जब’ श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के अंतर्गत सैफाबाद नामक स्थान पर पहुंचे थे तो वहां के नवाब सैफुद्दीन बड़ी ही आत्मीयता और आदर-सम्मान पूर्वक गुरु जी को अपने महल में निवास के लिए लेकर गये थे। जब महल के समीप पहुंचकर गुरु जी ने निकट ही एक मस्जिद को सुशोभित देखकर प्रश्न किया कि यह क्या स्थान है? नवाब सैफुद्दीन में बड़ी ही विनम्रता से उत्तर दिया था कि पातशाह जी अल्लाह की बंदगी के लिए एवं नमाज अदा करने के लिए इस मस्जिद का निर्माण किया गया है। साथ ही यदि बाहर से कोई पीर-फकीर अल्लाह का बंदा आ जाता है तो उसके निवास की भी समुचित व्यवस्था इस स्थान पर की गई है।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने उत्तर दिया नवाब साहिब हमारे निवास की व्यवस्था महल में करने की क्या आवश्यकता थी? जब उस रब (प्रभु) का घर मस्जिद है तो हमारे निवास की व्यवस्था भी इसी स्थान पर करनी चाहिए थी। गुरु जी के इस उत्तर से नवाब सैफुद्दीन जी अत्यंत प्रभावित हुए थे, कारण गुरु जी सभी धर्मों का समान रूप से आदर-सत्कार करते थे।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने सैफुद्दीन के साथ उनके महल में निवास किया था। साथ ही वर्तमान समय में जिस स्थान पर गुरुद्वारा बहादुर गढ़ साहिब सुशोभित है। उसी स्थान पर गुरु परिवार के अन्य सदस्य और करीब 300 की संख्या में संगत ने निवास किया था। इस स्थान पर प्रत्येक दिन अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में आसा जी की वार का कीर्तन निवासी संगत के द्वारा आयोजित किया जाता था। गुरबाणी के सबद् (पद्यों) का उच्चारण किया जाता था। इस इलाके के आसपास की संगत उपस्थित होकर गुरु जी के दर्शन-दीदार करती थी।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ॰ कृपाल सिंह रचित इतिहास अनुसार गुरु जी के इस जत्थे ने इस स्थान पर चौमासा (वर्षा ऋतु के चार महीने) को सैफाबाद में ही बिताया था। इन चार महीने में गुरु जी ने इस स्थान पर निवास करते हुए आसपास के ग्रामों में पहुंचकर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। चौमासा समाप्त होने के पश्चात जब गुरु जी ने नवाब सैफुद्दीन से विदाई ली तो उस समय नवाब की बेगमों ने माता नानकी जी और माता गुजर कौर जी को उपहार स्वरूप अनेक वस्त्र, गहने, बर्तन और अनेक ऐसी वस्तुओं को भेंट किया था जो आगामी यात्रा में अत्यंत उपयोगी थी। गुरु जी के इस जत्थे को गलीचे, दरिये, कनाते और तंबू इत्यादि सभी यात्रा में उपयोगी वस्तुओं को गाड़ियों में लादकर भेंट स्वरूप दी गई थी। इन सभी कीमती वस्तुओं से भरी गाड़ियों के यातायात हेतु कई ऊंटों को भी भेंट स्वरूप दिया गया था।
यदि हम इस श्रृंखला के इतिहास को दृष्टिक्षेप करें तो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने बाबा-बकाला नामक स्थान पर निवास करते हुए अनेक स्थानों पर यात्रा की थी। इन यात्राओं के दरमियान जब गुरु जी खेमकरण नामक स्थान पर पहुंचे थे तो खेमकरण में भी गुरु जी को भेंट स्वरूप घोड़ा प्राप्त हुआ था।
नवाब सैफुद्दीन ने गुरु जी को अत्यंत बहुमूल्य घोड़ा जो कि हजारों किलोमीटर का सफर बिना थके हुए कर सकता था। ऐसा अत्यंत बेजोड़ घोड़ा गुरु जी को भेंट स्वरूप प्रदान दिया था। इस बहुमूल्य घोड़े का नाम ‘श्रीधर’ था। इस श्रृंखला के आगामी इतिहास में संगत (पाठकों) को ज्ञात होगा कि यह ‘श्रीधर’ नामक घोड़ा यात्रा करते हुए बनारस में बीमार हो गया था। इस बीमार घोड़े की सेवा-शुश्रूषा करने हेतु इस घोड़े को बनारस की संगत को सुपुर्द कर गुरु जी पटना साहिब के लिये प्रस्थान कर गए थे।
पटना साहिब पहुंचकर गुरु जी बनारस और सासाराम की संगत से पत्रों के माध्यम से अपने बीमार घोड़े का हालचाल पूछते रहते थे। इससे ज्ञात होता है कि आप जी कितनी ऊंची शख्सियत के मालिक थे। आप जी से चार वर्ष की आयु में एक गरीब बच्चे का नंगा होना नहीं देखा गया था और उस गरीब बच्चे के तन पर स्वयं के कीमती वस्त्र परिधान कर दिए थे। आप जी एक बीमार घोड़े के इलाज के लिए पत्रों के माध्यम से उसका हाल-चाल जानते रहे थे। “जब इंसानियत की चादर को उतारा जा रहा था तो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इसे कैसे बर्दाश्त कर सकते थे”?
एक और ऐतिहासिक तथ्य से हम संगत (पाठकों) को अवगत होना चाहिए कि जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की दिल्ली के चांदनी चौक में शहादत हुई थी और इस शहादत की जानकारी जब नवाब सैफुद्दीन को हुई तो नवाब सैफुद्दीन ने 40 दिनों तक काले वस्त्रों को परिधान कर इस शहादत के लिए अफसोस जाहिर किया था। इन सभी ऐतिहासिक तथ्यों से नवाब सैफुद्दीन और ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के आत्मीय-अटूट संबंधों को हम जान सकते हैं।
वर्तमान समय में इस स्थान पर दो गुरुद्वारा साहिब सुशोभित हैं। एक गुरुद्वारा बहादुर गढ़ साहिब मुख्य सड़क पर सुशोभित है और दूसरा गुरुद्वारा बहादुर गढ़ किले में सुशोभित है। इसी स्थान पर गुरु जी ने नवाब सैफुद्दीन के साथ उनके महल में निवास किया था।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने बहादुरगढ़ में चौमासा काट कर अपनी भविष्य की यात्रा पुनः प्रारंभ कर दी थी।