रोपड़ नामक स्थान के निकट ग्राम दुगरी से होते हुए ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ कोटली से गुजरकर मानपुर नामक स्थान पर पहुंचे थे। मानपुर रोड पर ‘गुरुद्वारा पातशाही नौवीं’ सुशोभित है। इस स्थान पर गुरु जी से संबंधित अधिक इतिहास की जानकारी उपलब्ध नहीं है। गुरु जी ने अपने चरण-चिन्हों से स्पर्श कर इस धरती को पवित्र किया था।
इस ऐतिहासिक स्थान पर पहुंचने के पश्चात ज्ञात हुआ कि प्रथम इस स्थान पर एक बहुत ही बड़ा विद्यालय स्थित था और इस विद्यालय में विद्यार्थियों को गुरमत संगीत एवं गुरबाणी कंठस्थ करवाई जाती थी परंतु वर्तमान समय में यह विद्यालय पूर्ण रूप से बंद हो चुका है। वर्तमान समय में इस स्थान पर केवल गुरुद्वारा साहिब स्थित है। इस स्थान पर पहुंचने वाली संगत नाम-बाणी से जुड़ कर पुनः प्रस्थान कर जाती हैं।
मानपुर से प्रस्थान कर गुरु जी 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम घडूंवां नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम घडूंवां में गुरु जी के समक्ष बलराम नामक एक तरखाण (सुतार) उपस्थित हुआ और उसने गुरु जी से निवेदन कर कहा था कि मैं बहुत दुखी हूं। आप जी मुझ पर कृपा करें, कारण मेरे घर से तपेदिक (टी.बी. अर्थात् टूयबर क्लोसिस) नामक बीमारी दूर नहीं होती है। इस कारण से मेरी सारी कमाई इस बीमारी के इलाज में खर्च हो जाती है। इस भयानक बीमारी से मैं ही नहीं अपितु बहुत सारे स्थानीय नागरिक भी पीड़ित हैं।
वर्तमान समय में तपेदिक (टी.बी.) नामक बीमारी को समाप्त करने हेतु सरकार की और से बहुत बड़े पैमाने पर कदम उठाए गए हैं। नतीजतन बहुत हद तक इस बीमारी पर काबू पाया जा चुका है। फिर भी वर्तमान समय में भी कई परिवार इस भयानक बीमारी से पीड़ित हैं।
उस समय गुरु जी ने इन रोगियों के इलाज के लिए उत्तम प्रबंध किए थे और इन रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया था। गुरु जी स्वयं उत्तम वैद्य थे। उस समय जो कार्य उस समय के शासन कर्ताओं ने करना था, वह समस्त कार्य गुरु जी ने सेवा करते हुये उत्तम तरीके से सफलता पूर्वक किए थे।
इस बीमारी के संक्रमण से दूसरे आम व्यक्ति प्रभावित ना हो इस कारण से पीड़ित रोगियों के निवास की व्यवस्था आम लोगों से अलग से की जाती थी। (वर्तमान समय में हम बोलचाल की भाषा में इस व्यवस्था के लिए कोरनटाइन शब्द का उपयोग करते हैं)। इन सभी व्यवस्थाओं के गुरु जी ने उत्तम प्रबंध किए थे। इस स्थान पर स्वच्छ जल का स्रोत होने के कारण पीड़ित रोगियों को स्वच्छ जल से स्नान करवाया जाता था। जड़ी-बूटियों के साथ-साथ पीड़ित रोगियों को परमात्मा का नाम और गुरु जी की संगत से जोड़ा गया था। जिस कारण पीड़ित रोगी अपने टूटे हुए मनोबल को पुनः प्राप्त कर उत्तम स्वास्थ्य का लाभ लेते थे। गुरु जी दवाई के साथ प्रभु-स्मरण और आध्यात्मिक रूप से पीड़ित रोगी को प्रभु भक्ति से जोड़कर इस भयानक बीमारी से रोगियों को रोग मुक्त करवाते थे।
इस स्थान पर निवास करते हुए गुरु जी ने संगत को नाम-वाणी से जोड़कर इस बीमारी के प्रति जागरूक किया था। गुरु जी के प्रयत्नों से इसी स्थान पर भी धर्मशाला का निर्माण किया गया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘श्री अकाल गढ़ साहिब जी’ सुशोभित है और एक सुंदर बगीचा भी स्थित है।