‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने जब ग्राम ‘नंदपुर कलोड़’ में निवास किया था और स्थानीय संगत को एकजुट कर इस स्थान पर पर्यावरण को समतौल रखने हेतु बहुत बड़े पैमाने पर ग्राम के निकट चारों और उथली मिट्टी की भराई करवा कर पेड़ों को रोपण कर घने जंगलों का निर्माण किया था। कारण इस कृत्रिम जंगल के निर्माण से इस ग्राम में पुनः बाढ़ के कारण पानी प्रवेश न कर सके। इस ग्राम के निकट ही ग्राम रैलों के स्थानीय निवासियों ने गुरु जी के समक्ष उपस्थित होकर निवेदन कर कहा कि गुरु जी आप अपने चरण-चिन्हों के स्पर्श से हमारे ग्राम की भूमि को भी पवित्र कर सभी संगत को प्रभु-परमेश्वर की नाम-बाणी से जोड़ने की कृपा करें।
गुरु जी ग्राम रैलों की संगत के निवेदन पर निकट के ग्राम रैलों में पहुंच गए थे। ग्राम रैलों के बाहर ही गुरु जी ने अपने निवास की व्यवस्था की थी। उस समय इस स्थान पर बरगद का एक विशाल वृक्ष था और स्वच्छ, निर्मल पानी का झरना हुआ करता था। वर्तमान समय में इस स्थान पर कोई वृक्ष उपलब्ध नहीं है। उस समय स्वच्छ, निर्मल पानी के झरने अत्यंत शुद्ध होते थे और इस स्वच्छ पानी के स्रोत का उपयोग समस्त ग्रामवासी पीने के लिए करते थे। इस पानी के झरने के निकट गुरु जी ने अपना निवास स्थान बनाया और संगत को नाम-वानी के द्वारा प्रबोधनकर प्रभु-परमेश्वर से जुड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। स्थानीय निवासी भाई भगतों जी ने गुरु साहिब और संगत की बहुत सेवा की थी। साथ ही आसपास के इलाके में जाकर सिक्खी का प्रचार-प्रसार भी किया था। गुरु जी के दीवान सजना प्रारंभ हो गए थे संगत बहुसंख्या में उपस्थित होना प्रारंभ हो गई थी। उस समय इस नगर में खुजली की बीमारी संक्रमित होकर तेजी से फैल रही थी। गुरु जी ने इस खुजली के रोग से पीड़ित रोगियों का इलाज कर इस रोग से रोगियों को मुक्ति दिलाई थी।
स्थानीय निवासी भाई भगतों जी ने इस स्थान पर धर्मशाला निर्माण के लिए स्वयं की लगभग तीन बीघा भूमि गुरु घर के नाम कर दी थी। इस कारण आसपास की संगत इस धर्मशाला में एकत्र होकर नाम-बानी से जुड़ गई थी और लोक-कल्याण के कार्य प्रारंभ हो चुके थे। इस स्थान पर गुरु के लंगर भी निरंतर चलने लगे थे। गुरु जी स्वयं अनेक छोटे-छोटे ग्रामों में भ्रमण कर स्थानीय संगत को ‘श्री गुरु नानक देव जी’ की सिक्खी और नाम-वाणी से जोड़ते थे। वर्तमान समय में गुरु जी की स्मृति में इस स्थान पर गुरुद्वारा पातशाही नौवीं सुशोभित है।
इस गुरुद्वारा साहिब में गुरु जी के कर-कमलों द्वारा एक हुकुमनामा (पट्टा) के रूप में मौजूद है। इस पट्टे को गुरु जी ने स्वयं स्थानीय ग्राम वासियों के सुपुर्द किया था। इस गुरुद्वारे के पिछले हिस्से में एक छोटा सरोवर बावली के रूप में सुशोभित है। इस स्थान पर संगत उपस्थित होकर, स्नान कर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी से जुड़कर अपनी जीवन यात्रा को सफल कर रही हैं।
ग्राम रैलों से चलकर गुरु जी ग्राम ‘बहेड़’ नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम में भी संगत एकजुट होकर नाम-वाणी से जुड़ गई थी। इस ग्राम की स्थानीय निवासी बीबी सुंदरी जी ने अपने स्वयं की 60 बीघा जमीन धर्मशाला के नाम करवाई थी। इस कारण से इस ग्राम में संगत कायम हो चुकी थी। इस इलाके के आसपास भी गुरु जी ने स्वयं सिक्खी का प्रचार-प्रसार किया था अर्थात जिन स्थानों पर गुरु जी ने स्वयं सिक्खी के बूटे को रोपित किया था, उन सभी स्थानों पर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार तेजी से हुआ था। इस ग्राम ‘बेहड़’ में गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा सुशोभित है और उस समय का एक वृक्ष आज भी अपने स्थान पर खड़ा होकर इस बात की गवाही दे रहा है कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपने चरण-चिन्हों के स्पर्श से इस धरती को पवित्र किया था।
ग्राम ‘बेहड़’ से चलकर गुरु जी ग्राम ‘रैली’ नामक स्थान पर पहुंचे थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर भी गुरु जी की याद में गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। यह स्थान मुस्लिम बहुल होने के कारण पूर्व में इस स्थान पर गुरुद्वारे के निर्माण को लेकर स्थानीय निवासियों के द्वारा विवाद किया गया था। कारण इस गुरुद्वारा साहिब के समीप एक मस्जिद भी मौजूद थी। इस पुरातन मस्जिद के अवशेष आज भी शेष है परंतु गुरु जी की कृपा से सभी समुदायों में एकजुट होने के कारण स्थानीय सभी संगत के सहयोग से इस स्थान पर भव्य गुरद्वारा साहिब जी का निर्माण किया गया है। यह गुरुद्वारा वर्तमान समय में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में सुशोभित है।
इन सभी ऐतिहासिक ग्रामों में पहुंचकर और इतिहास को खोज कर संभालने की आवश्यकता है। इन सभी ग्रामों का उल्लेख पुरातन इतिहास के स्रोतों में प्राप्त हो जाता है परंतु इतिहास की ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं होती है। गुरु पिता जी अपनी कृपा बनाए रखें सफर-ए-पातशाही नौवीं श्रृंखला के अंतर्गत इतिहास की खोज निरंतर जारी है।