपने गुरु दरबार में योग्य स्थान प्रदान किया था। मृदभाषी गुरु पातशाह जी का मधुर और सुरीली आवाज में कीर्तन करना निश्चित ही उनका एक विशेष गुण था। आप जी को ताऊस नामक साज बजाने में विशेष महारत हासिल थी। क़लम पकड़कर विलक्षण साहित्य की रचना करना और तंती साजों के साथ कीर्तन करने वाले उनके हाथ जब मैदान-ए-ग़िरफ्तार में शस्त्रों को धारण कर, अपने सर्वोत्तम योद्धा होने का परिचय देते थे तो शत्रु सेनाओं में हाहाकार मच जाता था। आप जी तलवार (कृपाण) के धनी थे और एक उत्तम धुरंधर तीरंदाज भी थे, इतिहास गवाह कि आप जी के तीरंदाजी के कौशल्य ने चमकौर के युद्ध में बहुसंख्या में शत्रुओं को जीवन मुक्त कर चमकौर की गढ़ी के समीप आने नहीं दिया था। ठीक उसी तरह मुक्तसर के युद्ध के मैदान में आप जी ने तीरंदाजी कर मैदान-ए-ग़िरफ्तार में गुरु सिख सैनिकों की महत्वपूर्ण मदद की थी और युद्ध का पासा पलट कर आप जी ने स्वयं के एक निपुण तीरंदाज होने का परिचय दिया था।

आप जी का विलक्षण शस्त्र नागिनी (बरछा) भाला (जो वर्तमान समय में ‘श्री आनंदपुर साहिब जी’ में सजा कर रखा गया है) से अंदाज होता है कि आप जी उस समय में सर्वोत्तम भाला फेंकने की कला में और बनाने की कला में माहिर थे। इससे सिद्ध होता है कि उस समय में उपलब्ध सभी शस्त्रों को एक सफल योद्धा के रूप में चलाने में आप जी प्रवीण योद्धा थे तो वहीं आप जी एक उत्तम घुड़सवार भी थे, आप जी को नीले घोड़े का शाह सवार कहकर भी संबोधित किया जाता है।

मैदान-ए-ग़िरफ्तार में आप जी की युद्ध कला को देखते हुए उन्हें उपमा दी जा सकती कि, आप जी एक निपुण योद्धा व रणनीतिकार भी थे और आप जी के द्वारा उसारे (भव्य निर्माण) किए गये क़िले और मुठभर सैनिकों के साथ, अत्यंत कठिन परिस्थितियों में लड़े गए विजयी युद्ध इस बात का सबूत है कि आप भी उच्च कोटि के ग़िरफ्तारी जरनैल (सेनापति) थे और ग़िरफ्तार-ए-मैदान में आप जी ने सर्वोत्तम नेतृत्व प्रदान किया था। आप जी की छोटी उम्र में हुए भंगानी के युद्ध में पांच सौ में से चार सौ पठान धोखा देकर शत्रु सेना से मिल गए थे और उदासियों ने भी साथ छोड़ दिया था, ऐसी कठिन और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद इस युद्ध को फतेह करना निश्चित ही उनके एक महान जरनैल (सेनापति) होने की शख्सियत को चार-चांद लगाता है। इसी तरह से ‘श्री आनंदपुर साहिब जी’ के अंतिम युद्ध के समय जब क़िले पर 7 महीने तक शत्रु सेना ने घेरा डाल कर रखा था और इस युद्ध के कारण भूख से, बीमारियों से, हजारों सिख सैनिक शहीद हो गये थे तो उस तात्कालिक और कठिन समय में आप जी के द्वारा शत्रु सेना के लगातार हमलों को सहन करके भी जिस धैर्य से शत्रु सेना को ज़बरजस्तदस्त टक्कर दी थी, यह इतिहास अपने आप में ही दर्शाता है कि गुरु पातशाह जी की शख्सियत की बुलंदी निश्चित ही महान जरनैलों (सेनापतियों) में से एक थी।

चमकौर का युद्ध जिसकी गिनती विश्व के बेमिसाल युद्धों में से एक के रूप में होती है, उस समय में गुरु पातशाह जी ने अपने दो साहिबज़ादे और 40 सिख सैनिकों के साथ मिलकर लाखों में आई शत्रु सेना से सीधा, डटकर मुकाबला किया था और कच्ची गढ़ी में मोर्चा बंद होकर छोटे-छोटे और अलग-अलग दल बनाकर, शत्रु सेना से घमासान युद्ध कर पूर्ण दिवस शत्रु सेना को गढ़ी के समीप नहीं आने दिया था और गुरु पातशाह जी अपनी राजनीति में कामयाब होकर चमकौर की गढ़ी से सुरक्षित चले गए थे। शेष सिख शहीद हो गये, परिवार बिछड़ गया, अपना सब कुछ गंवा कर भी औरंगज़ेब को अपनी बुलंद क़लम से विजय पत्र (ज़फ़रनामा) लिखा था और तलवंडी साबो की नामक स्थान पर पहुंचकर, अपनी सिख संगत को एकजुट कर, खालसे को तैयार-बर-तैयार कर, गुरु पातशाह जी ने पुनः संगठित किया था। दुनिया में कोई विरला ही ऐसा महान, बेपनाह हौंसले वाला, ग़िरफ्तारी जरनैल (सेनापति) हो सकता है।

गुरु पातशाह जी की शख्सियत को यदि एक घर-गृहस्थी वाले व्यक्तित्व के नजरिये से, उनके सांसारिक जीवन के पक्ष को देखें तो गुरु पातशाह जी का जीवन कुर्बानी की इंतेहा है, केवल 9 वर्ष की आयु में एक ऐसे पुत्र और भविष्य के गुरु के दर्शन होते हैं जो श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की सोच और आस्था पर आप जी का जीवन खरा उतरा था। यदि एक गुरु पिता की सोच के मुताबिक आप की शख्सियत को देखें तो स्पष्ट होता है कि आप जी एक ऐसे आदर्श पिता थे जिन्होंने अपने साहिबज़ादों को सिखी सिद्क में ऐसा परिपक्व किया था कि जीवन के सबसे कठिन हालात में भी साहिबज़ादे डगमगाए नहीं और बहादुरी एवं निडरता की मिसाल कायम कर, हंसते-हंसते शहीदी के जाम पी गये थे। साहिबज़ादों की शहीदी के पश्चात उस प्रभु-परमेश्वर की अमानत अदा होने का शुकराना करना कर कहना

‘इन पुतरन के सिस पर वार दिये सुत चार।

चार मुयें तो क्या हुआ? जीवित कई हजार॥

अपने सरबंस को शहीद करवा कर उस अकाल पुरख (प्रभु-परमेश्वर) को संबोधित कर कहना–

“कमाले करामात कयाम करिम, रजा बक्श राजक रहियाकुन रहीम”।

दशमेश पिता श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी ने ‘होला मोहल्ला’ के पर्व का प्रारंभ सन् 1700 ईस्वी. में श्री आनंदपुर साहिब जी में किया था। दशम पिता श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी ने इस पर्व में भक्ति के साथ शक्ति को जोड़कर एक अद्भुत मिसाल कायम की है। ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के अनुयायी इस पर्व को होली के दूसरे दिवस ‘होला महल्ला’ के रूप में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाते हैं। इस पर्व के माध्यम से श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी ने देश में एक बहुत बड़े परिवर्तन का आगाज किया था। उस समय में शत्रु सेना के हाथ में जो तलवार थी वह अहम् का प्रतीक थी परंतु श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी ने अपने सिखों को तलवार नहीं अपितु कृपाण प्रदान करी, जो किसी का हक नहीं मारती थी अपितु हक दिलाती थी। निश्चित ही श्रद्धा, सिमरन और बंदगी से मिली हुई कृपा है कृपाण! गुरु की बख्शीश का प्रतीक है कृपाण! इस रंगों के पर्व के माध्यम से गुरु पातशाह जी ने संदेश दिया कि, मैं जो रंग तुम्हें दे रहा हूं वह अध्यात्म का रंग है, इस रंग को कभी भी उतारने की आवश्यकता नहीं है।

इस ‘होला महल्ला’ पर्व के माध्यम से गुरु पातशाह जी ने समाज के चारों वर्णों को जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए शस्त्र धारी बनाकर, अपनी सामाजिक समरसता के सिद्धांत को बल दिया था। गुरु पातशाह जी ने इन शस्त्रधारी सिखों को शास्त्र का आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर खालसे को विराट और विशाल रूप प्रदान किया इसलिए तो इस फ़ौज को ‘गुरु की लाडली फ़ौज’ कहकर भी सम्मानित किया गया है। निश्चित ही गुरु जी ने एक नील वस्त्रधारी मार्शल कौम को देश और धर्म की रक्षा के लिए जन्म दिया था जो कि जुल्मों के खिलाफ लगातार संघर्ष करती रही है।

गुरु पातशाह जी का गृहस्थ और उदासी के संसार में निरपेक्ष होकर, परिस्थितियों के अनुकूल आप जी की शख्सियत को सर्व वंश दानी के रूप में दुनिया के समक्ष लेकर आती है। गुरु पातशाह जी की शख्सियत के सामने बड़े-बड़े त्यागी और तपस्वी बौने दिखलाई पड़ते हैं। यदि सामाजिक समरसता के दृष्टिकोण से गुरु पातशाह जी की शख्सियत को देखें तो, जो लोग समाज में अछूत और नीची जाति के माने जाते थे, जिनका सदियों से शोषण होता रहा था, ऐसे गरीब और दुर्लक्षित लोगों को आप जी ने समाज में बराबरी का दर्जा ही नहीं दिया अपितु ऐसे लोगों पर विश्वास रखकर उन्हें समाज में बेहतरीन नेतृत्व के रूप में स्थापित कर, गुरमत मर्यादाओं के अनुसार उन्हें आदर्श जीवन जांच का धारिणी और आचरण का पक्का एवं शूरवीर योद्धा बनाकर समाज में ऐसी क्रांति लायी की, जिसकी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलती है। आप जी ने ऐसे विशुद्ध आचरण के संत-सिपाही तैयार किये, जिन्होंने युद्ध के मैदान में शत्रु सेना को बुरी तरह से पराजित ही नहीं किया अपितु बहन-बेटियों की इज्जत की रक्षा कर उन्हें जालिमों के चंगुल से छुड़ाकर, इज्जत से उन्हें उनके घरों में पहुंचाया था। (इस स्त्री धन को शत्रु सेना लूट का माल समझ कर आपस में बांट देती थी), इन संत-सिपाहियों ने ही बाहर से आये आक्रमणकारियों का समूल नष्ट कर, इस पवित्र धरती पर धर्म का राज स्थापित किया था। ऐसे आदर्श समाज और ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के सिरजनहार, गुरु पातशाह जी के संबंध में दुनिया के अनेक साहित्यकार, कथाकार, कवियों और पंजाब की लोक धाराओं में गुरु पातशाह जी की प्रशंसा में विभिन्न शब्दावली का उपयोग कर, अपने विचार लिखकर, साहिब-ए-कमाल ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के प्रति अपनी श्रद्धा के सुमन अर्पित कर उन्हें प्रणाम किया है। किसी शायर ने क्या खूब लिखा है कि—

जितनी भी तारिफ हो गोविंद की वह कम है।

हरचंद मेरे हाथ में पुरजोर कलम है।

सतगुरु के लिये कहां ताबे रकम है?

एक आंख से क्या बुलबुला गुलमेहर को देखें?

साहिल को या मझधार को या लहर को देखें।

नोट 1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है एवं लेखों में प्रकाशित चित्र काल्पनिक है।

2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।

साभार— लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज-विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।

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गुरु पंथ ख़ालसा सर्जना (बैसाखी) पर्व पर विशेष

KHOJ VICHAR


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