‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने पूरे परिवार और जत्थे के साथ ग्राम रैली से चलकर ग्राम मुकारूपुर नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम के बाहर पानी के झरने के स्त्रोत के समीप तंबू और कनाते स्थापित कर गुरु जी के जत्थे की निवास की उत्तम व्यवस्था की गई थी। इस स्थान पर भी संगत आना प्रारंभ हो गई थी। इस ग्राम की एक स्थानीय माता जी ने गुरु जी के लंगर की व्यवस्था की थी और रूपचंद नामक व्यक्ति ने गुरु जी से सिक्खी की दात (शिक्षा) को ग्रहण किया था। इसी भाई रूप चंद ने सिक्खी को ग्रहण कर आसपास के ग्रामों में जाकर सिक्खी का प्रचार-प्रसार भी किया था।
जिस प्रकार से ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने ग्रामीण अंचलों में भ्रमण कर लोगों को सिक्खी से जुड़ा था। ठीक उसी प्रकार से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ भी ग्रामों में भ्रमण कर सिक्खी के बूटे का प्रचार-प्रसार कर संगत कायम कर रहे थे। इन संगत में से प्रमुख सिखों को धर्म प्रचार-प्रसार की जवाबदारी सौंपी जाती थी एवं उस स्थान पर धर्मशाला का निर्माण कर गुरु जी अपने भविष्य की यात्राओं की ओर प्रस्थान कर गये थे।
इस ग्राम मुकारूपुर से गुरु जी चलकर ग्राम भंगड़ाना नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम में पहुंचकर गुरु जी के जत्थे की और से तंबू और कनातों को स्थापित कर डेरे के रूप में निवास की व्यवस्था की गई थी। इस जत्थे के साथ गुरु जी का पूरा परिवार, प्रमुख सिख, बहुसंख्या में संगत और घोड़े, गाड़ी एवं समस्त साजो-सामान साथ में होता था। इस पूरी यात्रा के मार्गों को निर्धारित कर इस यात्रा का आयोजन किया जाता था।
इस यात्रा का प्रमुख प्रयोजन यह था कि सिखों में सिक्खी के जज्बे को भरा जाए। संगत को ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के उद्देश्यों से दृढ़ करवाया जाए और उन उपदेशों से संगत को परिचित करवाया जाए।
इस ग्राम के दो सिख भाई भेरु जी और भाई दयाला जी ने गुरु साहिब की सिक्खी को धारण किया था और दोनों ही आसपास के ग्रामों में जाकर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार करते थे।
इस इतिहास में विचारणीय तथ्य यह है कि गुरु जी द्वारा जो धर्म प्रचार-प्रसार की यात्राएं इन ग्रामों में की जा रही थी, उसका सार क्या है? इन प्रसंगों में लगातार गुरु जी द्वारा किए गए भ्रमणों के इतिहास से संगत को अवगत करवाया जा रहा है। यदि ऐतिहासिक तथ्य देखे जाए और यदि इन ग्रामों का 200 वर्ष पूर्व के इतिहास का अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि असंख्य सिखों ने सिक्खी की दात (शिक्षा) ग्रहण कर धर्म के लिए कुर्बानियां अर्पित की थी।
इस स्थान पर पानी का इंतजाम ना होने के कारण इस स्थान पर गुरु जी ने कुएं का भी निर्माण किया था। वर्तमान समय में इस कुएं के स्थान पर ही सरोवर साहिब निर्मित है। इस सरोवर के मध्य गुरु जी द्वारा 400 वर्ष पुरातन कुआं वर्तमान समय में भी सुशोभित है।
इतिहास में यह भी जिक्र आता है कि जब गुरु जी ‘शहादत’ के लिए दिल्ली की ओर प्रस्थान कर रहे थे तो इस ग्राम भंगड़ाना से गुजर कर गए थे। गुरु जी के सिख भाई दयाला जी के परिवार में सिक्खी की वह दात (शिक्षा) प्राप्त हो चुकी थी कि पूरा परिवार ही सिक्खी को समर्पित हो चुका था। भाई दयाला जी ने इलाके के दूर-दराज ग्रामों में जाकर सिख धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अभूतपूर्व सेवाएं की थी। भाई दयाला जी के दो पुत्र थे भाई मदन जी और भाई कोठा जी थे। यह दोनों भाई जब जवान हुए तो अपने आप को सिख धर्म के लिये समर्पित कर, ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की शहीदी के पश्चात् दोनों भाई श्री आनंदपुर साहिब जी में अपनी सेवाएं अर्पित करने हेतु पहुंच गए थे।
अप्रैल 1699 ई. की बैसाखी पर भाई मदन सिंह जी और भाई कोठा सिंह जी खंडे-बाटे का अमृत छककर (अमृत पान) कर सिख सज गए थे। यह दोनों भाई बहुत ही शूरवीर योद्धा थे। जब चमकौर का युद्ध हुआ तो दोनों भाइयों ने मिलकर चमकोर की गढ़ी के दरवाजे पर मोर्चा संभाला था और किसी भी मुगल सैनिक या 22 धार की सेना के सैनिकों को इस चमकोर की गढ़ी के दरवाजे से प्रवेश करने नहीं दिया था। दोनों भाइयों को सिख धर्मीय सम्मान पूर्वक ‘रंगरेटे गुरु के बेटे’ के सम्मान से सुशोभित करते हैं। (रंगरेटे अर्थात रंग काम के कारीगर) इन दोनों भाइयों ने शूरवीरता दिखाते हुए मातृभूमि पर सर्वस्व निछावर कर चमकौर की गढ़ी के दरवाजे पर ‘शहादत’ पाई थी।
इन दोनों भाई सरदार मदन सिंह और सरदार कोठा सिंह की स्मृति में ग्राम भगड़ांना में वर्तमान समय में ऐतिहासिक स्थान निर्मित है। ग्राम भगड़ांना और चमकोर की गढ़ी में भी इनकी स्मृतियों को संजो कर रखा गया है।
यदि इतिहास को दृष्टिक्षेप किया जाए तो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्रामों में भ्रमण कर आम लोगों में सिक्खी का प्रचार-प्रसार कर सिक्खी को दृढ़ करवा रहे थे। कारण भविष्य में इन्हीं सिखों ने दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के नेतृत्व में ‘गुरु पंथ खालसा’ की चढ़दी कला के लिए अनेक महान कार्यों को अंजाम देना था।