‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने नवाब सैफुद्दीन के महल में चौमासा का समय व्यतीत कर अपने गुरु परिवार और साथ में जुड़ी हुई संगत के साथ अपनी भविष्य की यात्रा हेतु चल पड़े थे। सर्वप्रथम गुरु जी बहादुरगढ़ से चलकर ग्राम महमदपुर जट्टां नामक स्थान पर पहुंचे थे। ग्राम महमदपुर जट्टां पर मुख्य रोड के निकट ही गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। इस स्थान से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ग्राम रायपुर स्थित है। इस ग्राम रायपुर में भी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का निवास स्थान सुशोभित है। इस ग्राम का इतिहास में जिक्र जरूर आता है परंतु कुछ विशेष इतिहास उपलब्ध नहीं है। ग्राम के पुराने बुजुर्गों के अनुसार इस ग्राम में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपने सिख, भाई धर्मा नामक सिख के निवास स्थान पर निवास किया था। गुरु जी ने भाई धर्मा जी को नाम-वाणी से जोड़कर सिख सजाया था।
गुरु जी के इस ग्राम से प्रस्थान करने के पश्चात भाई धर्मा जी के परिवार की और से संगत कायम कर संगत को नाम-वाणी से निरंतर जोड़ा गया था। भाई धर्माजी के पश्चात उनके पौत्र अजमेर सिंह ने इस स्थान पर कच्चे मकान की उसारी (निर्माण) कर पक्का मकान गुरु घर के स्थान निर्मित कर दिया था। वर्तमान समय में गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा पातशाही नौवीं सुशोभित है।
ग्राम रायपुर से चलकर गुरु जी ग्राम सील नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्थान पर मुख्य रोड के निकट गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा पातशाही नौवीं सुशोभित है। उस समय इस स्थान पर घना जंगल था जिसे हीस के जंगल से नाम से संबोधित किया जाता था। हीस शब्द संस्कृत भाषा से संबंधित है। इसका अर्थ वह घना जंगल जहां पर शेर, सूअर जैसे खतरनाक वन्य प्राणी एक निश्चित दायरे में झुंडों में निवास करते हों। इस स्थान पर वृक्षों की छाया में गुरु जी ने कुछ समय व्यतीत किया और यहां से चलकर ग्राम शेखपुरा नामक स्थान पर पहुंचे थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा कुष्ठ निवारण साहिब जी सुशोभित है। पुरातन समय में इस स्थान पर एक श्मशान घाट हुआ करता था। पश्चात में संत बाबा पूरन दास जी ने इस स्थान को प्रकट कर इस स्थान की सेवा-संभाल की थी। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य गुरुद्वारा कुष्ठ निवारण साहिब जी सुशोभित है। इस स्थान पर संगत दर्शन-दीदार के लिये एकत्रित होती थी एवं नाम-वाणी से जुड़ कर अपना जीवन सफल करती थी।
गुरु जी शेखपुरा से प्रस्थान कर पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम हरपालपुर नामक स्थान पर पहुंचे थे। ग्राम हरपालपुर में स्थित बगीचे में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपने डेरे को स्थापित किया था। इस स्थान पर विराजमान होकर, गुरु जी ने सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया था एवं गुरु सिक्खी का बुटा भी रोपित किया था। इस स्थान पर गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा मंजी साहिब सुशोभित है। इस स्थान पर स्थानीय निवासी माता श्यामो जी ने अपने पुरे परिवार के साथ गुरु जी की सेवा की थी। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य गुरद्वारा साहिब सुशोभित है।
इतिहास को दृष्टिक्षेप करें तो इस स्थान के निवासी संत गुरबख्श सिंह जी हरपालपुर वाले जिन्होंने सन् 1943 ई. से पूर्व भिंडरावाले टकसाल से गुरमत विद्या को प्राप्त किया था। संत जी के द्वारा इस स्थान पर गुरमत शिक्षाओं हेतु एक बड़े विद्यालय का निर्माण टकसाल की शाखा के रूप में किया गया था। इस विद्यालय में शिक्षित हजारों विद्यार्थियों ने शिक्षा ग्रहण कर गुरमत के प्रचार-प्रसार में अपना विशेष योगदान दिया था। संत गुरबख्श सिंह जी हरपालपुर वाले सन् 1971 ई. में अकाल चलाना स्वर्गवास कर गए थे। संत जी के पश्चात महंत जयसिंह जी को महंती प्राप्त हुई थी। जो कि वर्तमान समय में भी इसी प्रकार से कायम है। सन् 1979 ई. में स्थानीय गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का गठन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अधीन किया गया था। वर्तमान समय में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सरपरस्ती में इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब जी, गुरु जी की स्मृति में सुशोभित है।
इस श्रृंखला के रचयिताओं ने जब जानना चाहा कि पुरातन गुरमत विद्यालय जिसमें हजारों की संख्या में विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर गुरबाणी को कंठस्थ कर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया करते थे। इस वर्तमान समय में वह विद्यालय कहां है? तो ज्ञात हुआ कि पुरातन गुरमत विद्यालय बंद हो चुका है। साथ ही यह भी ज्ञात हुआ कि स्थानीय निवासी बाबा रणवीर सिंह जी अपने ग्राम में विद्यालय का संचालन कर रहे हैं। बाबा रणवीर सिंह जी, ग्रामों में जाकर जत्थों का निर्माण कर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य गुरुद्वारा मंजी साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस गुरुद्वारे के निर्माण के लिये संत बाबा सुंदर सिंह जी मंडोलीवाले ने इस स्थान पर स्थित एक बरगद के वृक्ष को कटवा दिया था, जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।