प्रसंग क्रमांक 47: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय बहादुर गढ़ (सैफाबाद) का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम उगाणी से चलकर सैफाबाद नामक स्थान पर पहुंचे थे। वर्तमान समय में यह स्थान बहादुर गढ़ के नाम से जाना जाता है। बहादुर गढ़ नामक स्थान बिल्कुल पटियाला शहर के समीप स्थित है। पटियाला शहर उस समय तक आबाद नहीं हुआ था।

श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने सैफाबाद पहुंचकर डेरा लगाकर अपने निवास की समुचित व्यवस्था की थी। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा बहादुर गढ़ पातशाही नौवीं सुशोभित है।

पिछले प्रसंगों में हमने पीर मूसा रोपड़ी के इतिहास को जाना था। यह पीर मूसा रोपड़ी ने ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के श्री आनंदपुर साहिब जी में दर्शन किए थे। इस पीर मूसा रोपड़ी ने गुरु जी की शिक्षाओं अनुसार जीवन व्यतीत करना प्रारंभ कर दिया था। पीर मूसा रोपड़ी जी एक उच्च कोटि के सैयद पीर थे। पीर जी को समाज में अभूतपूर्व मान्यता थी और रुतबा भी था। यही पीर मूसा रोपड़ी जी गुरु जी के जीवन से बहुत ही प्रभावित थे। इसी सैयद पीर मूसा रोपड़ी ने नवाब सैफुद्दीन को गुरु जी की जीवन यात्रा के संबंध में जानकारी प्रदान की थी और उनसे वचन किए थे कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अल्लाह के रूप हैं। नवाब सैफुद्दीन की भी दिल से इच्छा थी कि सहपरिवार ‘श्री आनंदपुर साहिब जी’ पहुंचकर गुरु जी के दर्शन-दीदार कर अपना जीवन सफल करें। जब नवाब सैफुद्दीन को ज्ञात हुआ कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का आगमन सैफाबाद में हुआ है तो नवाब सैफुद्दीन सहपरिवार गुरु जी के चरणो में स्वयं उपस्थित हुआ था।

गुरु जी के दर्शन-दीदार करने के पश्चात नवाब सैफुद्दीन ने स्वयं गुरु जी को सहपरिवार अपने महलों में आमंत्रित किया था। नवाब जी के निवेदन अनुसार जब गुरु परिवार नवाब सैफुद्दीन के महलों की ओर चल रहे थे तो सबसे आगे ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ घोड़े पर सवार थे और पीछे रथ में माता नानकी जी एवं माता गुजर कौर जी पधार रहे थे। नवाब सैफुद्दीन स्वयं गुरु जी के घोड़े की रकाब को पकड़कर पैदल चल रहे थे। गुरु जी को नवाब जी ने घोड़े से उतरने नहीं दिया था।

इस तरह से गुरु जी को आप सहपरिवार महलों में लेकर आए थे। नवाब सैफुद्दीन की गुरु जी के प्रति असीम-अपार श्रद्धा थी। उस समय नवाब सैफुद्दीन कोई आम व्यक्ति नहीं था। उस समय उनकी शख्सियत और रुतबा अभूतपूर्व था। नवाब साहिब को सैफ खान के नाम से भी संबोधित किया जाता था। नवाज सैफुद्दीन उस समय के बादशाह औरंगजेब का धर्म भाई बना हुआ था। साथ ही  बादशाह शाहजहां का रिश्ते में साढू भाई था एवं ईश्वर की भक्ति से जुड़े पीर भीखण शाह जी इस नवाब सैफुद्दीन के घनिष्ठ मित्रों में से एक थे। नवाब सैफुद्दीन को उस समय की सरकार ने कई बड़े ओहदों पर विभूषित किया था। आप जी सूबेदार और गवर्नर के पद पर आसीन होकर नवाब बने थे। नवाब सैफुद्दीन राजनीति से दूर होकर अपने महलों में अल्लाह की बंदगी में लीन हो चुके थे। ऐसी बड़ी शख्सियत नवाब सैफुद्दीन ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के घोड़े की रकाब को पकड़कर आगे-आगे चल रहे थे।

नवाब सैफुद्दीन ने गुरु जी के निवास की व्यवस्था अपने महलों में की थी। जब महल में पहुंचकर गुरु जी ने मस्जिद को देखा तो गुरु जी ने उस समय क्या वचन किए थे?

प्रसंग क्रमांक 48: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने बहादर गढ़ में कैसे चौमासा (वर्षा ऋतु के चार महीने) बिताये थे? इसका संपूर्ण इतिहास।

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