प्रसंग क्रमांक 1:’श्री गुरु रामदास साहिब जी’ से श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब जी तक की जीवन यात्रा
सन् 1534 ई. में सिख धर्म के चौथे ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ का प्रकाश हुआ था। आप जी के माता-पिता जी का स्वर्गवास बचपन में ही हो गया था। बचपन से ही आप जी का पालन–पोषण आप जी की नानी जी ने किया था। छोटी उम्र से ही आप अपना चने बेचने का व्यवसाय करते थे और आप जी हमेशा गुरु घर में सेवा करते थे। सिख धर्म के तीसरे ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ की आप पर मेहर दृष्टि हुई और आप जी की सेवा से प्रभावित होकर ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ ने सन् 1552 ई. में अपनी बेटी का ‘परिणय बंधन’ आप जी से कर दिया था। गृहस्थ जीवन में, जीवन व्यतीत करते हुए आपको तीन पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई थी। आप जी के सबसे बड़े पुत्र पृथ्वी चंद जी थे। मंझले पुत्र का नाम महादेव जी और सबसे छोटे सिख धर्म के पांचवें ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ का प्रकाश 15 अप्रैल सन् 1563 ई. को ‘गोइंदवाल साहिब’ की पवित्र धरती पर हुआ था। पांचवें ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के नाना जी ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ जो कि सिख धर्म के तीसरे गुरु थे, वो आप जी को ‘दोहिता बाणी का बोहिथा’ कहकर भी संबोधित करते थे। अर्थात् मेरा दोहता गुरुवाणी का ज्ञाता होगा।
समय-चक्र के चलते हुए ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ की आज्ञा अनुसार चक रामदास पुर नामक स्थान की नींव रखी गई थी।
सन् 1573 में ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ इस स्थान पर निवास करने लगे थे। (उस समय तक गुरु जी को गुरु गद्दी प्राप्त नहीं हुई थी)। एक वर्ष पश्चात ही ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ ने ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ को सन् 1574 ई. में गुरु गद्दी पर विराजमान कर दिया था।
सन् 1577 ई. से चक रामदास पुर नामक इस स्थान पर भव्य नगर का निर्माण प्रारंभ किया गया था। जिस स्थान पर ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ निवास करते थे, उस स्थान पर एक भव्य भवन का निर्माण किया गया था। जिसे ‘गुरु के महल’ के नाम से संबोधित किया गया था। (यह वो ही प्रसिद्ध ‘गुरु का महल’ है जहां पर सिख धर्म के नौवें ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का प्रकाश भविष्य में होगा)। ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ के स्वर्गवास (अकाल चलाना) के उपरांत ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ अपने तीनों पुत्रों के सहित इस ‘गुरु के महल’ में निवास करते थे। उस समय श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी अपनी बाल्यावस्था में थे और उनकी आयु केवल 11 वर्ष की थी। उसी स्थान से ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ अपनी सभी सेवाओं को संचालित करते थे। इसी स्थान से ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ की बारात भी निकली थी और अपने ‘परिणय बंधन’ के पश्चात अपनी धर्म पत्नी माता गंगा जी को इसी स्थान पर निवास के लिए लेकर आए थे।
सन् 1581 ई. को ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ को पांचवे गुरु के रूप में गुरु गद्दी पर विराजमान किया गया था। कुछ समय पश्चात ‘श्री गुरु राम दास साहिब जी’ का गोइंदवाल साहिब की पवित्र धरती पर स्वर्गवास (अकाल चलाना) हो गया था। इस ‘गुरु के महल’ निवास स्थान पर रहते हुए ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने एक दर्शनी ड्योढ़ी (भव्य द्वार) भी बनवायी थी। यह ‘हरमंदिर साहिब दरबार साहिब’ का मुख्य दरवाजा था।
यह मुख्य दरवाजा आज माई सेवा बाजार में स्थित है। इस मार्ग से अब हरमंदिर साहिब में प्रवेश नहीं करते हैं। यह पुरातन मार्ग था; इसी मार्ग से ‘श्री गुरु अमर दास साहिब जी’, गुरु के महल से ‘दर्शनी ड्योढ़ी’ से होते हुए दरबार साहिब में प्रवेश करते थे।
वर्तमान समय में भीडा़ बाजार में ही ‘दर्शनी ड्योढ़ी’ स्थित है और इस स्थान पर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश भी किया गया है। इस स्थान को ‘गुरुद्वारा दर्शनी ड्योढ़ी’ के नाम से संबोधित किया जाता है।
‘गुरु के महल’ निवास स्थान पर रहते हुए ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने अपने बड़े भाई पृथ्वी चंद से पारिवारिक कलह होने के कारण अपने परिवार को कुछ समय के लिये ‘गुरु की वडा़ली’ नामक स्थान पर स्थानांतरित किया था।
सन् 1595 ई. में सिख धर्म के छठे गुरु ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ का प्रकाश हुआ था। तत्पश्चात ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ अपने परिवार सहित ‘गुरु के महल’ में निवास के लिए पुनः पधार गये थे। कुछ समय पश्चात ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ ने ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ को अपने पुश्तैनी घर ‘गुरु के महल’ में ही उनका भी निवास हमेशा के लिये बना दिया था। इसी स्थान पर ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने बाल्यावस्था से युवावस्था में प्रवेश किया था।